गुरुवार, 30 मई 2024

भगवानों के देश में नए अवतार


 



खिड़की से धूप और प्रकाश आ रहा है । प्रकाश मुझे अच्छा लगता है । प्राकृतिक हो तो और भी ज्यादा । मन मुदित हुआ तो आँखें बंद हो गईं । अभी कुछ पल ही गुजरे थे कि आवाज आई – आँखें खोलो भक्त । मैं भगवान हूँ । 

चौंक कर देखा । सामने एक आकृति थी, पाषाण प्रतिमा सी । मुझे डर लगा । प्रायः डर के समय भगवान को याद करता हूँ । अब भगवान सामने हैं तो समझ में नहीं आ रहा है कि किसका स्मरण करूँ !

“डरो मत । मैं तुम्हें कुछ देने आया हूँ ।“ वे बोले ।

“क्या दोगे ?!”  डर काम नहीं हुआ, भगवान हैं, पता नहीं क्या दे दें ।

“एक आइडिया दूंगा जिससे तुम काम के आदमी समझे जाओगे ।”

“काम !! ... काम तो चाहिए मुझे भगवान । बेरोजगार बैठा हूँ । महंगाई कितनी है ! हाथ हमेशा तंग रहता है । स्कूल वाले बोरी भर भर के फीस मांगते हैं । खाना कपड़ा दवाई सब मेरे बस के बाहर है ।“

“रुको रुको, शिकायत पुराण मत खोलो भक्त । मैं तुम्हें काम नहीं आइडिया देना चाहता हूँ ।“

“आइडिया का क्या करूंगा भगवान ! देने वाले ने बहुत दिए हैं । पूरा शहर चाय बनाने वालों से अंटा पड़ा है । मुट्ठी भर पीने वाले और गाड़ी भर पिलाने वाले ! आइडिया तो रहने ही दो, काम की बात हो तो कहो ।"

“काम, नौकरी, रोजगार ये सब दकियानूसी विचार हैं भक्त । तुम्हें इन सब बातों से परे रहते हुए आत्मनिर्भर हो जाना चाहिए ।“

“आत्मनिर्भर क्या होता है भगवान ?”

“जब तुम्हारे आसपास कि सारी निर्भरताएं बेमानी हो जाएं । संगी साथी असहयोग की मुद्रा मे आ जाएं । समाज मे तुम्हारी विश्वसनीयता खत्म हो जाए । तुम हंसी और उपेक्षा के पात्र होने लगो । चौतरफ निराशा घिरने लगे तो एक ही उपाय बचता है ... “

“मेरे साथ यही सब हो रहा है । कौन सा रास्ता बचत है प्रभु ?!”

“तुम अपने को भगवान का अवतार घोषित कर दो ।“

“मजाक मत करों भगवान । मेरे अवतार होने की बात कौन मानेगा !!”

“ये तुम्हारी नहीं लोगों की समस्या है ।  पूरे विश्वास से कहो कि तुम पैदा नहीं हुए हो अवतरित हुए हो । डायरेक्ट भगवान का अवतार ।“

“इससे क्या होगा प्रभु !?”

“लोग गाली देना बंद कर देंगे । सोचो भगवान को कौन गाली दे सकता है ? तुम्हारी आरती करेंगे लोग, कीर्तन होंगे । तुम्हारे किये धरे को भगवान का किया धरा मना जाएगा । तुमसे कोई सवाल नहीं कर सकेगा । गलत निर्णयों के लिए भी तुम जिम्मेदार नहीं ठहरए जाओगे । कुछ ही दिनों में तुम पूजे जाने लगोगे, तुम्हारे मंदिर बनेंगे । हार माला फूल चंदन अगरबत्ती सब होगा । गरीब आएगा और दूर से हाथ जोड़ कर चल जाएगा, उस पर ध्यान देने कि जरूरत नहीं है । अमीर छपन भोग लाएगा, रेशमी वस्त्र और स्वर्ण मुकुट पहनाएगा । महंगे मौसमी फलों के रस से रोज स्नान करोगे । और ये सब एक दो बार नहीं, तब तक चलेगा जब तक तुम रहोगे ।... बोलो ।“

“मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है । भगवान तो आप हैं ! आप क्या करोगे फ्री हो कर !“

“थक गया हूँ भक्त । तुम तो जानते हो राजनीति वालों को । कितना दौड़ाया मुझे । अब मुझे अवकाश चाहिए । तुम जैसे कुछ समझदारों को भगवान बना दूँ और चलूँ ।“

“कोई आपका स्थान कैसे ले सकता है भगवान !?”

