शुक्रवार, 26 अगस्त 2022

पकोड़ा कढ़ी की रेसिपी


 



                    कवि कमाल कलम थामे कविता से संघर्ष कर रहे थे । चार पंक्तियों की आमद हो चुकी थी । पांचवी को मना रहे थे लेकिन वह मान नहीं रही थी । ऐसा अक्सर होता है उनके साथ । बिना मान मनौवल के उनका कोई काम नहीं होता है । वे जिसे भी मानाने का प्रयास करते हैं वह उतना ढीठ हो जाता है । डाकिये तक को मनाते हैं तब कहीं जा कर हप्ते में एक-दो चिट्ठियां देता है । लेकिन कविता के मामले में रस्साकशी कुछ ज्यादा ही हो जाती है । आज भाग्य से कविता का हाथ पकड़ में आ गया है । जोराजोरी में लगे हुए हैं, सोच रहे हैं खेंच लेंगे पूरी ।

तभी मिसेस कमाल पास आ कर सोफे पर बैठ गयीं । किताबों से लगाकर गूगल तक, सबको पता है कि कवि-पतियों से उनकी पत्नियाँ कितनी खुश रहती हैं । जब वो कहती हैं कि ‘ये’ किसी काम के नहीं हैं तो आवाज कई कोनों से इको होती है । कवि चाहते हैं कि धक्का दे दें लेकिन जानते हैं कि ये आसान काम नहीं है । इसलिए अपने काम में लगे रहने की कोशिश करने लगे । अचानक वे चहकीं – “मिल गयी ! ... ये देखो मुझे मिल गयी !”

कवि पंक्तियों में उलझे थे, बोले – “घंटाभर हो गया मुझे नहीं मिली, तुम्हें कैसे मिल गयी !”

“पकौड़ा-कढ़ी की रेसिपी मिल गयी” । उन्होंने फोन दिखाते हुए कहा । 

“तुम्हें पता है इस समय मैं कविता खेंच रहा हूँ ! और तुम मेरी तपस्या भंग कर रही हो ! पकौड़ा-कढ़ी की रेसिपी से मुझे क्या ?”

“जिसे मजा लेना हो वो रेसिपी पढ़ा कर भी मजा ले सकता है । पता है ये खास है, इसे सत्रह सौ लाईक मिले हैं । गुजरात के जानेमाने शैफ की रेसिपी है ।“

“कढ़ी तो कढ़ी है, इसमें क्या खास है ?” कवि ने मुंह बनाया ।

“इसमें पकौड़ा होता है जो कि नहीं होता है ।“

“पकौड़ा-कढ़ी में पकौड़ा नहीं तो और क्या होगा !?  तुम बनती रही हो उसमें भी तो पकौड़ा होता है ?”

“मेरी कढ़ी का मत पूछो । इस रेसिपी वाली में पकौड़े नहीं पत्थर होते हैं, जो कढ़ी बनाने के बाद निकाल लिए जाते हैं ।“

“पकौड़े की जगह पत्थर !!”

“गुजरात की कढ़ी है । कुछ राज्य हैं जो समस्या देते हैं तो समाधान भी देते हैं । महंगाई का पता है कहाँ पहुँच गयी है !!  तुम्हारी कविता से एक समय की दाल भी नहीं बनती है । इधर  सोशल मिडिया पर देखो कवि पकौड़ों की तरह घान के घान उतर रहे हैं । देख कर लगता है पकौड़े कविता कर रहे हैं !“

 “कवि पकौड़े ! पकौड़े-कवि ! कहना क्या चाहती हो ! हम पकौड़ा है ! देश में पकौड़े इसलिए ज्यादा दिख रहे हैं क्योंकि बेरोजगार पकौड़े तलने लगे हैं । ”

“जब सारे पकौड़ा बनायेंगे तो खरीदेगा कौन ? बेरोजगार बन्दे कविता करने में लगे हैं ... आदमी खाली बैठे बैठे खुद पकौड़ा नहीं हो जायेगा ।“ देवी कुपित हुईं ।

“चलो ठीक है ज्यादा बेइज्जती मत करो । अभी हम कविता में उलझे हुए हैं ।“

“इसमें बेइज्जती की क्या बात है ! पकौड़ा कवि से आल टाइम बेहतर है । सस्ता है, स्वादिष्ट होता है, भूख मिटाता है, सत्कार के काम आता है, सामने रख दो तो मेहमान खुश हो जाता है । और कवि ...! अब मुंह मत खुलवाओ मेरा ।“

“मुंह है कहाँ ... इण्डिया गेट है । कभी बंद हो सकता है क्या ! यही हाल रहे तो पीएम बन जाओगी किसी दिन । ...  देखो मुझे पांचवी पंक्ति नहीं मिल रही है ऐसे में तुम दिमाग का पकौड़ा-कढ़ी मत करो । बनाओ जा कर । ”

“ओ मिस्टर, पकौड़ा-कढ़ी के लिए सामान लगता है । मैं सिर्फ रेसिपी दिखा रही थी । रेसिपी देखो और मजे लो । “

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