शादी
ब्याह का ऐसा है कि अपने यहाँ ज़्यादातर भगवान की मर्जी से होते हैं । अब चूंकि बीच
में उप्पर वाला होता है इसलिए लोग आँखें बंद करके कर लेते हैं । यों तो कहा गया है
कि प्रेम अंधा होता है । यहाँ पहले अंधत्व होता है और अनुकूलता देख कर बाद में प्रेम
भी पसर जाता है । ऐसा ही एक प्रसंग है,
काजोल को राज से प्रेम हुआ और दन्न से ब्याह भी हो गया । बापू पहले ना-नू हुए
लेकिन जैसा कि उप्पर वाले ने स्क्रिप्ट लिख रखी थी, आखिर में
बोल दिए कि – “जा काजोल जा, ... जी ले अपनी जिंदगी“ ।
काजोल
आज्ञाकारी है और पापा के कहे अनुसार अपनी प्योर जिंदगी जी रही थी कि होली आ गई ।
काजोल की आँखें तब खुली जब फ्री गिफ्ट मिले चारों देवर होली के नाम पर डरावनी
अंगड़ाइयाँ लेने लगे । यही नहीं चचेरे ममेरे देवरों के भी फोन आने लगे कि हम लोग
वाट्स एप मेसेज से होली नहीं खेलने वाले हैं,
खुद आएंगे, तैयार रहिए । पति राज से कहा तो उसकी लाचारी के
पत्ते झरने लगे । बोले – “ क क क काजोल, अगर दिक्कत हो तो
मैं नहीं खेलूँगा इस बार । अपना क्या है, आगे देखेंगे कभी ।
लेकिन भाइयों को रोकूँगा तो बड़ी बदनामी होगी । रिशतेदारों में दूर दूर तक कोई भाभी
नहीं है । तुम्हारा अकेले की भाभियाना हुकूमत है । थोड़ी हिम्मत रखो तो होली के मजे
ले सकती हो ।“
“हिम्मत
!! ... “ काजोल भड़की । “भूखे देवरों के पिंजरे
में कूद जाऊँ !? ... हिम्मत हो न हो, अकल तो है मुझमें । “
“भाग्यवान
अक्ल का इस्तेमाल तो तुम पहले ही कर चुकी हो शादी करके । अब मौका है तो हिम्मत का भी
इस्तेमाल करो । वैवाहिक जीवन पथ बड़ा दुर्गम होता है । इसमें हमेशा दिवाली नहीं आती
है, कभी कभी होली भी आती है ।“ राज ने समझाया ।
“इतने
सारे उधार देवरों के साथ होली नगद करना कोई बच्चों का खेल नहीं है । ... मैं होली
नहीं खेलूँगी” । काजोल ने ‘मैं झाँसी नहीं
दूँगी की तर्ज पर निर्णय सुना दिया ।
दूसरी
तरफ तैयारी पूरी है । छोटे देवर ने बड़ी सी पिचकारी खरीद ली है, ए-के 47 जैसी । दूसरा टेंट हाउस से एक बड़ा कढ़ाव आर्डर किए बैठा है । पता
नहीं भाभी को रंगेगा या तलेगा । तीसरा भाभी की मांग में सूखा रंग भरने का इरादा
बनाए हुए है ताकि भाभी जब जब सिर धोए तो और और रंगती जाए । चौथा भांग और ठंडाई के
जरिए होली को यादगार बनाने वाला है । सुबह से शाम तक एक्जिट पोल की तरह होली
अनुमान चल रहे हैं । होली का मस्त मजा बतर्ज मुंगेरीलाल के होलियाते सपनों के साथ ‘रंग बरसे भीगे चुनार वाली’ भी सुनाई दे रहा है ।
काजोल जितना डरती देवर उतना अपने पिटारे से इरादों के साँप लहराते । बेचारी ‘एक नार नौ बीमार’ ।
आखिर
काजोल ने पति राज को साफ साफ कह दिया कि उस पर एक बूंद भी रंग पड़ा तो वह शहर कि
प्रदूषित नदी में कूद कर जान दे देगी । राज ने समझाया कि प्रदूषित नदी में मत
कूदना क क क काजोल, बड़ी बदबू होती है
उसमें । बॉडी निकले वाले मिलते नहीं हैं आसानी से । लेकिन रंग से बचने के लिए
ड्रेनेज वाली नदी में कूदना कौन सी बुद्धिमानी होगी !! सरकार जल्द ही नदी साफ करने
के लिए टेंडर जारी करने वाली है । अगर साफ हो जाए तो अगली बार कूद जाना । इस बार समझदारी
इसी में है कि होली खेल लो ।
काजोल
को बचपन की होली याद आई । कुलजीत के कोई भाई नहीं है, अकेला है बेचारा । उसको हर साल रंग भरे सोंटे से पीटने में कितना मजा आता
था । बोली- “तुम मुझे मायके भेज दो । कुलजीत के कोई भाई नहीं है और होली पर खुद भी
भीगी बिल्ली हो जाता है । उसके साथ खेल लूँगी, इधर तुम जानो
तुम्हारे भाई जाने ।“
“कुलजीत
अब गाँव में नहीं है, काम मांगने मुंबई
गया हुआ है । अब तुम्हें मेरे घर में ही
रहना है, जीना है मारना है और होली खेलना है क क क काजोल । “
राज ने तरकीब से उसकी मजबूरियाँ याद दिलाईं ।
बहुत
सोचने के बाद आखिर काजोल ने कमर में पल्लू खोंसा और नौ ग्रहों यानी देवरों को कह
दिया कि वह होली खेलेगी । लेकिन पहले राज से खेलेगी उसके बाद फौज से । देवर दल खुश
हुआ । होली के दिन खूब भांग छ्नी, कढ़ाव भरा, ठुमके चले पर भाभी नहीं निकली, अंदर राज पर सोंटे
चलती रही । बहुत दरवाजा पीटा गया, मिन्नते हुईं तब रंगीपुती
काजोल बाहर आई । उधार बैठा देवर-दल टूट पड़ा । जी भर होली खेलने के बाद कोई इधर
लुढ़का कोई उधर ढेर हुआ । रंग से सराबोर भाभी भी अपने कमरे में चली गई ।
काजोल
ने उसे बिना गले लगाए थेंक यू कहा । रंगी काजोल बोली- “सोरोगेसी का और कोई काम हो
तो बताना काजोल दीदी” । राज ने खुश होते हुए पूछा –“सोरोगेसी में और क्या क्या कर
लेती हो तुम !?” काजोल नेआँख दिखते हुए जवाब
दिया – “सोरोगेट सास भी बन जाती है ये । बनवाऊँ क्या अपनी सास ?”
फीस लेकर सोरोगेट-भाभी पिछले दरवाजे से रवाना हो गई ।
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