कुछ लोग हर चीज को गंभीरता से ले लेते हैं, मजाक तक को भी। कुछ मारे डर के दुबक जाते हैं, जैसे केन्सर के अंदेशे में तम्बाकू-सिगरेट छोड़ देते हैं और शराब पीने लगते हैं। क्यों न पियें, सरकार तम्बाकू-सिगरेट पर प्रतिबंध लगा रही है और शराब की दुकान हर दूसरी गली में है तो डाक्टरों से पूछ कर ही खुलवाई होगी। भरोसा है सरकार पर, खुद जनता ने जिम्मेदारी से चुनी है। लेकिन ऐसे भी कम नहीं हैं जो मानते है कि जन्म और मृत्यु उप्परवाले के हाथ में है, उपर वाला जन्म-मृत्यु मसलता रहता है और नीचे वाला बेफिक्र तम्बाकू-चूना। अपना अपना काम करो भई, डू नाट डिस्टर्ब। जब आना हो आ जाना, बुलाना हो बुला लेना।
आशंका के बारे में आपको पता ही होगा कि वो कहीं भी, कभी पैदा हो जाती है। पैदा हो जाने के बाद आमतौर पर आशंका को दबाए जाने का चलन है। लेकिन यहां भी विज्ञान के नियमानुसार जितना दबाया जाता है आशंका उससे दुगनी ताकत के साथ बाहर आ जाती है। गीता ज्ञान है कि जो जन्मा है वो मरेगा भी। आशंका पैदा होती है तो उसे व्यक्त भी होना ही है। अगर दक्षता पूर्वक आशंका के बीज बोए जाएं तो सत्ता की हरी हरी फसल भी लहलहा सकती है। लेकिन इधर जब से मौसम विभाग ने सूखे की आशंका व्यक्त की है तो रियल किसानों के प्राण सूख गए हैं। जिन्होंने आत्महत्या स्थगित कर रखी थी वे पुनर्विचार की मुद्रा में आ रहे हैं। अब तक अपने मदारी को देख देख कर शेयर बाजार बंदरों जैसा उछल रहा था, आशंका सुनी कि पट्ट-से लुढ़क गया। अच्छे दिनों का ढोल भी मजे में बज रहा था कि अचानक एक तरफ का चमड़ा फट गया। जो दलहन-तिलहन बाजार में ढ़ीले थे आनन फानन टाइट हो कर गोदाम का रुख करने लगे। चारों ओर तेजी की लाठी के साथ पथसंचलन शुरू हो गया। गिनती की कौडी लाने वाले तमाम घर मुरझा गए। मौसम विभाग पर यों तो किसी को विश्वास नहीं है लेकिन क्या भरोसा काली जुबान का। इधर विभाग मानता है कि कर्म किये जा फल की चिंता मत कर। बिना वैधानिक चेतावनी के उसने आशंका व्यक्त कर अपना अनुष्ठान पूरा कर दिया है अब आप मानो या न मानो आपकी मर्जी।
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