आपको पता है हमारे
हाथों में लकीरें ही नहीं तोते भी होते हैं। कहते हैं कि लोग जब फुरसत
में होते हैं तो इन तोतों के साथ खेला करते हैं । दोनों में एक रिश्ता बन जाता था
अनदेखा सा। पता नहीं चलता था कि आदमी तोते में है या तोते आदमी में । एक अदृश्य
साथ होता है । मतलब अगर आदमी जब दफ्तर में
बॉस के सामने हो तब भी तोते साथ और प्रेमिका के साथ किसी गार्डन या ढाबे में हो तब
भी, यहाँ तक कि जब घर में हो तब भी तोते । तोतों का मुख्य काम यह है कि जब भी कोई
संकट सामने आता दिखे वो फ़ौरन उड़ भागें । जैसे कुछ दिन पहले चम्पक चौहान के साथ हुआ
। एक मस्तानी शाम दफ्तर के बाद प्रेमिका को गोलगप्पे खिलवा रहे थे कि उसका पति आ
गया। उसे देखते ही चम्पक चौहान के तोते उड़ गए। मन तो हुआ कि वे खुद उड़ जाते,
तोते भले ही गोलगप्पो कि प्लेट लिए खड़े रहते। लेकिन ऐसा नहीं हुआ
क्योंकि तोते किसी के मन की बात नहीं सुनते हैं । इधर पत्नी को चम्पक के साथ देख
कर उसके पति के तोते पहली किश्त में उड़ गए। दूसरी किश्त में बचे हुए भी उड़ गए,
क्योंकि साथ में उनकी अपनी प्रेमिका भी थी। दोनों पुरुष तोतों के
बिना भुने बैंगन की तरह काले कलूटे सलपड़े हो गए। कुछ सूझ नहीं रहा था, लगा जैसे तोते उनका दिमाग़ भी ले उड़े । करें तो क्या करें! अचानक चम्पक की बैटरी ऑन हुई और मशीनी हलचल के साथ उसने हाथ बढ़ा कर 'ग्लेड टू मीट यू' कह डाला । आश्चर्य की बात यह रही
कि प्रेमिका के पति को भी सेम मशीनी हलचल का लाभ मिला। इसका मतलब यह हुआ कि तोते
होते हैं तो आदमी आदमी रहता है और उनके उड़ते ही ढ़ोल हो जाता है। चम्पक ने कहा
"आज गोलगप्पे वाले का बड्डे है, इसका बड़ा आग्रह था सो
भाभीजी के साथ आना पड़ गया। आप भी लीजिये, आज पैसे नहीं लेगा
हम लोगों से।" मौके की नजाकत ताड़ कर आगे की
स्थिति गोलगप्पे वाले ने सम्हाल ली। बाद में जानकारों ने बताया कि तोते सिर्फ
पुरुषों के हाथों में होते हैं। स्त्रियों के हाथ में तोतियाँ भी नहीं होती हैं।
उनके हाथ में बुद्धू पुरुष होते हैं इसलिए बेवफा तोतों के लिए जगह नहीं बचती है।
जब कभी उड़ लेने का मौका आ ही जाए तो यह काम उन्हें ही करना पडता है।
इधर देश
में माहौल ऐसा है कि जब भी देखो आसमान तोतों से भरा पड़ा है। वजह, लोग भाषण दे रहे
हैं, बयान दे रहे हैं, वादे बरसा रहे हैं, तरह तरह से डरा रहे हैं और करोडों तोते
उड़ रहे हैं ! मालिक जानते हैं कि लोगों के हाथ खाली होते जा रहे हैं। हर हाथ डाटा
है फिर भी घाटा हो सकता है। जब जब महा-सत्यवादी मुँह खोलते हैं सवा सौ करोड़ हाथों से
तोते उड़ जाते हैं। कहते हैं काठ की हांडी दोबारा नहीं चढ़ती है। चढ़ती है भाई,
अगर चूल्हे में आग नहीं हो तो सौ बार चढ़ाइये। मुद्दा आग है और जनता हांडी पर आँख गड़ाए है। कल जब हांडी
की हकीकत सामने आएगी जनता के पास और और तोते उड़ा देने के आलावा क्या विकल्प होगा!? खैर ... सवाल है एक ...
भाइये एक ठो बात तो बताइयेगा जरा... भोटवा बिहार में पड़ता है तो तोतवा दिल्ली
में काहे उड़ता है !!?
------
