गुरुवार, 21 अगस्त 2014

गंदगी करो और करने दो

           
   जब प्रधानमंत्रीजी बोले हैं कि सफाई रखो तो रखना पड़ेगी, सफाई का महत्व भले ही नहीं जानें पर आदेश  का मतलब तो जानते ही हैं। वरना अपन तो संत है, संत को सफाई से क्या। नहाए तो सीधे गंगा में जिसका कोई अर्थ भी है अन्यथा नहाना-धोना अपना चैन खोना है। इधर एक हमारे बाबूजी हैं, सारी उम्र जल से बैर निकालते रहे हैं। जब चिंतकों  ने कहा कि जल बचाओ तब भी उन्होंने दोनों वक्त स्नान किया। आदमी दिन में झाडू लगाए, मैला साफ करे तब तो उसका एक स्नान बनता है। परंतु सुबह नहा कर बाबूजी सारा दिन धोती समेटे अपने तखत पर पालथी मारे बैठे भगवान की नींद हराम किए रहते हैं, पता नहीं इस काम में वे गंदे किस तरह हो जाते हैं कि शाम को फिर पांच बल्टी का स्नान!! व्यंग्यप्रेमियों, देश  को नहाने-धोने वाले जितना गंदा करते हैं उतना दूसरा कोई शायद नहीं। कुम्भ के मेले को याद कीजिए, लाखों आदमी चला आ रहा है, मात्र नहाने भर के लिए। लोग तो चले जाते हैं अपनी धोती-लोटा ले कर, गंगा कहां जाए नहाने, उसको भी सफाई होना कि नहीं होना ? कहते हैं कि गंगा पाप धोती है, मैं पूछता हूं कि क्यों धोती है जी  ? गंगा बिना कुछ पूछेताछे पाप धो देती है इसलिए बंदे नहा-धो कर फिर भिड़ जाते हैं। अगर गंगा नहीं होती या फिर पाप धोने का ठेका उसके पास नहीं होता तो बहुत संभव था कि लोग पाप के प्रति संजीदा और सावधान रहते। मान लीजिए कि तम्बाखू खाने वाले साल में  एक बार गंगा में कुल्ला कर आए और केन्सर के खतरे से मुक्त हो जाएं तो फिर कौन तम्बाखू की और डाक्टरों की परवाह करेगा ! खूब खाओ और लगे रहो शहर भर की वाॅल-पेंटिंग में। कोई सफाई की बात कहे तो उपर वाले ने एक कान सुनने के लिए और दूसरा निकाल देने के लिए ही तो दिया है।
              बाबूजी को हमने कहा कि प्रधानमंत्री जी बोले हैं कि आसपास का माहौल भी साफ रखने की जरूरत है, कहो तो बाहर की सफाई करवा दें ? वार्मअप में वे पहले खंखारे, खिड़की से मुंह बाहर निकाल कर ‘ठों’ की आवाज के साथ सड़क पर थूका, मानो टीपू सुल्तान के जमाने की बारूद वाली बंदूक चली हो, बोले- ‘‘ क्या जरूरत है !! अभी दिवाली आएगी, लोग घरों की सफाई करेंगे और कचरा बाहर ही पटकेंगे। फिर पटखों का दौर चलेगा, सड़कें उनके कचरे से भर जाएंगी, .... इसी बीच देव उठ जाएंगे, शादियां शुरू हो जाएंगी। लोग बारात के पीछे कप-प्लेट और तमाम तरह की गंदगी छोड़ते जाएंगे। कितना उठाओगे, कितना साफ करोगे। कचरा और गंदगी हमारे उल्लास का, हमारी खुशी  का प्रतीक है। साफ सफाई देख कर हमारे लोग बीमार होने लगते हैं। सफाई के चक्कर में अगर देश  डिप्रेशन में चला गया तो नारे लगाने वालों का टोटा पड़ जाएगा प्रधानमंत्रीजी को। गंदगी देश  को जीवंतता प्रदान करती है। गंदगी करो और करने दो।’’ उन्होंने नारेनुमा शब्द उगले।
                 हमने कहा, - बाबूजी, आप खुद जो दो वक्त का स्नान करते हैं उसका क्या !? 
                वे बोले-‘‘ मन साफ होना चाहिए बालक, फिर बाहर की सफाई का कोई अर्थ नहीं रह जाता है। संत कह गए हैं ना ‘मन न रंगाए जोगी कपड़ा रंगाए’। देश  भर में कितनी झाडू लगा लो मन काला होगा तो जग में उजाला नहीं हो सकता है।’’
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