शुक्रवार, 3 जुलाई 2020

कृपा-कारोबार और राम मोहन रास्तेवाला

इस मार्केट में कृपा को लेकर बड़ी ले-दे मची हुई है । मंत्री-वंत्री को छोड़िए कृपा के मामले में चपरासी भी हाथ तंग किये घूम रहे हैं । कृपा ऐसे नहीं मिलती जैसे बाज़ार में ठंडा पानी मिलता है । दस/बीस का नोट फेंका और फट्ट से ढक्कन खोल कर गट्ट से पी गए । कुछ का मानना है कि कृपा का दिव्य मोल होता है । बाज़ार भाव से लो तो हर चीज मिल सकती है । ज्यादा मोलभाव करने वालों को वैसे भी नरक की एक्सपायरी डेटेड सीट मिलती है । कृपादाता कोई भोले शंकर नहीं हैं कि एक लोटा जल चढ़ा कर घंटा ठोंक दिया और हो गए प्रभु प्रसन्न । कारोबार में यह सब नहीं चलता है । कृपा का बाज़ार बहुत बड़ा है । मंडियाँ लगती हैं और दलाल भी भिड़े रहते हैं । दुनिया में यही एक ऐसी मंडी है जो होती है पर दिखाई नहीं देती है । जो मार्ग जानता है उसे ही प्रभु मिलते हैं । जो नहीं जानता वह कृपा की कुंजी दीवार पर लटके केलेण्डर में ढूँढता है, लेकिन नहीं मिलती है । केलेण्डर सिर्फ कृपा का विज्ञापन होते हैं कृपा नहीं ।

कृपा-कारोबार भारतीय संस्कृति का पारंपरिक उद्यम है । कहते हैं कि तथास्तु की कुंजी से इसका द्वार खुलता है । इस कुंजी को प्राप्त करने के लिए दीनहीन जनों की बड़ी फजीहत हुआ करती है । उन्हें प्रायः बहुत कठिन तप और परिश्रम से गुजरना पड़ता है । कहते हैं कि चप्पलें घिसनी पड़ती हैं । तथास्तु अक्सर भगवान या उनके प्रतिनिधि बोला करते हैं । जैसे जैसे जनसंख्या संक्रामण की तरह फैलने लगी भगवान ज़िम्मेदारी से बचने लगे । पहले ज़िम्मेदारी ले लेना, फिर उससे बच निकालना भक्तों के सामने भी धर्मसंकट खड़ा कर देती है । ये तो अच्छा है कि भक्तों के पास भगवान का कोई विकल्प नहीं है और न ही उनके पास अन्य कोई रोजगार है । इसलिए  कीर्तन में बराबर बने रहना उनकी ऐसी मजबूरी है जिसे लोग श्रद्धा के नाम से ज्यादा जानते हैं । कीर्तन की खासियत यह है कि यह भगवान और भक्त दोनों की जरूरत है । कीर्तन के कारण ही भगवान भगवान हैं और भक्त भक्त । आप पूछ सकते हैं कि पहले कौन आया ?  भगवान, भक्त या फिर कीर्तन ? तो मैं कहूँगा कीर्तन । कीर्तन ने ही पहले आ कर भगवान और भक्त बनाए । अगर लोग आपका कीर्तन करने लगें तो भगवान बनाने में आपको देर नहीं लगेगी । और अगर लोगों के साथ मैं कीर्तन करूँ तो भक्त हुआ ही । भक्त और भगवान का रिश्ता कीर्तन के कच्चे सूत से बंधा होता है । दोनों में से कोई भी इस रिश्ते से खींचतान नहीं कर सकता है ।

राम मोहन रास्तेवाला बरसों कृपा के चक्कर में रहा । कहीं कृपा नहीं मिली इसलिए आजतक कुँवारा है । लेकिन हठयोगी है, उसने किसी से नहीं मानने की कसम खा रखी है । एक की कृपा नहीं मिली तो हजार की लेंगे । कोई टिकिट नहीं देगा तो निर्दलीय लड़ेंगे । कहते हैं जिसका कोई नहीं होता उसका भगवान होता है । और जिसका भगवान होता है वो कुछ भी हो हमेशा पहलवान ही  होता है । आज राम मोहन रास्तेवाला बड़े नेता हैं और खुद कृपा के सुपर स्टाकिस्ट भी । कृपा कारोबार बढ़ गया है, और लोग देने वाले को श्रीभगवान मानते हैं । दाता एक .... भिखारी सारी दुनिया । जय हो ।

 

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