प्याज में जादुई गुण होते हैं। जब इफरात में होता है तो जनता कहती है कि बास मारता है, और जब कम होता है तो दवा की तरह समझा जाता है। बंदे बाजार में निकलें और उन्हें प्याज-टमाटर के दर्शन न हों तो सार्वजनिक बेचैनी और घबराहट के दौरे पड़ने लगते हैं। किचन में गृहणी ऐसे उदास हो जाती है मानो रक्षाबंधन का मौका है और भाई नहीं दीख रहा है। पूरा घर प्याज-टमाटर को ऐसे याद करता है जैसे श्राद्ध पर दादा-दादीजी याद आ रहे हों। वो तो अच्छा है कि अभी पंडितों ने प्याज पुराण नहीं लिखा वरना गली गली प्याजनारायण की कथा के आयोजन होने लगते। भक्तगण प्याजप्रदोष का व्रत रखते और पंडितजी ‘दूधो नहाओ, पूतो फलो’ की जगह ‘टमाटो-चटनी लगाओ, प्याज-पकौड़े खाओ’ के आसिस देते।
गरीब आदमी बड़ा चालाक होता है। प्याज मंहगा होता है तो वो पट्ठा प्याज खाना छोड़ देता है। लाल मिर्ची और नमक की चटनी से शांति पूर्वक रोटी खा लेता है और मस्त सो जाता है। इधर बेचारे अमीर आदमी को अपनी मेहनत की गाढ़ी कमाई से मंहगे प्याज खरीदना पड़ते हैं। आप कहेंगे कि वो मंहगी कार में चलते हैं, मंहगे बंगलों में रहते हैं, मंहगे टीवी, मंहगे फोन वगैरह। तो भई जान लो, यह सब बैंक का होता है, लोन देती है बैंकें, बुला बुला के देती है, परंतु प्याज उन्हें अपनी जेब से खरीदना पड़ता है। दीनहीन अमीर बेचारे ! आदत नहीं उन्हें अपना पैसा निकालने की। फेरी वाला जब प्याज के दाम बताता है तो उनकी आत्मा अंदर से चित्कार उठती है- ‘लूट मची है, डाके पड़ रहे हैं, सरकार अंधी-बहरी है ! अगर यही हाल रहा तो देख लेगें अगले चुनाव में। लेकिन बहुत कम लोगों को ध्यान आता है कि चुनाव वाले दिन ये लोग घर में बैठे प्याज के पकौडे खाते रहते हैं और वोट डालने जाते ही नहीं हैं। बैंकों को जैसे ही समझ पड़ेगी वो प्याज-टमाटर के लिए भी लोन देने लगेगी।
इधर भगवान किसान के साथ सांप-सीढ़ी का खेल खेलता रहता है। बाजार में प्याज के भाव बढ़ते हैं तो अगली बार किसान अपने सारे खेतों में प्याज ही प्याज बो डालता है। फसल भी जोरदार होती है लेकिन मंडी में भाव ऐसे रूठते हैं जैसे ब्याव में इकलौता तिरपट जीजा रूठता है। किसान मनाता रहता है पर भाव न आज आता और न ही कल। मजबूरन किसान को प्याज अपने जानवरों के आगे डालना पड़ती है। दूध का जला अबकी बार वो प्याज कम बोता है, तो मंडी में प्याज सोना हो जाती है। पिछली बार उसके जानवरों ने प्याज खाई अबकी उसके छोरा-छोरी को दो डली खाने को ना मिली। उपर भगवान मूंछ मरोड़ता है नीचे किसान।
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