“चिंता मत करो, लोग सच झूठ सब मान लेते हैं । जनता बहरूपियों के भी हाथ जोड़ती है । तुम अवतार हो यह भी मान लेगी । बस तुम्हें कहते रहना है कि ‘तुम पैदा नहीं हुए हो, तुम्हें भगवान ने भेजा है’ । तो आज से तुम अवतार हुए । टेक केयर । “

कह कर आकृति गायब हो गई । खिड़की में केवल प्रकाश रह गया है । आइडिया बुरा नहीं है लेकिन खतरा यह है कि देश जल्द ही नए अवतारों से भर जाएगा । काम्पिटिशन तगड़ी रहेगी ।  मुझे रंगे पत्थरों की तरह सड़क किनारे पड़ा रह जाना पड़ेगा तो !?  

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बुधवार, 22 मई 2024

हमारे आदमी


 


पिछले कुछ दिनों से मुझे लग रहा है कि मैं उनका आदमी हूँ । पहली मुलाकात में उन्होंने कहा था कि ‘तुम तो हमारे अपने आदमी हो जी’ । मैं मना करना चाहता था लेकिन चुप रहा । मेरा अनुभव है कि जब भी लाठी लिया हुआ कोई आपसे बात कर रहा हो और आप असहमत हों तो चुप रहने में ही भलाई है । आपके पास जवाब देने ले लिए केवल जुबान है लेकिन उसके पास विकल्प भी है । वे जब भी मिले साढ़े पाँच फुट के विकल्प के साथ मिले और हर बार मुझे चुप रहना पड़ा । एक दिन बोले –“हमारे आदमी हो यह अच्छी बात है लेकिन तुम्हें हमारे आदमी की तरह लगना भी चाहिए “ ।

“आपका आदमी कैसा होता है ?” हिम्मत करके पूछ ही लिया ।

“हमारे आदमी भी आदमी कि तरह ही दिखाई देते हैं । उनके भी हाथ पैर शक्ल सूरत होती है । अक्सर हिन्दी बोलते हैं, मौका पड़ जाए तो हिन्दी में ही समझाते भी हैं । ... तुम्हें हिन्दी आती है ?”

“हाँ आती है । पढ़ना लिखना हिन्दी में ही करता हूँ ।“

“अच्छी बात है । ...गर्दन के ऊपर क्या है ?” उन्होंने सिर की ओर इशारा करते हुए पूछा ।

“सिर है ।“

“सिर क्या काम आता है ?”

“सोचने विचारने के काम आता है ।“

“यही गलत सोच है  ... सिर ठोस होना चाहिए । धर्म, संस्कृति, इतिहास, परपराओं और हमारी अपनी मान्यताओं से कूट कूट कर भर हुआ ठोस सिर ही असली सिर है । लेकिन आप चिंता मत करो । कुछ काम हम पर छोड़ दो । सिर सलामत रहेगा तो धीरे धीरे ठोस हो जाएगा ।“

“सिर तो ठोस ही होता है जी ! “

“ठोस नहीं, आमतौर पर पिलपिला होता है । ठोस होता तो हम हजारों साल विधर्मियों के गुलाम नहीं होते । देश को मजबूत करने के लिए लोगों को मजबूत करना जरूरी है ।... ये बात मानते हो ना ? ...  लोग तभी मजबूत होंगे जब सिर ठोस होगा । ठोस सिर ही ठोस कामों के लिए उपयोगी होते हैं । हमारी आज कि शिक्षा लोगों के सिर में दही जमा देती है । जरा सा  हिलते ही बिखर जाता है । लेकिन तुम चिंता मत करो, अब हमारे आदमी हो ।“

“जी मैं समझ गया । आपका मतलब है कि सिर नारियल की तरह होना चाहिए ।“

“नारियल सिर्फ ऊपर से ठोस होता है । अंदर या तो वह पानीदार होता है या फिर मलाईदार । हमें ठोस सिर होना ... भाटे की तरह ।“

“लेकिन भाटे वाला सिर तो ... !!”

“सोचो मत, ठोस सिर की ओर पहला कदम है सोचना बंद । जो कुछ भी कहा जाए उसे ठीक मानो । धीरे धीरे हमारी संख्या बढ़ेगी । हम अपने आदमी हर जगह बैठा देंगे । टीवी मीडिया में अपने आदमी, साहित्य अकादमियों में अपने आदमी, स्कूल कालेज और विश्वविध्यालयों में, प्रशासन में, सरकारी दफ्तरों में, सरकार में, यहाँ तक कि हर घर में अपने आदमी होना चाहिए । ये हमारा लक्ष्य है । एक दिन वो आएगा कि जिधर भी देखोगे हमारे आदमी दिखेंगे । देश शुद्ध रूप से हमारे आदमियों का देश बनेगा । ... कैसा लग रहा है तुमको यह सुनकर ?”

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बुधवार, 15 मई 2024

खानदानी गरीब घुइयाँराम


 


‘‘ का हो घुइयाँ ..... क्या हाल हैं ? ’’

ः राम राम बाबू ... गरीब का भी कोई हाल होता है बाबू !

‘‘ अरे जिन्दा हो तो कुछ हाल भी हुए ना ..... कि नहीं हुए ? ’’

ः हां ..... आप कै रए तो कौन मने कर सकत है ... हाल हुए तो ।

‘‘ वही तो पूछ रहे हैं ... क्या हाल हैं ? ’’

ः वोई हाल हैं जो बाप-दादा के रहे। .... हाल के लाने पूंछो तो खानदानी हैं।

‘‘ ऐसा कैसे रे घुइयाँ ! बाप-दादा चवन्नी-अठन्नी कमाते थेउनसे तो ज्यादा नहीं कमाते हो तुम ? ’’

ः उ बखत मा बड़ी औकात रही चवन्नी-अठन्नी की। अब ससुरा सौ का नोट भी लजाऊ हो गया है ।

‘‘ अरे सुना नहीं तुमने कि अनाज, इलाज सब फिरि-फ़ोकट मिल रहा है । सबके अच्छे दिन आ गए हैं ! ऐसे में तुम्हारा फर्ज है घुइयाँ कि खुश हो जाओ। ’’

ः अरे का बाबू .... कहने से कौनो खुसी आती है का ?! अच्छा दिन जिनका आया उनका आया ... सबका थोड़ी आया है ।

‘‘ ऐसा क्या ! ... फिर ? ’’

ः फिर का बाबू .... आपही बताओ।

‘‘ वोट तो डालोगे ना ? चुनाव लगे पड़े हैं सामने । ’’

ः गरीब तो सबही डारैंगेकिसी के लिए मनै थोड़ी है।

‘‘ सबकी छोड़ोतुम डालोगे या नहीं ? ’’

ः अभही का कहें बाबू .... मन हो जाई तो डार देंगे।

‘‘ अरे इसमें मन की क्या बात है .... मन नहीं हुआ तो नहीं डालोगे ?’’

ः कछु कैं नहीं सकत बाबू , डार भी दैं ना भी डारैं।

‘‘ पिछली दफे डाला था ?’’

ः हओ ... डारै रहे।

‘‘ मन हो गया था डालने का ?’’

ः हओ ...

‘‘ कैसे हुआ था मन ?’’

ः वा लोगन ने गांधी बाबा के दरसन करबाए .... तो मन हो गया। बाबा का मान तो रखबै को पड़े।

‘‘ इस बार दरसन नहीं हुए बाबा के  ?’’

ः अभी तलक तो नहीं हुए .... हो जैहें, ..... अभी टैम है।

‘‘ कौन से गांधी के दरसन की इच्छा है ?’’

ः इच्छा की बात नै है, रिबाज की बात है । पांच सौ बाले दो के करवा दओ।

‘‘ हजार !! घुइयाँराम गांधी बाबा तो बीस-पचास में भी लगे पड़े हैं।’’

ः पड़े होएंगे .... जा में बाबा कोई काम के नहीं हैं।

‘‘ काम के कैसे नहीं हैं ! सरकार रुपइया किल्लो गेंहूं देती हैदो रुपइया में चावल किल्लो भर ।’’

ः कभहीं देखे हो सरकारी गेहूं-चावल ! गइया-भैंसी को डारो तो खाए नहीं ।

‘‘ तो हजार से कम पर मानोगे नहीं। ’’

ः मन के खातिर पैसा मांग रहे हैं बाबू । गरीब आदमी के पास कब मौका आता है !  

‘‘ अरे !! जरा सा तो काम है यार । बटन दबाना है बस । ’’

ः आप लोग बटन दबाने का कितना तो लेते हो बाबू ।

‘‘ हम कहां लेते हैं ! तुम तो बदनाम कर रहे हो खिलावन। ’’

ः नौकरीभत्तापेंसनउप्पर-नीचे की कमाईठेका-कमीसन .... । का हम जानते नहीं बाबू!

‘‘ ये बटन दबाने का मिलता है क्या ! काम करते तब मिलता है।’’

ः कितना काम करते हो बाबू हमें पता है। मुंह ना खुलवाओ।

‘‘ तुम तो लड़ने पर आमादा हो गए घुइयाँ ।’’

ः बाबू हम हक्क की बात करत हैं तो संसार को लगता है कि लड़ते हैं।

‘‘ देखो वोट के लिए पैसा लेना-देना गलत बात है। ’’

ः कोई बाद में लेत है कोई पहले मांगत है। .... एक बार बटन दबवा लेने के बाद हमार कोई इज्जत है !! ...   रुपइया किलो का सड़ा गेहूं हो जाते हैं हम । नाम भरे के ।

‘‘ नाराज हो गए घुइयाँराम । चलो छोड़ो ... और बताओ ... क्या हाल हैं ?’’

ः गरीब का हाल कोई सुन सकता है बाबू ! ..... जिगर चहिए । ऐसन कोई सरकार होई कभी ?

छोडो घुइयाँराम ... हमसे क्यों झूठ बुलवा रहे हो । तुम ठहरे खानदानी गरीब । तुम ही लोकतंत्र की आत्मा हो । अजर अमर हो ।

०: का बोले बाबू !?

तुम नहीं समझोगे घुइयाँराम ।

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