शुक्रवार, 16 अप्रैल 2021

दिमाग प्रतिबंधित है पार्टी में

 






                       
“हमारी पार्टी को लेकर ऐसा क्या लगा आपको कि कार्यकर्त्ता बनना चाहते हैं ?” अध्यक्ष जी ने सदस्यता लेने आए पवन कुमार विश्वबिहारी से पूछा .

“पार्टी के बारे में काफी सुना है मैंने इसलिए मैंने सोचा सर ...”

“सर नहीं श्रीमान या महोदय कहें .” अध्यक्ष जी ने टोका .

“जी महोदय, ... मैंने बहुत सोचने के बाद तय किया कि आपकी पार्टी सबसे अच्छी है . देश प्रेम आपकी पार्टी में कूट-कूट के मार-मार के भरा हुआ है . और अनुशासन भी गजब का है . आप बन्दे को जिस कुर्सी पर भी बैठा देते हो वो उस पर ही बढ़िया काम करने लगता है, चाहे उसमें उस कुर्सी की योग्यता हो के न हो . ये चमत्कार किसी और पार्टी में देखने को नहीं मिलता है इसलिए मैंने सोचा कि ...”

“सोचते बहुत हो !! ... खुद ही सोचते हो अपने आप या कोई बौद्धिक देता है ?” अध्यक्ष जी ने नाक पर चश्मा  चढाते हुए पूछा .

“जी महोदय, मैं ही सोचता हूँ . मतलब विचार करता हूँ . विचार करना मुझे बहुत अच्छा लगता है . विचार करने से तरह तरह के विचार आते हैं . बहुत से विचार राष्ट्रीय भी होते हैं इसीलिए मैं राजनीति में आना चाहता हूँ .”

“राष्ट्रीय सोच लेते हो ! ऐसा कब कब सोचते हो ?”

“वैसे तो सोचता ही रहता हूँ ... जैसे मछली का पता नहीं होता है कि वो कब पानी पीती है वैसे विद्वानों का भी पता नहीं चलता है कि कब सोचते हैं . यों समझिये कि चलता ही रहता है .”

“सोचने की फेक्ट्री हो ! पार्टी के बारे में कब से सोच रहे हो ?”

“अभी दो तीन महीने से सोच रहा हूँ कि आपकी पार्टी ...”

“एक बार सोचना शुरू करते हो तो कितनी देर तक सोचते रहते हो ?”

“यों समझिये कि स्टेशन से गाड़ी छूटती है तो फिर नॉनस्टॉप चलती है , सुपरफ़ास्ट ..”

“नॉनस्टॉप ! सुपरफास्ट ! ... सोच कर बताओ . कैसे सोचते हो .”

“महोदय ! ... वो क्या है ... मुझे कुछ ठीक से ... जैसा आप समझें ... मतलब मेरा ... इस समय कुछ पक्का नहीं है .”

“हिंदी में सोचते हो या अंग्रेजी में ?”

“ सोचते तो अंग्रेजी में हैं किन्तु बोल नहीं पाते इसलिए फाइनल ड्राफ्ट राष्ट्र भाषा में ही निकालते हैं .”

“सोचने के आलावा और कोई काम करते हो ? ... नौकरी वौकरी ?”

“नौकरी अब कहाँ है महोदय ! ... गए ज़माने . चाय का ठेला लगता हूँ .”

“फिर क्या दिक्कत है !”

“दिक्कत कुछ खास नहीं... सोचता हूँ कि चाय बेच रहा हूँ तो पार्टी भी ज्वाइन कर लूँ . परम्पराओं  का सम्मान करने वाली है आपकी पार्टी .”

“ फिर सोचा !! हर समय सोचते ही रहते हो !!”

“हाँ ... चाय बनाने में दिमाग तो लगता नहीं है . चाय उबलती है उसके साथ ही विचार भी .”

“आगे क्या चाय बेचना छोड़ दोगे ?”

“महोदय मैंने तय किया है जब तक दूसरा कुछ बेचने को नहीं मिलेगा चाय ही बेचता रहूँगा .”

“सोचते हो और तय भी कर लेते हो !!”

“जी महोदय ... एक बार सेवा का मौका दें .”

“देखो युवक, शरीर को मजबूत बनाओ, बलशाली बनों लेकिन सोचने के चक्कर में मत पड़ो .”

“महोदय मेरा दिमाग तेज है पार्टी के काम आएगा.”

“ये तुम सोचते हो लेकिन पार्टी को दिमाग और दिमाग वालों की जरुरत नहीं है . खोपड़ी अगर ठोस यानी ठस्स हो और ऊपर सींग उगे हों तो ले सकते हैं पार्टी में .”

“फिर दिमाग का क्या करूँ महोदय !”

“मंदिर जाते हो तो जूते बाहर उतारते हो ना ?

“मंदिर तो नंगे पैर जाता हूँ ... आजकल जूते चोरी बहुत होते हैं ना .”

“हूँ ... पार्टी में जब भी कोई आता है नंगे-दिमाग आता है . ये बात समझ लो युवक .” पार्टी को तुम्हारा शरीर चाहिए दिमाग नहीं.”

“सिर्फ शरीर की भर्ती करते हैं आप !?”

“हाँ ... वो भी तब तक, जब तक कि रोबोट पर्याप्त मात्र में बनने नहीं लगते . दिमाग प्रतिबंधित है इसलिए हमारी पार्टी मजबूत है.”

“महोदय मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा है ... सोच कर बाद में बताऊंगा .”

“ फिर सोच !! तुम्हारा कुछ नहीं हो सकता, तुम चाय बेचते रहो .”

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