शुक्रवार, 4 अक्तूबर 2019

खफ़ा इन्द्र और रावण



इंद्र को क्रोध आ रहा था, पिछले दिनों किसी ने ताना दिया। बात पुरानी है, रावण का पुत्र मेघनाद महाबली था । उसने इंद्र को पराजित किया और बंदी बना कर लंका ले आया । इसके बाद मेघनाद का नाम इंद्रजीत पड़ा। युद्ध में हार-जीत होती ही है। रावण की कैद में इंद्र को बहुत कष्ट हुआ। चलो उसकी भी कोई बात नहीं, कैद में तो सबको कद्दू होना पड़ता है । लेकिन इन्द्र को लगता है कि जो अपमान उसका हुआ वैसा आज तक किसी का नहीं हुआ होगा। इंद्र ने एक बार कृष्ण से पंगा ले लिया था तो कृष्ण ने इंद्र की पूजा बंद करवा दी। इन्द्र ने कुपित हो कर भारी वर्षा करवाई । लेकिन कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत उठा लिया और अपनी जनता को बचा लिया। तब भी इन्द्र की बहुत किरकिरी हुई। आज भी लोग जब तब इन्द्र की खिल्ली उड़ते हैं। वर्षा के लिए कोई मेंढक मेंढकी का ब्याह करवाता है, कोई निवस्त्र हो कर खेत में हल चलाता है, कोई औंधे तवे पर रोटी बना कर लानत भेजता है। देश में तलाक के खिलाफ माहौल है लेकिन कुछ लोगों ने मेढक मेंढकी का तलाक करवा दिया। मीडिया ने इसका खूब मज़ाक बनाया। इन्द्र को लगा कि उसे गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है। पिछले वर्षों में उसने अल्प वर्षा करवा कर लोगों को डराया था। लेकिन लोग मोटी  चमड़ी के हो गए हैं। इस बार भारी वर्षा के इरादे के साथ इन्द्र ने मोर्चा खोल दिया और परिणाम सामने है। लोग अपने बेडरूम से नाव में बैठ कर निकल रहे हैं और तैरती डायनिंग टेबल पर खाना खाते हैं। पूरा देश चेरापूंजी हो रहा है। पीने के पानी की हाय हाय मची हुई है और पानी से तौबा भी कर रहे हैं।

नजारे के लिए इन्द्र निकले तो उन्हें रावण दिख गया। छिंकता-काँपता हुआ रावण देख कर उसे कैद के दिन याद आ गए। कैद के समय मेघनाद ने पूरा निचोड़ कर रख दिया था और ये रावणवा देख कर खी-खी कर रहा था। वह तो अच्छा हुआ कुबेर भी उसकी काँख में दबा हुआ था वरना टाइम पास करना मुश्किल हो जाता। सोचा आज आया है ऊँट पहाड़ के नीचे तो दो बात सुना लेना चाहिए.

"क्यों रावणराज! इतना काँप क्यों रहे हो? जुकाम हो गया है क्या! अरे भाई कुछ लेते क्यों नहीं? कुछ लिया?" पुलक के साथ इन्द्र ने पूछा।

"आप वर्षा बंद करो इन्द्रदेव। हर वर्ष लोग जला जला कर मेरा जीवन लंबा करते हैं। अग्नि के कारण मैं अमर हूँ। मुझे सम्मान पूर्वक, समारोह पूर्वक जलना है। इतनी वर्षा में सड़-गल कर मैं हमेशा के लिए नष्ट हो जाऊँगा । ऐसा हुआ तो क्या तुम्हें अच्छा लगेगा?" रावण ने ठिठुरते हुए कहा।

"मैं जनता हूँ तुम अकेले नहीं हो रावण। तुमने आज घर घर और गली-गली में अपने क्लोन खड़े कर दिये हैं। तुम्हारे कारण जब सारी व्यवस्था ही सड़ गल-रही हो तो तुम्हें भी उसके साथ होना चाहिए । " कह कर इन्द्र ने पूरे वेग से वर्षा आरंभ कर दी।
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