बुधवार, 23 अक्तूबर 2013

शौचालय का सपना


               लम्बी प्रतीक्षा के बाद आखिर मेरा नंबर आया, उत्साह से मैंने बताया कि ‘‘सर मैंने एक सपना देखा है ......’’
             ‘‘ तुम बाबा हो !?! ’’ उन्होंने तुरंत ब्रेक लगाते हुए पूछा।
             ‘‘ नहीं, मैं बाबा नहीं ..... आम आदमी हूं । ’’
             ‘‘ तो फिर तुमने सपना कैसे देखा !?! ... सपना देखने के लिए बाकायदा नींद की जरूरत पड़ती है । आम आदमी सोता है क्या ? उसके नसीब में है ऐसी नींद जिसमें सपना भी हो ? झूठ बोलते हो। ..... कितने साल हो गए लोकतंत्र में रहते ?’’ वे गरम हुए ।
            ‘‘ सीनियर सिटिजन हूं ।’’
            ‘‘ और क्या चाहिए तुमको !? .... भजन करने की उम्र में सपने देखते हो ! बच्चे सुनेंगे तो क्या सोचेंगे ! लोकलाज का भी ध्यान नहीं है ! ’’
            ‘‘ सॉरी सर  ..... पर क्या करता .... चुनाव का समय चल रहा है और सभी पार्टियां सपना दिखा रही हैं इसलिए जरा सा देख लिया ...... गुस्ताखी हो गई। ’’
           ‘‘ देखो, सोना समृद्धि की निशानी है, चाहे वो कोई सा भी सोना हो। तुम लोगों को सोने की नहीं जागने की जरूरत है। आम आदमी की तरफ से सपने सरकार देखती है। यह सरकार का काम है कि गरीब आदमी, यानी आम आदमी के लिए वह खुद सपने देखे। इसी नैतिक उत्तरदायित्व के चलते सरकार को पांच साल रात-दिन सोते रहना पड़ता है । यह कोई मामूली काम नहीं है ! वो भी तब जब विरोधी लगातार छाती कूट रहे हों । इसके लिए एक किस्म का खानदानी दीर्ध-अनुभव चाहिए, जो सिर्फ हमारी पार्टी में है। यह नहीं कि चीखते-चिल्लाते खड़े हो गए कि सरकार हम बनाएंगे। ..... कितनी बार सपने देखते हो तुम ?’’ हुजूर लगभग फटकारते हुए बोले ।
           ‘‘ महीने में यही कोई चार-पांच बार।’’
           ‘‘ सारे लोग इतना देख लेते हैं क्या ? ’’
           ‘‘ जी, इतना तो देखते ही हैं।’’
           ‘‘ खजाना देखते होंगे तो ड्रीम -टेक्स लग जाएगा ।’’
           ‘‘ खजाना कहाँ  हजूर, .... ज्यादातर तो रोटी देखते हैं। ’’
           ‘‘ यही फर्क है आमआदमी और परमपूज्य बाबाजियों में। तुम लोग सपना भी देखते हो तो रोटी का !! और जताने चले आते हो ! तुम्हें इतना भी ज्ञान नहीं है कि किलों की खुदाई से रोटी नहीं निकला करती है। मीडिया भी खजाने के सपने को कवर करती है रोटी के सपने को नहीं। फिर क्यों देखते हैं लोग रोटी का इतना सपना ?!’’ हुजूर तनिक और गरमाए।
           ‘‘ आदत पड़ गई सर, आमआदमी पेट से सपने देखता है आंख से नहीं। ’’
           ‘‘ अरे ! फिर कन्फ्यूज कर रहे हो ! कल कहोगे टांग से सपना देखते हैं ! .... चलिए चलिए, आप फटाफट अपनी बात कहिए, सरकार के पास इतना टाइम नहीं है, .... खुदाई चल रही है । ’’ उन्होंने कुछ चिढ़ते और घड़ी देखते हुए कहा।
           ‘‘ सर मैंने सपना देखा कि हर घर के पास एक शौचालय है और ..... ’’
           ‘‘ शौचालय !! ... सिक्यूरिटी .... निकालो इसे बाहर ..... बेहूदे बदतमीज कहीं के, .... रोटी का सपना देखेंगे या फिर सीधे शौचालय का !! साठ साल में कोई तरक्की नहीं की इन लोगों ने ! अंग्रेज जहां छोड़ गए थे आज भी वहीं पड़े हैं। ’’
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