कामरेड उस मुकाम पर पहुंच गए थे जब आदमी एक लकड़ी और कुछ अलौकिक
कामनाओं के सहारे चलने लगता है । यों देखा जाए तो कामरेड के पास क्या नहीं है । बेटे
बाजार के बीहड़ में फावड़े से खींच रहे हैं और बोरियों में ला रहे हैं । बंगले में डाबरमेन,
बाक्सर और
लेबराडोर उस प्रतिष्ठा को बुलंद करते हैं जिसे कभी कामरेड ने सड़कों पर नारे लगा कर
धूल में मिलाया था । अक्सर मोटे कपड़ों और सस्ते जूतों के सहारे वे सच का सामना करने
की असफल कोशिश करते पाए जाते हैं । बावजूद बगल से उधड़ा कुर्ता पहनने के वे अपने पर
लगाए प्रश्न चिन्हों को परास्त नहीं कर पाते हैं । उनका प्रतिप्रश्न होता कि कामरेड
के गाल लाल नहीं हो सकते हैं ऐसा कहां लिखा है ! किसी के मोटा हो जाने से मार्क्सवाद
पतला हो जाता है क्या ? कामरेड को उसकी लाल कार से नहीं उसके लाल विचारों से पहचाना
जाना चाहिए । कामरेड ने कई दफा बार का छोटा-बड़ा बिल चुकाया है,
लेकिन बावजूद
इसके साथियों ने उन्हें कभी भी ‘नीट-कामरेड’
नहीं माना।
कभी पूंजीवादी सोड़ा तो कभी दक्षिणपंथी पानी मिला कर उसका असर कम करते रहे। आखिर एक
दिन साफ साफ बात हो गई। साथियों ने कहा कि बिल का पेमेंट तो ठीक है लेकिन बैरे को मात्र
दो-तीन रुपए की टिप दे कर उसका अपमान करते हो! ये पूंजीवदी आचरण और बुर्जुवा सोच है।
कामरेड सहमत नहीं हुआ- ‘‘ज्यादा टिप देने वाला कामरेड हो जाएगा क्या
? कैसी
बातें करते हो ! ...... अपना भाई समझ कर उसे टिप देता हूं भले ही कम हो।’’
‘‘भाई टिप नहीं हिस्सा मांगते हैं कामरेड।
....... हम भी आपके भाई हैं, .... ये सोचा कभी आपने ?’’
पुराना साथी
महेश बोला।
‘‘देखो महेश,
बुरे दिन किस
पर नहीं आते हैं। न चाहते हुए भी मैं आज धनवान हूं। जबान का स्वाद भले ही बदल गया हो
पर विचार तो आज भी वही हैं। लाल झंडा देख कर मैं भड़कता नहीं हूं,
इसका क्या
मतलब है ?’’ कामरेड रुका .... और दो सांस लेने के बाद फिर बोला- ‘‘उम्र के इस मुकाम पर कुछ भी
हो सकता है ...... तुम्हें मैंने हमेशा अपना विश्वसनीय माना है ...... तुमसे एक गुजारिश
है, ...... जब मेरी अर्थी निकले .... तुम .... तुम खुद ....मेरे लिए ‘लाल सलाम’
के नारे लगवा
देना ..... वरना मेरी आत्मा को मोक्ष नहीं मिलेगा।’’ कामरेड फफक पड़ा।
‘‘ अरे ! भावुक मत बनो कामरेड ! ..... ऐसा कुछ
नहीं होगा क्योंकि कामरेड़ों की आत्मा नहीं होती है, न पुनर्जन्म होता है और न ही मोक्ष
। दक्षिणपंथियों की सोहबत में मार्क्सवाद को आपने चरणामृत में बदल लिया है ! ’’
महेश ने जेब
से रुमाल निकाल कर उनके आंसू पोंछे और इस बात को याद रखने के लिए कहा कि वक्त और जरूरत
पड़ने पर हम लोगों के बीच आंसू पोंछने की परंपरा अभी बची हुई है ।
‘‘ मैं जिन्दगी भर तुम लोगों के बीच रहा ,
यह जानते हुए
कि तुम वो नहीं हो जिसका दावा करते रहे हो । ’’ कामरेड के आंसू फिर बह पड़े ।
‘‘ कामरेड, क्या आप अपनी गलती पर रो रहे हैं ?
’’
‘‘ गलती पर नहीं .... मूर्खता पर । मुझे नहीं
पता था कि एक बार कामरेड़ हो जाने के बाद कोई विकल्प नहीं बचता है । ’’
‘‘ जो अपने लिए विकल्प की चाह रखते हैं वे कामरेड
नहीं रहते हैं । ’’
‘‘ मैं जिंदगी के तीस साल भुलावे में
रहा, ..... बावजूद इसके मुझे ‘लाल सलाम’ चाहिए । मुझसे वादा करो महेश । ’’ कामरेड ने महेश का हाथ पकड़ लिया ।
‘‘ देखिये, आप हमेशा बिल चुकाते रहे हैं ..... मैं
कोशिश करूंगा । ’’ महेश ने कहा ।
‘‘ कोशिश नहीं वादा करो । ...... और याद रखो ..... तुम्हारा वादा एक बार-साथी का वादा है । ’’
‘‘ ठीक है .... मैं वादा करता हूं । ’’
‘‘ शुक्रिया महेश ..... अब मैं निश्चिन्त हो कर जा सकूंगा । ’’
‘‘ कहाँ जा रहे हो कामरेड !?
’’
‘‘ चार धाम की यात्रा पर । ...... पर कहना मत
किसी से । ’’
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