अखबार पढ़ने की आदत अच्छी है, इससे व्यक्ति की सोच और समझ सात
कलम, बारह पन्नों की सुरंग में गहरे तक उतरती है. पिछले कई दिनों से पढ़ रहा हूँ कि
कैसे समझदार लोग देखते देखते करोड़पति बन गए ! दुनिया में सब तरह के लोग हैं, जिन्हें
होना है वो हो जाते हैं और जिन्हें देखनाभर है वे टूंगते रह जाते हैं. मैं इसी
श्रेणी में हूँ और अखबार के जरिये देख रहा हूँ और सोच भी रहा हूँ. सोचना एक अच्छा
काम है, हालांकि इसको ले कर समाज में मत विभाजन है. कुछ लोग कंधे पर हाथ रख कर
हिदायती अंदाज में कहते हैं कि ‘ज्यादा मत सोच पगले, ये अच्छी बात नहीं है’. दूसरे मत
वाले बोलते हैं कि ‘सोचो, कोई तो रास्ता निकलेगा’. मै सोचता हूँ
कि मुझे सोचना चाहिए. जबरिया सोचने से भी रास्ते निकल आया करते हैं. जो लंबे
रास्ते पकड़ कर यहाँ से निकल लिए हैं निश्चित ही उन्होंने शुरुवात सोचने से ही की
होगी. सोचने के लिए हाथ पैर हिलाने जरूरत नहीं पड़ती, इससे अच्छी बात और क्या होगी.
बस बैठे रहिये मजे में और सोचते रहिये खरामा खरामा. इस साधना के चलते दुनिया अगर
आपको निकम्मा भी समझती रहे तो चिंता मत कीजिये. ये वो समाज है जो आरम्भ में निंदा
करता है लेकिन बाद में चरणों में लोटता है. कोई अगर ठान ले तो बिना रियाज के भी
सोच सकता है. कलाम साहब ने कहा था कि सपने देखो. सपने तो मुझे भी बहुत आते हैं,
ऐसे ऐसे कि आपको क्या बताऊँ !! आज ही एक सपना आया था.... लेकिन छोडो, आपको लगेगा
कि हाय मुझे क्यों नहीं आया. जरुरी नहीं कि कोई आदमी सपने में भी पैसों के पीछे ही
भागे. विश्व सुंदरियाँ हर किसी के सपने में आती भी कहाँ हैं. आदमी में सौंदर्य बोध
भी होना चाहिए. भाई साब सपने देखना भी एक तरह की जिद है. मन लायक सपने देखना सीखने
में कई बार एक उम्र खर्च हो जाती है. किसी फ़िल्मी हीरो ने कहा है कि ‘अगर आप दिल से
किसी को चाहते हो तो सारी कायनात उसे तुमसे मिलाने की कोशिश करती है’.
अभी ये सोच चल ही रहा था कि फ़ोन आया. उधर से एक सौम्य
स्त्री का स्वर सुनाई दिया- “मैं फलां बैंक से फलां बोल रही हूँ.” आगे कुछ और रटे
जुमलों के बाद उसने पूछा क्या आपको लोन की जरुरत है ? मैं समझ गया कि प्रोसेस शुरू
हो गई है. कायनात में यह बैंक और सुन्दर युवती भी शामिल है. आपका एक वाजिब सवाल हो
सकता है कि यह युवती है और सुन्दर भी है, यह तुम्हें कैसे पता !? तो मैं कहूँगा कि
आपकी और मेरी सोच में यही अंतर है. खैर मैंने उसे कहा कि – लोन की बहुत
जरुरत है जी. हिंदुस्तान में पैसे की जरुरत भला किसे नहीं है. सबसे ज्यादा जरुरत
तो पैसे वालों को ही है.
सुन्दर युवती बोली – “बैंक जानती है
सर. दरअसल देश में गरीब बहुत हैं और गरीबों को रुपयों की नहीं रोटी की जरुरत होती
है और आप भी जानते हैं कि बैंक रोटी नहीं बनाती है. इसलिए हम गरोबों से बात नहीं
करते हैं. खैर, जान कर अच्छा लगा कि आपको रुपयों की जरुरत है. सर, क्या मैं ये जान
सकती हूँ कि आपको कितना लोन चाहिए.”
“बोतल-किंग काल्या को कितना दिया था ? “ मैंने पूछा .
“ काल्या जी हजार करोड़ से ऊपर ले गए थे. “
“ कुछ और सुविधाएँ भी तो दीं होंगी उसको ?”
“ विलफुल-डिफाल्टर की सुविधा है सबके लिए. लेकिन इसके लिए
आपकी तरफ से मजबूत दावेदारी प्रस्तुत करना होगी. “
“ठीक है, तो आप प्लीज लोन देने की प्रक्रिया शुरू कीजिये.”
“ ओके सर, आपके पास कोई प्रोजेक्ट है जिस पर लोन दिया जा सके
?”
“प्रोजेक्ट तो नहीं है. लेकिन आपको इससे क्या, आप लोन दीजिए,
ये बैंक का काम है.”
“प्रोसीजर है सर, आप प्रोजेक्ट बनवा लीजिए, आजकल तो बन जाते
हैं.”
“छोडिये, इतना टाइम नहीं है मेरे पास. “
“आपको ऐसे कैसे छोड़ सकते हैं सर, बैंक अब हर कदम पर आपके साथ
है. प्रोजेक्ट हमारे पास तैयार पड़े हैं , आप बस साइन करें, काम हो जायेगा.”
“बड़े कस्टमर्स को आप बैंक में बुलाते हैं क्या !?”
“हम आ जायेंगे सर, आखिर लोन तो हमें देना है. ..... वैसे
आपके पास कोई प्रापर्टी तो होगी ?”
“प्रापर्टी तो तब बनेगी जब आप लोन देंगे. समझिए कि आपका लोन
ही प्रापर्टी है. आपको अपने ही लोन को प्रापर्टी समझने में कोई दिक्कत है क्या !?“
“ पहले की कोई प्रापर्टी नहीं है क्या !?” इस बार सुन्दर
युवती ने ‘सर’ नहीं कहा .
“है तो, पर उन पर आलरेडी लोन ले रखा है.”
“ चलेगा सर, आप हमें यह मत बताइयेगा कि आपने उन पर लोन ले
रखा है.”
“ ओह !! सॉरी . मैंने तो अभी आपको बता दिया !”
“ फोन पर बताया सर, पेपर पर नहीं. बैंक के कान नहीं होते
हैं, आप चिंता मत कीजिये.”
“कितनी सुन्दर हैं आप.”
“थेंक्स सर. ....!!”
“एक बात और पूछना थी. “
“जी, पूछिए सर .”
“बोतल-किंग काल्या का कितना लोन राइट ऑफ किया था आपकी बैंक
ने ?”
“ जब बैंक को चिंता नहीं है तो आपको चिंता क्यों सर !! हम
देते फास्ट हैं, लेते स्लो हैं. बैंक का व्यवहार सबके साथ सम्मानजनक होता है,
बशर्ते वो गरीब न हो.”
“वाह शुक्रिया आपका, आप वाकई बहुत सुन्दर हैं.”
“थेंक्स सर.”
“आपकी बैंक लोन देने में बड़ी फास्ट है !”
“क्या करें सर, जनता का पैसा बैंक पर बोझ होता है. आखिर हम
लोग कितना वेतन ले सकते हैं !! हद होती है किसी चीज की ! आप जैसे लोग ना हों तो
बैंकें हाय हाय करते दाम न तोड़ दें.”
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