शुक्रवार, 22 मई 2015

तबादला-नीति

                   
  भड़कते सूरज और पिघलती सड़कों के बीच सत्ता के गलियारों में कहीं तबादलों का मौसम भी रेंग रहा है। घरों से वही लोग निकल रहे हैं जिनके हाथ में ‘चलो बुलावा आया है’ के संदेश  हैं। हर कोई एक ही दिशा  में बढ़ रहा है और उसका नाम है हिमाला भवन। सुना है सरकार यहीं बैठती है। वैसे देखा आए तो सरकार है कहीं भी बैठ सकती है। बैठे ही यह जरूरी भी नहीं है, बैठे बैठे, नहीं बैठे नहीं बैठे। हालांकि मुनादी तो आठ घंटे बैठने की है लेकिन आपको पता ही होगा कि सारे सरकारी काम बैठ कर थोड़ी होते हैं, कुछ के लिए उठना भी पड़ता है। उठने में शक्ति खर्च होती है, अब शक्ति खर्च होगी तो रीचार्ज भी कराना ही पड़ेगा। समझ रहे हैं ना आप, इतना समझ लेने के बाद ही आदमी राजधानी का टिकट कटाता है। 
             यों कायदे से वे जयकिशन हैं लेकिन हिमाला भवन में जेकीचेन नाम से सिक्कों की तरह बिन्दास चलते हैं। तबादलों के इस मौसम में वे जनसेवा के पुण्य कार्य में व्यस्त हैं। ईश्वर  के चार हाथ होते हैं। या यों कह लीजिए कि उसके चार हाथ हैं इसलिए ईश्वर  है। वह एक से दरवाजा बंद करता है तो दूसरे से खोलता भी है। सरकार के आठ हाथ होते हैं आक्टोपस की तरह। एक हाथ से पकड़ती है तो दूसरे किसी हाथ से छोड़ती भी है। जानकारों का कहना है कि पकड़ती इसलिए है कि छोड़ सके। पकड़ने और छोड़ने के बीच कुछ और हाथ भी होते हैं और सब बिना चूक अपना काम करते हैं। 
              जेकीचेन के सामने एक नए नए विधायक उपस्थित हैं जो अभी तक यह तय नहीं कर पाए हैं कि रौब गांठें या कि धिधिया कर काम निकालें। उनके हाथ में पांच नामों की एक सूचि है जिनका तबादला वे चाहते हैं। 
           ‘‘जी, मुझे पता है कि आप खुद विधायक हैं। आपके ये पांचों नाम मैंने उपर पहुंचा दिए थे। आप चाहें तो खुद उनसे बात कर लें।’’ जेकीचेन ने बहुत सफाई से विधायकजी के सामने चुनौती रख दी कि हो हिम्मत तो बात कर लो। 
              आजकल हालात अच्छे नहीं हैं। सरकार दो-तिहाई बहुमत के साथ चल रही है और अपने विधायकों को भी तबेले की भैंसों से ज्यादा कुछ नहीं मानती है। ऐसे में उपर बात करना अपना कुट्टी-चारा करवाना हो सकता है। लेकिन तब जरूरी हो जाता है जब पीछे पांच बंदे उम्मीद के साथ खड़े हों । 
             ‘‘ सरजी मैं पार्टी का विधायक हूं, पांच नाम आपकी सेवा में दिए हैं ये तो आपको करना ही पड़ेंगे सरजी। आखिर मुझे भी इलाके में मूं दिखाना है सरजी ।’’ 
               ‘‘ फोन पे ये बात नहीं हो सकती है। आपको पता होना चाहिए कि तबादले नीति के अनुसार होते हैं।’’ उधर से आवाज आई, विधायक को पता नहीं था कि मंत्री बोल रहे हैं या उनके पीए का पीए।
                     ‘‘ देखिए सरजी, ये तबादले तो आपको करना ही पड़ेंगे चाहे कैसे भी हों। आखिर ये हमारी इज्जत का सवाल है सरजी।’’
              ‘‘राजनीति में इज्जत का क्या काम विधायकजी ? और पार्टी को किसीकी इज्जत से क्या लेना देना !? आप पता कर लो, तबादले नीति के अनुसार ही होते हैं। ’’ उधर से दोबारा नीतिराग बजा।
              ‘‘ सरजी देखिए मैं कोई उल्टा-सीधा बयान दे मरूंगा । फिर मत कहियो कि पार्टी की छबि खराब कर दी।’’
                ‘‘ देखो जी मुर्गी जब बीट करती है तो वो उसकी निजी बीट होती है और जब अंडा देती है तो वह पोल्र्टी का होता है। हाईकमान राजनीतिक के सेलीब्रिटी शेफ हैं, बीमार मुर्गी को बिरयानी में बदल देते हैं। आप नाराज न हों नीति के संबंध में गौर करें तो ठीक होगा।’’
                   अब जेकीचेन के मुंह खोलने का वक्त हो गया था। बोले - ‘‘ जब वे बोल रहे हैं कि तबादले नीति के अनुसार होगें तो आप ऐसा करें ..... पांचवे माले पर कमरा नंबर पांच सौ पचपन में मैडम नीति राजपाण्डे से मिल लें।’’
                                                           ----

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें