किसी
जमाने में हरित क्रांति हुआ करती थी,
हर खेत हरा था । अब समय दाढ़ी-क्रांति का है और खेत में खड़े बिजुके तक भी दाढ़ी में नजर
आ रहे हैं । लगता है नौजवानों के लिए कोई आदेश सा निकला हुआ है कि जो असहमत हैं वे भी रखें । नौजवान
प्रायः असहमती पर ही सहमत होते हैं इसलिए हर कोई रख रहा है । माँ बाप पसंद नहीं कर
रहे हैं सो उनकी मुखालफत के लिए रख रहे हैं । जो चुसे आम एंग्री यंग मेन दिखना चाह
रहे वे रख रहे हैं । जो बेरोजगार हैं, बहुत निराश हैं, बावजूद इसके कुछ नया महसूस करना
चाहते हैं वे रखे हुए हैं । जिन्हें कहीं
भी कोई ग्रोथ नहीं दिखाई दे रही है, लेकिन दिल को बहलाने के लिए
कुछ बढ़ता हुआ देखना चाहते हैं वे भी रख रहे
हैं । जिन्हें किसी भी कारण से चेहरा छुपाना है उनके लिए तो दाढ़ी बहुत जरूरी है । मीडिया तक चेहरा पढ़ना चाहे
तो दाढ़ी में उलझ कर रह जाता है । जिन्होंने कई भ्रम पाल रखे हों, वे अगर अपने को बड़ा साहित्यकार, महान योद्धा, या इतिहास पुरुष होने का एक भ्रम और पालना चाहें वे भी रख रहे हैं । कहते हैं दर्द का हद से बढ़ जाना दवा बन जाता है
। जिन्हें तिनकों का डर सताता हो उनके लिए बहुत जरूरी है तीनकों के गुच्छ सी घनी लंबी
दाढ़ी । जो असंत होते हुए भी संत, संसारी होते हुए भी बैरागी
और काव्य बैरी होते हुए भी कवि दिखना चाहते हों उनके लिए दाढ़ी आसान उपाय है । आज
रहीम होते तो कहते – ‘रहिमन दाढ़ी राखिए, बिन दाढ़ी सब सून ; दाढ़ी गए न ऊबरे, नेता, अफसर, प्यून’ । राजनीति में चिकने चेहरों का युग
कलयुग की तरह बिदाई की ओर है । अब जो जितना दाढ़ीवान और नागा होगा, सत्ता के शाहीस्नान
का अवसर प्राथमिकता से उसी को मिलेगा ।
दाढ़ी
भय मिश्रित ज्ञान का प्रतीक है । जिनको बोध हो जाता है कि सत्ता और संसार मिथ्या
है, कोई भाई-बहन नहीं, वोट और सबंध एक भ्रम है । यहाँ मंत्री
पद और सरकार सहित कुछ भी स्थाई नहीं है । दोनों वक्त रसायन वसंतकुसमाकर लेने के
बावजूद कोई अमर नहीं है, कभी भी ‘हे
राम’ हो सकता है । ढाई सौ बरस जीने वाला कछुए को भी एक दिन मरना पड़ता है । ऐसी विरक्ति में एक आदमी को क्या
चाहिए सिवा दाढ़ी के । आया है सो जाएगा, राजा, रंक, फकीर । तीनों दाढ़ी रखते हैं और झोला उठा कर चल
देने की मंशा व्यक्त करते हैं । दाढ़ी का एकांत से गहरा रिश्ता है । पहाड़ों, गुफाओं, कन्दराओं में लोग यों ही नहीं पहुँच जाते हैं
। दीन दुनिया से अलग कहीं बैठ कर एकांत में सहलाते रहिए तिनकों को, तसल्ली मिलेगी । आपको लगेगा कि आप अलग हैं और शरीर अलग । आप शरीर से निकल
कर आत्मा भी हो सकते हैं, हो जाते हैं । टू इन वन, जैसे आईने के सामने खड़े हों । आत्मा का साथ सबसे अच्छा होता है, वह चाय तक नहीं पीती है । आत्मा सवाल जवाब जरूर करती है लेकिन कभी भी करण
थापर नहीं बनती है । आत्मा किसी बात के लिए तैयार न हो तो देख कौन रहा है ! मार दीजिए, मर जाएगी और कहीं जिक्र भी नहीं होगा । बहुत से समझदार तो आत्मा को मार कर ही राजनीति में
प्रवेश करते हैं । कहते हैं कि ब्रेक निकाल कर गाड़ी चलाने का मजा ही कुछ और है । पालनहार
ने पेट दिया है तो खाना भी दे ही देगा ही, जिस भी रास्ते से दे
ज़िम्मेदारी उसकी है ।
लेकिन
कुछ क्षण ऐसे भी आते हैं जब कहीं कुछ दिखाई नहीं देता है, निराशा चरम पर होने लगती है तब दाढ़ी उम्मीद की किरण बन कर काम आती है । अतिथि
आने वाले थे, सोचा था आएंगे और चले जाएंगे जैसी कि परंपरा है
। अगर नहीं माने तो दो पटकनी लगा देंगे । कितने ही आए और चले गए, इतिहास में दर्ज है । लेकिन ये जनाब टिक गए और यहाँ की जमीन में पनपने लगे
। ताली-थाली बजवाई, दिया-बाती किया तो गलतफहमी में आ गए कि अतिथि-देव
का सम्मान हो रहा है । पहले उथले उथले से थे अब घरू हो गए । मजबूरी में तय करना पड़ा
कि अतिथि जी के साथ ही रहने की आदत बनानी होगी । किसी ने सुझाया कि अतिथि को दाढ़ी पसंद
नहीं है । जहां से आया है वहाँ ज़्यादातर लोग चिकने हैं, दाढ़ी
नहीं रखते हैं । दाढ़ी उसे बर्दाश्त नहीं है, अतिथि के लिए दाढ़ी
वेक्सीन है । सारे दाढ़ी रखो, आत्मनिर्भर बनो । पहले आह भरते थे
तो हो जाते थे बदनाम ; अब कत्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होता
!! डबल्यूएचओ को भी एक दिन कहना पड़ेगा कि तुस्सी ग्रेट हो पाप्पे ।
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