देश भर के अख़बारों में जूते को लेकर हेड लाइन छप रही थी। पहली बार जूता इतने बड़े स्तर पर बदनाम हो रहा था। जूता पैरों में हो तो उसकी सार्थकता है। जब जब भी वह किसी के हाथों में आया तो बदनाम हुआ। दुकानदार जूता दिखाए तो ग्राहक कहते हैं और दिखाओ जरा। वोट के ग्राहक को दिखाओ तो हेडलाइन बन जाती है। चलने के मामले में जूते की प्रतिस्पर्धा चप्पल से है। विशेष परिस्थितियों में जूते से ज्यादा चप्पल चलती है। बल्कि यों कहना चाहिए कि आशिकों का देश है तो चलती ही रहती है । लेकिन समाज पुरुष प्रधान है, सो इतिहास जूते ही बनाते हैं। यही कारण है कि मारक महिलाएँ अब जूते पहनने लगी हैं वह भी हाई कील (हील) वाली । लड़की देख के छेड़ने वाले हाई कील देख कर इरादा बदल देते हैं ।
गुरुवार, 16 अक्टूबर 2025
जोखिम दूसरे वाले से
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें