शुक्रवार, 19 नवंबर 2021

मिले गंजों को मुआवजा





                कई बार होता है जब कुछ सूझता नहीं है तो हम सर पर हाथ फेरते गुमसुम बैठे होते हैं . सर अपना और हाथ भी अपना, दोनों के बीच अपनी निजी ममता, नानपॉलिटिकल, उदार और शीतल . शरीर भी तो एक संघीय व्यवस्था है . ऐसा लगता है जैसे बंगाल की सरकार केंद्र सरकार को सहला रही हो . लेकिन ये काम आप गार्डन में कर रहे हों तो कोई किशोर या कोई प्रशांत बीच में नहीं कूदेगा ऐसा हो नहीं सकता . ‘हल्लो’ कहते हुए प्रशांत उपस्थित हुआ . बोला – “ मैं जानता हूँ आप किस चिंता में डूबे हुए हैं .”

“आप कैसे जानते हैं !?”

“मैं जान लेने में दक्ष हूँ . सब जानते हैं कि जो कोई नहीं जानता वो भी मैं जानता हूँ . और मैं अच्छी तरह जानता हूँ कि मैं जानता हूँ, इसलिए लोग तगड़ी फीस देते हैं क्योंकि वे जानते हैं कि मैं जानता हूँ .” उसने जो कहा वह सुन कर सिर खुजाने की जरुरत पड़ी लेकिन हाथ रुक गए .

“एक सदमें का शिकार हो गया हूँ मैं .....”

“ना, ... बिलकुल नहीं . आपको इस वक्त पॉजिटिव सोचना चाहिए . आप अकेले चपेट में नहीं आये हैं . इस समय देश में गंजों की संख्या पर ध्यान दीजिये, कितने बढ़ गए हैं ! चिंता से गंजापन बढ़ता है . कारण ये कि जागरूकता बढ़ी है, लोग देश के बारे में सोचने लगे हैं इसलिए गंजे हो रहे हैं . जो भी सोचेगा गंजा हो जायेगा . आपको अच्छी तरह जानता हूँ मैं, आप देश के लिए कितने चिंतित रहते हैं पिछले कुछ सालों से . तीन चार साल में ही सतपूड़ा से थार हो गए हैं . देख कर अच्छा तो नहीं लगता है लेकिन क्या किया जा सकता है ! कम से कम राष्ट्रवादी गंजों को तो मुआवजा मिलना चाहिए . ... पहली बार कब लगा था आपको कि बाल झर रहे हैं ?”

“ वो दिन कैसे भूल सकता हूँ . शाम का मनहूस वक्त था, खाना भी नहीं खाया था ... अचानक टीवी बोला कि हजार-पांच सौ के नोट अब रद्दी हो गए ! सुनते ही माथा घूम गया . लगा कि शेयर मार्केट के बुल ने सींग मार के हवा में उछाल दिया . सर में खुजली सी होने लगी, रात भर खुजाता रहा . सुबह तक काफी फर्क हो गया .“

“कैसा फर्क ? ... सिरदर्द कम हुआ ?”

“काफी हल्का हल्का सा लग रहा था . ऐसा लगा कि सर का बोझ कम हो गया . पत्नी भौंचक देखती रही तो आइना देखा . पहले तो मैं पहचाना नहीं ... जाने ये गंजा कौन है !! लगा जैसे हाइवे के लिए जंगल साफ हो गया है . विकास सर पर चढ़ कर बोला रहा था . ओफ ... उसके बाद तो बचेखुचे भी चले गए जल्दी जल्दी .  कारवां गुजर गया, गुबार देखते रहे .  डर है कि मोची यह न कह दे कि आ जाओ साहब पालिश करके चमका दूँ . “

“वो तो अच्छा हुआ भाई तुम्हारी शादी हो गई थी 2013 में  ... पॉजिटिव सोचिये . अगर नहीं हुई होती तो क्या होता ! जिंदगी भर हेलमेट लिए अकेले गुजारते .”

“इतनी महंगाई में अकेले की गुजर हो जाये शायद ... काश शादी नहीं हुई होती .”

“पॉजिटिव सोचिये ... इतना ज्यादा सोचोगे तो दांत भी चले जायेंगे .”

“सोचने से दांत भी जाते हैं क्या !?”

“पूरा शरीर चला जाता है जी, सुना होगा चिंता चिता सामान .” प्रशांत ने समझाया .

“कैसे न सोचूं, सीमा पर कितना तनाव है ! चीन ने नियंत्रण रेखा के आसपास गाँव के गाँव बसा लिए हैं और इरादे भी ठीक नहीं हैं उसके ! “

“अरे उसकी चिंता आप क्यों करते हैं ! आपकी प्राथमिकता ये होना चाहिए कि सिर की सीमा पर बची रह गयी झालर की रक्षा कैसे करें . .. आपको तन्जली का केश तेल लगाना चाहिये था . लाला आरामदेव की दाढ़ी और सिर देखा, .... कितना घाना जंगल है !”

“इसका मतलब है कि उनको देश की कोई चिंता नहीं है !! कुछदिनों के लिए उन्हें रक्षामंत्री बना देना चाहिए . हप्ते भर में ही ड्रेस्ड चिकन हो जायेगा चेहरा . “

प्रशांत ने कुछ देर सोचने के बाद कहा – “अकेले मत सोचो . समझदारी इसमें है कि गंजों का एक संगठन बनाओ . ‘राष्ट्रीय सफाचट समूह’ कैसा रहेगा ? सालभर में ही आपका संगठन इतना मजबूत हो जायेगा कि लोग सर मुंडा कर इसमें शामिल होने लगेंगे . आप जिसे चाहोगे जिताओगे या हराओगे . सरकार आप लोगों की मर्जी से बनेगी . पॉजिटिव सोचो, आप एक महत्वपूर्ण संगठन के संथापक अध्यक्ष होने जा रहे हो . इतिहास आपको बड़े आदर से याद रखेगा और इसकी वजह क्या होगी ? ... आपका गंजा सर . ... थेंक्यू बोलिए मुझे .”

अचानक अन्दर उमंग की हिलोरें सी उठी . मेरे मुंह से निकला –“थेंक्यू प्रशांत जी.”

---

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें