रविवार, 10 मई 2015

गांधीजी के छोड़े काम

                      देखो भइया ऐसा है कि गांधीजी के नाम से गुजारा भत्ता मिल रहा था और पार्टी चल रही थी मजे में ये कोई छोटी बात नहीं है। पार्टी वाला कोई कुछ करे न करे, गांधीजी के किए का टेका आज तक काम आया है। और सच्ची बात ये है कि नोटों पर गांधीजी इसीलिए हैं कि जनता को कुछ याद रहे न रहे उनका चेहरा जरूर याद रहना चाहिए। गरीब की फटी जेब से लेकर अमीर की तिजोरी तक सिर्फ 'गांधीजी ' का ही आना-जाना है। दिनभर की हाड़तोड़ मेहनत के बाद शाम को मजदूरी लेनेवाले और देनेवाले के बीच में  कौन 'मोहन' है ? पार्टी जानती है कि उसके कार्यकर्ता राजनीति में गांधी-निष्ठा के कारण ही आते हैं। जो काम किसी से नहीं होता वो गांधीजी से ही करवाया जाता है। श्रद्धा की यह गंगा उपर से नीचे की तक सबको भिगोती आई है, सब पवित्र हैं। साठ साल में पार्टी की रग रग में गांधी की गंध बस गई है। कुछ छातीकूट विरोधी इसे गलतियों में शुमार करते आए हैं तो उन्हें याद दिला दें कि गांधीजी ने साफ साफ कहा था कि -‘‘आजादी का कोई अर्थ नहीं है यदि इसमें गलतियां करने की आजादी शामिल न हो।’’ जनता ने आजादी का मजा लिया पार्टी ने गलतियों का। 
                  इधर पार्टी का संकट बढ़ गया है। गांधीगण गांधीजी को भूल गए और गांधीछाप के फेर में ऐसे पड़े कि बार बार धरे गए। जनता गांधी विरोधियों के बहकावे में आ गई और अपने आगे-पीछे सहित उनकी हो गई। अब वे राजनीति को बीहड़ और सत्ता को घोड़ा समझे मूंछ मरोड़ रहे हैं। गुजरात में मुर्गी अंडा देती है तो वो अंडा मुर्गी का नहीं गुजरात का माना जाता है। बापू का जनम गुजरात में हुआ तो वे किसी और के कैसे हो सकते हैं। खासकर घर वापसी के इस मौसम में उन्हें उस पार्टी से इस पार्टी में लाना जरूरी था। जब जब भी जरूरी समझा गया उन्होंने गांधीजी का पहले भी खूब आदर किया है। ईश्वर की इच्छा के विरुद्ध भी उन्हें स्वर्ग की उंचाई प्रदान की। 
                     बापू को वो पूरी तरह से खींच ले गए और पुरातन पार्टी खड़े खड़े गुबार देखती रही। बाद में जनता के सामने जा कर कहा कि गांधीछाप लूटने और गांधीजी को लूट ले जाने में बड़ा फर्क है, लेकिन किसीने ध्यान नहीं दिया। इसके बाद पटेल पकड़े गए, सुभाष उठाए, शास्त्री और नरसिंहराव भी खेंच लिए। एक एक कर सबकी घर वापसी होने लगी। अब बचे हुए चेहरों को बचाना एक समस्या हो गई। बिना मुआवजे के चेहरों का अधिग्रहण हो रहा है। पार्टी की युवाशक्ति छुट्टी मना कर लौट आई है, अब देखना इस लूट का विरोध। अरे भई जो गांधीविरोधी रहे हैं वो गांधीवादी कैसे हो सकते हैं ! ठोक के पूछेंगे कि कैसे पूरे करोगे गांधीजी के छोड़े काम ? 
                उधर जवाब में वे मानते हैं कि बड़ी जिम्मेदारी है उनके कंधों पर और वे पूरे करेंगे गांधीजी के छोड़े काम। किसी को सिखाने की जरूरत नहीं है और न ही कोई टोकाटाकी करे। बापू ने सत्य बोला और झूठ छोड़ा है। उन्होंने अहिंसा को अपनाया और हिंसा को छोड़ा है। शांति को रखा क्रोध को छोड़ा, बुरा देखना छोड़ा, बुरा सुनना छोड़ा और बुरा बोलना छोड़ा। उन्होंने जो छोड़ा है उसे हमने पहले से ही अपना रखा है।
                 एकता एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है। इसके लिए जरूरी है कि समाज टुकड़ों में बंटा रहे। लोग भले ही सांप्रदायिक कहें, दक्षिणपंथी कहें तो कहते रहें, लेकिन एकता की प्रक्रिया गांधीजी की इच्छा के अनुसार ‘सतत’ चलाई जाती रहेगी। उन्होंने ब्रह्मचर्य का महत्व बताया है। उसके बारे में ज्यादा कहने की जरूरत नहीं है, सब जानते ही हैं। बापू बोले थे - ‘‘ व्यक्ति अपने विचारों से निर्मित प्राणी है, वो जो सोचता है वही बन जाता है।’’ किन्तु सच्चाई आपके सामने है, सोचा तो कइयों ने होगा लेकिन जो बनना जानता  है वही बना।
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