गुरुवार, 10 अक्तूबर 2013

मुंह देश में, पेट विदेश में


                    उसके बीस सिर साफ दिख रहे थे, मालूम हुआ कि वह पब्लिक सेक्टर का रावण है। बनाने वाले ने पेट और कमर इतने छोटे बनाए थे कि अच्छा भला आदमी शायरी के रोग से पीड़ित होने लगे- ‘पतली कमर है, तिरछी नजर है’। इधर कहने वाले चूक नहीं रहे थे- ‘‘ये क्या बात हुई भाई ! संस्कृति से खिलवाड़ करते हो ! सदियों से रावण के दस सिर बनते आ रहे हैं और तुम हो कि बीस सिर वाला खड़ा किए हो ! क्या मजाक है ये ! ’’। आयोजक बोला - ‘‘ चुनाव का मौसम आने वाला है, जनभावना का ध्यान रखना पड़ता है, सरकारी रावण हो और उसके बीस सिर न हों तो ठीक से प्रतिनिधित्व नहीं हो पाता है। प्रायवेट सेक्टर वालों ने कटौती शुरू कर दी है, वे अब एक सिर वाले रावण ही बना रहे हैं। आखिर जनता बेचारी जाए तो कहां जाए!’’
                       ‘‘चलिए माना, लेकिन बीस मुंह के हिसाब से पेट-कमर का अनुपात तो होना चाहिए ना ? बीस मुंह खाएंगे तो जाएगा कहाँ  !’’
                   ‘‘पब्लिक सेक्टर का पेट अटैच्ड नहीं होता है श्रीमान। मुंह देश  में और पेट विदेश  में होता है। कानून के हाथ लंबे होते हैं लेकिन राजनीति की आंत उससे भी ज्यादा लंबी होती है। आप नहीं समझेंगे, आप तो पुतले के दहन का मजा लीजिए और लड्डू खा कर सो जाइए।’’
                    मंहगाई इतनी बढ़ रही है कि जिम्मेदार लोग मुंह छुपाते फिर रहै हैं। सोचा था कि इस बार रावण भी अपने दो-चार मुंह  छुपाएगा, लेकिन इधर तो बेशरमी की हद हो रही है। बीस सिर !!
                    आयोजक पक्का था, बोला - नाराज मत हो श्रीमान, हम आपकी पीड़ा समझते हैं। दरअसल हमने मंहगाई का असली कारण बताने के लिए ही बीस सिर बनाए हैं। आप यहां से चुपचाप संदेश  ले कर जाइए, कुछ समझिये और कुछ समझाइये।
                    अचानक आगंतुक का ध्यान सिर से हट कर नीचे गया। वह चैंका- रावण के हाथ में तो ढ़ाल-तलवार होती है ! ये क्या है !?
                 ‘‘ एक हाथ में स्मार्ट फोन और दूसरे हाथ में ... सीडीआई है। ’’
                 ‘‘ स्मार्ट फोन का क्या करता है रावण !?’’
                 ‘‘ संसद में बैठे बैठे ..... आपको पता तो होगा ही ? ’’
                 ‘‘ तो भइया, एक बात और बता दो ..... इसका दहन कौन करेगा ? ’’
                 ‘‘ हमेशा  की तरह रामजी ही करेंगे शायद, अगर समय पर आ गए तो। ’’
                 ‘‘ राम जी कहीं व्यस्त हैं क्या ?’’
                 ‘‘ छापे पड़ रहे हैं उनके यहां सीडीआई के। ..... देखिए क्या होता है।’’
                 ‘‘ क्या हो सकता है !? ’’
                 ‘‘ क्या पता ..... बाहर से समर्थन ही देना पड़ जाए । ’’
                 ‘‘ ऐसे कैसे दे सकते हैं ! आखिर विधि का विधान भी कोई चीज है या नहीं !!’’
                 ‘‘ सरकारें न विधि से चलती है न विधान से। सरकार चलती है हाईकमान के फरमान से। सुना होगा, रावण को बचाने के लिए अध्यादेश  लाया जा रहा था ?’’
                 ‘‘ लेकिन वो तो बकवास था, नानसेंस, .... फाड़ कर फेंक देने लायक। ’’
                 ‘‘ आपने ठीक समझा श्रीमान, रावण के पेट में अमृत कहां है यह किसीको पता नहीं है। विभीषण की पहल के बिना कोई राम रावण को नहीं मार सकता है। लेकिन लोग विभीषण को आदर का स्थान दें तब तो । ’’
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