मंगलवार, 4 जनवरी 2022

हमारी तो मजबूरी है जी !

 



              आप आप हैं जी और हम हम हैं जाहिर है कि आप और हम अलग अलग तो होंगे ही । फिर भी हम भोलेभालों को आपके साथ मिल कर रहना पड़ रहा है ये छोटी बात नहीं है । आप सेक्युलर हैं ये आपकी च्वाइस है, लेकिन हमें तो कट्टर ही रहना पड़ेगा, मजबूरी है हमारी । साफ लिखा है संविधान में कि मुल्क धर्मनिरपेक्ष यानी सेक्युलर होगा । इसका मतलब है कि सरकार खुद धरम-धंधा नहीं करेगी लेकिन दूसरों को करने देगी ।  आप लोग अपने दीन को मानें और दूसरे मजहब की इज्जत करें, दूसरों की भावना और आस्था का ख्याल रखें बस यही जरा सी बात है इसके पीछे  । आपको जान कर ख़ुशी होगी कि हमें बात की बहुत ख़ुशी है कि दीगर लोग, दीगर मजहबी सब सेक्युलर हैं ।  सब जानते हैं कि सेक्युलर लोग बहुत अच्छे होते हैं । ये लोग कानून का सम्मान रखते हैं, अच्छे नागरिक हैं, लेकिन हमारी मज़बूरी है । आप लोग एक सभ्य समाज हो । इसलिए आपके लिए यह बहुत जरुरी है कि हमेशा विनम्र और उदार रहें ।  इस बात को  अनदेखा नहीं करना चाहिए । भोलेभाले लोगों की तो मज़बूरी है लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि बाकी लोग उनकी नकल करें ।  आप हम लोकतान्त्रिक देश में हैं । सबका बराबर का हक़ है । जो आपको मिलेगा वो हमको भी मिलना ही है । उन्नीस-बीस का फर्क रहता है लेकिन उसमें हमें कोई दिक्कत नहीं है । हमारी सबसे बड़ी चिंता संविधान को लेकर है । कुछ लोग अब संविधान की उपेक्षा करने लगे हैं । यह ठीक बात नहीं है । जब उपेक्षा भी आप लोग करने लगोगे तो हम क्या करेंगे ? हमारे लिए तो पहचान का संकट पैदा हो जायेगा ।

                    अच्छे लोगों के अमन पसंद बने रहने में हमारी ख़ुशी इतनी ज्यादा है कि बता नहीं सकते, रियली । लगता नहीं है हमें किसी दूसरी ख़ुशी की जरुरत है । अब यहीं की बात लो, गाँधी जी एक बड़ी हस्ती थे । उन्होंने अहिंसा का रास्ता दिखाया है आपके लिए, तो अच्छा ही होगा । टेकनीकली हमारे लिए भी बहुत अच्छा है । लेकिन देख रहे हैं कि लोग उस पर दिली ऐतबार नहीं रख रहे हैं आजकल । मतलब ये कि मन, वचन और कर्म से लोगों को अहिंसक होना चाहिए, लेकिन कुछ लोग हिंसा में अपनी आस्था व्यक्त करने लगे हैं ! देखिये हमारी तो मजबूरी है लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि हम दूसरों को अमन के लिए प्रोत्साहित भी नहीं करें । कोई एक गाल पर थप्पड़ मारे तो दूसरा गाल आगे कर देना बहादुरी की निशानी है, हम मानते हैं  । यकीकन हम भी कर देते दूसरा गाल आगे लेकिन मज़बूरी है, हम लोगों के बीच कोई गाँधी नहीं हुआ । ऊपर वाले की मर्जी है, इसमें कोई क्या कर सकता है !

                      आप लोग नए ज़माने को जल्दी समझ लेते हैं । आपका इंजन आगे लगा हुआ है । हम भोलेभाले, हमारा इंजन पीछे लगा हुआ है । आप लोग आगे देख कर चलते है, हमें चलने के लिए पीछे देखना पड़ता है । हममे बहुत सी खासियत है लेकिन उस पर लोग ध्यान नहीं देते हैं । हम खाना लजीज बनाते हैं, आपको भी अच्छा लगता है । कपड़े सिलने में माहिर हैं, आपकी पहली पसंद हैं ।  संगीत में उस्ताद हैं, लाल किले से गवाये जाते रहे हैं ।  एक प्यारी भाषा है जो जितनी हमारी है उतनी आपकी भी है । इमारतें बनाने और कारीगरी में हुनरमंद हैं, पता ही है आपको । गीत-ग़ज़ल कथा-कहानी के तो सब मुरीद हैं, साहित्य हो या फ़िल्में, आपको सब पसंद है ।  काम कैसा भी हो हम हरफन मौला हैं । लेकिन जब कानून को मानने की बात आती है तब मजबूरी है । आपकी बात अलग है, आप पढ़ेलिखे समझदार हो, अपने आकाओं को नकार भी सकते हो, उनसे बहस कर सकते हो, सवाल कर सकते हो, कोई बात गलत हो तो विरोध भी कर सकते हो लेकिन हमारी मज़बूरी है । अगर हमें जाहिल बनाये रखा गया है, दूसरों से नफरत करना ही सिखाया गया है तो हमारी मज़बूरी का अंदाजा आप लगा सकते हैं । यह बात ठीक है कि सरकार ने बढ़िया स्कूल खोल रखे हैं सबके लिए  ... लेकिन उसमें जब तक हमारे आका नहीं पढ़ लें ... तब तक हमारी मजबूरी है जी !

 

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