पास रखा फोन/कैमरा
बोला –“इस वक्त हम भारी बहुमत में हैं . हर उदास को स्माइल और हर हाथ को काम हमने दे
रखा है . पहुँच इतनी आसन कि उठा के हाथ जो खिंच ले, तस्वीर उसकी है . हम न हों तो आपको
और आपके नेताओं को छबि बनाने के लिए पहले की तरह चप्पलें घिसना पड़ जाती . अभी तो
मजे हैं, दिन भर कपड़े बदलते फोटो निकलवाते रहो .काम करने के लिए अधिकारीयों की फ़ौज
है ही, उन्हें कैमरे से दूर रखो, सारा श्रेय अपना . दुनिया को लगेगा कि हर एंगल से
गरीब-नवाज ही खपे जा रहे हैं देश के लिए . कैमरे से झूठ को आधे सच में कैसे बदला
जाता है इस पर शोध करने की जरुरत है, करो कोई . कैमरे हुए तो क्या हुआ अब हमें भी
शरम आने लगी है . एक बार यदि हम यांत्रिकता से मुक्त हो गए तो देख लेना साहब लोगों
के फोटो लेने से इंकार कर देंगे .”
मुझे समझ में
नहीं आया कि कौन कुपित रहा है ! भ्रम हुआ
शायद, फोन अपने आप कैसे बोल सकता है . उठा कर देखा तो फिर आवाज आई, -“ हाँ मैं ही बोल
रहा हूँ ... कैमरा . ये क्या धांधली मचा रखी है आप लोगों ने !! कितने फोटो उतारोगे
हुजूर ! इंटरनेट आपके फोटो से ही भर जायेगा . समझ रहे हैं आपके भी इरादे, आप कोई अलग नहीं हो . अगली पीढ़ी
जवाहर लाल नेहरू को सर्च करेगी तो हर बार उसके हाथ दो कौड़ी के जवाहर चौधरी लगेंगे !
कैमरों को आगे करके षडयंत्र चल रहा है ये !”
“अरे भाई !! मैं
कहाँ उतरता हूँ इतने ज्यादा फोटो !”
“सब यही कहते
हैं . उन गरीब नवाज से भी पूछेंगे तो भाले-भोले बन के यही कहेंगे कि मिडिया वाले
उतारते हैं, और ये काम होता है उनका. इसमें
हमारा कुछ नहीं है .” कैमरा नाराज है .
“देखो भाई
कैमरे, गरीब-नवाज चाहते हैं कि लोग आत्मनिर्भर बनें इसलिए जनता सेल्फी लेती है .
आखिर कहीं न कहीं से आत्मनिर्भरता की शुरुवात तो करना पड़ेगी ना . बताइए इसमें गलत
क्या है ? सुन्दर लड़कियां भी आढ़ा-टेढ़ा मुंह बना कर कार्टूननुमा जो करती हैं खुद अपने
साथ करती हैं . इसमें तुम्हारा कोई दोष नहीं है, तुम दुखी क्यों होते हो ! जब एक
हाथ खाली होता था तो गरीब-नवाज भी सेल्फी लिया करते थे . अब दोनों हाथ टाटा करने
में व्यस्त हो गए तो मजबूरी है . तुम चाहो तो अच्छा भी सोच सकते हो . गरीब नवाज को
अगर देश से भी ज्यादा किसी से प्रेम है तो वो तुम हो . तुम्हें तो गर्व होना चाहिए,
ये कोई छोटी बात नहीं है .” हमने सफाई के साथ तसल्ली देने की कोशिश की .
“इज्जत का सवाल
है महोदय . कैमरे की आँख पर दुनिया भरोसा करती है . जमाने भर की अदालतें हमारी
आँखों का सम्मान करते हुए अपने फैसले तक बदल देती हैं . सच या तो भगवान की आँखे
देखती हैं या फिर कैमरे की आँख . लेकिन जब हमारे माध्यम से झूठ दिखाया जायेगा तो
सहन नहीं होगा . “
“सिनेमा के
परदे पर सारा का सारा झूठ दिखाया जाता है तब तो किसी की इज्जत का सवाल नहीं खड़ा
होता है . कौन शामिल होता है शूट में ? तुम्हारे
भाई लोग ही ना ? देखो भाई कैमरे, माना कि तुम सच देखते हो लेकिन कायदा ये है कि
देखने के तत्काल बाद तुम्हारा शटर बंद हो जाना चाहिए . उसके बाद तुम्हें कुछ भी
सोचने की जरुरत नहीं है . इधर वोटर बिना सोचे अपने गरीब नवजों को चुन लेता है, फिर
तुम तो वोटर भी नहीं हो ! यहाँ हाड़ मांस वाले मशीन हो रहे हैं, तुम तो पैदाइशी
मशीन हो कर उल्टा चल रहे हो ! ... छोड़ो न
यार, चलो एक सेल्फी हो जाये तुम्हारे साथ . “
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