गुरुवार, 16 अक्टूबर 2025

जोखिम दूसरे वाले से


 

                          देश भर के अख़बारों में जूते को लेकर हेड लाइन छप रही थी। पहली बार जूता इतने बड़े स्तर पर बदनाम हो रहा था। जूता पैरों में हो तो उसकी सार्थकता है। जब जब भी वह किसी के हाथों में आया तो बदनाम हुआ। दुकानदार जूता दिखाए तो ग्राहक कहते हैं और दिखाओ जरा। वोट के ग्राहक को दिखाओ तो हेडलाइन बन जाती है। चलने के मामले में जूते की प्रतिस्पर्धा चप्पल से है। विशेष परिस्थितियों में जूते से ज्यादा चप्पल चलती है। बल्कि यों कहना चाहिए कि आशिकों का देश है तो चलती ही रहती है । लेकिन समाज पुरुष प्रधान है, सो इतिहास जूते ही बनाते हैं। यही कारण है कि मारक महिलाएँ अब जूते पहनने लगी हैं वह भी हाई कील (हील) वाली । लड़की देख के छेड़ने वाले हाई कील देख कर इरादा बदल देते हैं ।  

जूता शास्त्र में कहीं लिखा है कि जूता अच्छे आदमी के पैर में हो तो दोनों की शोभा बढ़ती है। लेकिन किसी फैंकू के पैर में हो अवैध अस्त्र होता हैं। समझदार लोग सही कहते हैं संगती अच्छी नहीं हो तो अच्छा भला चरित्र खराब होने में देर नहीं लगती है। आदमी की हो न हो आजकल जूते की कीमत बहुत होती है । वो तो अच्छा हुआ कि जूता जप्त नहीं किया गया वरना सफ़ेद जूते का मुँह काला हो जाता।  टीवी पर ब्रेकिंग न्यूज चलती अलग से कि फलां कंपनी का जूता चल गया । जो कंपनी विज्ञापन देते नहीं थकती है वही सफाई देती रहती कि हमारी कंपनी के जूते बेशक ज्यादा चलते हैं लेकिन ऐसे नहीं 'चलते' हैं। आज की डेट में मिडिया से बड़ी मजाक कोई कर सकता है ! मिडिया किसी मौके को नहीं छोड़ती है, आज भी मौका बड़ा था। प्रश्न आया - " जूताबहाद्दूर, ट्रम्प और टेरीफ की खबरों के बीच आप अचानक सुर्खियों में आ गए, कैसा लग रहा है? "


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