मंगलवार, 1 अक्तूबर 2019

लोकतन्त्र और बकरियाँ




शाकाहारी लोग बकरी को एक प्राणी मानते है । अन्यजन इसे मात्र चौपाया समझते हैं और उन्हें जानकर आश्चर्य होता है कि वे दूध भी देती हैं । विशेषज्ञों के अनुसार बकरियाँ दोपाया भी होती हैं और जरूरत पड़ने पर वोट देती हैं । बकरियाँ मानती हैं कि  वे प्रोटीन-विटामिन के साथ बहुत ताकतवर हैं । गांधी जी की सूखी टांगों में जान उन्हीं ने डाली थी । गांधी जी अगर राष्ट्रपिता हैं तो कोई माने न माने वे मानती हैं उन्हें दूध पिलाने वाली बकरी राष्ट्र-दादी हुई । गांधी जी कह गए थे कि बकरिम्मा जिस तरह मुझे जिंदा रखा तुम लोकतन्त्र को भी टनाटन रखना । लेकिन अफसोस कि अभी तक देश ने बकरी-डे या बकरी-दिवस तक घोषित नहीं किया ।
बकरियाँ पालतू भी होती हैं और जंगली भी । पालतू बकरियाँ पाले जाने की मोहताज होती हैं । उन्हें मुफ्त दानापानी, दवा, बिजली वगैरह मिलता है । जंगली बकरियाँ दरअसल बकरियाँ होती ही नहीं है । बकरी की खाल के नीचे असल में वे क्या हैं इस पर शोध की जरूरत है; जो संभव नहीं है क्योंकि शोध पर धन प्रायः वे ही खर्च करती हैं । जंगली बकरियों की एक विशेषता यह होती है कि वे वोट नहीं देती हैं । दूसरा, वे वोट देने वाली पालतू बकरियों से नफरत करती हैं और उनसे अपने को श्रेष्ठ मानती हैं । तीसरा यह कि मांसाहारी होती हैं और जमाना जिन्हें जंगल का राजा कहता है मौका पड़ने पर उसे भी खा जाती हैं । गांधी जी का जमाना और था तब जंगली बकरियाँ भी दूध दे देती थीं । फिर देश आज़ाद हो गया और गांधी जी भी नहीं रहे । जंगली बकरियां मोटी होने लगीं ।  उनके पास काफी धन होता है लेकिन किसी को पता नहीं पड़ता है कि इतना धन आया कहाँ से ! अपनी खाल बचाने के लिए वे कानून के बड़े कीड़ों को जिल्द सहित संविधान चाटने के काम में लगा देती हैं । बेकवर्ड बकरियाँ को देखें तो वे गरीब होती हैं और वोट देने के अलावा हांडी के काम आती हैं । बैकवर्ड बकरियों के बच्चे महाबेकवर्ड होते हैं और जंगली बकरियों के बच्चे महाजंगली । महाजंगली अपनी भूख मिटाने के लिए अक्सर सरकारी बंगलों के गार्डन चर जाते हैं । ताज्जुब कि तब भी उनकी भूख नहीं मिटती है । बैकवर्ड बकरियों की मेंगनी से उम्दा खाद बनती है जबकि जंगली बकरियों की मेंगनी से सरकारी च्यवनप्राश । इस अंतर को ही टीवी वाले विकास बताते हैं ।  
 बकरियाँ मोहब्बत भी करती हैं और प्रायः इसके अंजाम पर रोती हैं । वे परिवार नियोजन का विरोध नहीं करती लेकिन पालन भी नहीं करती हैं, इसलिए बच्चे भी ज्यादा पैदा करती हैं । वे मानती हैं कि हर बार बच्चे दो ही अच्छे । इससे दुनिया में कम बच्चों का संदेश भी जाता है और उनकी मनमानी भी परवान चढ़ती है । आंकड़े बताते हैं कि सन सैंतालीस में इतने करोड़ बकरियाँ थी जो अब कुल मिला कर इतने सौ करोड़ हो गई हैं । लोकतन्त्र में बकरी पालन एक लाभकारी धंधा है । बकरियों को लगता है कि पालन का सिस्टम उनके हक में है और पालने वाले मानते हैं कि उनके । जब भी कोई उन्हें भाइयो और बहनो क़हता है तो बकरियाँ मैं – मैं कहते उछलने लगती हैं । कभी कभी कोई बकरी खुद राजनीति करने का सोचती है लेकिन सफल नहीं होती है । क्योंकि बकरियाँ संगठन का महत्व नहीं समझती हैं । लखनऊ की बकरी भी हम नहीं बोलती, हमेशा मैं बोलती है । ऐसे में भला कोई बकरी कभी नेता बन सकती हैं !? ...... देखिए आवाज आ रही है मैं मैं
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