गोपन गणेश लोटा यानी जी.जी. लोटा साहब प्रशासनिक मामलों के कीड़े हैं
। कई पदों से होते हुए अब रिटायर हैं । खास बात हैं कि
रिटायरमेंट शरीर का हुआ है कीड़ों का नहीं । शरीर बहुत कामन चीज है, सबके पास होता है । शरीर से उन्हें उतना प्रेम नहीं है जितना अपने कीड़ेपन
से है । लोग भी उन्हें शरीर कि वजह से नहीं कीड़ों कि वजह से इज्जत देते हैं ।
सरकार पेंशन शरीर को देती है, कीड़ों को आत्मनिर्भर रहना पड़ता
है । आजकल आत्मनिर्भर की पीड़ा आत्मनिर्भर ही जानता है । जब भी कोई सामने पड़ जाता
है कीड़े कुलबुला उठते हैं. भूख न जाने जूठा भात, नींद न जाने
टूटी खाट. जीजी लोटा के सामने जो भी पड़ जाता समझिए वही उनकी खुराक हुआ. पहली
शिकार नगर निगम की सफाईकर्मी बसंती बनती है. आज सोचती है कि पता नहीं किस मुहूर्त
में बाबूजी से राम-राम कर ली. लोटा उसी से बातचीत करते हैं - " क्या बसंती सब
ठीक चल रहा है ना ? तनखा तो अच्छी हो गई है नगर निगम में.
हमें तो सब पता है ना. हम थे नगर निगम में कमिश्नर. कमिश्नर तो नहीं
थे पर कमिश्नर का पूरा काम देखते थे. सफाई का बड़ा बजट होता है, लेकिन लोग खा जाते हैं. हमें तो सब पता है. हमने भी खाया है थोड़ा बहुत,
लेकिन उतना नहीं खाया जितना आजकल लोग खा रहे हैं. हमारा तो एक
सिद्धांत था कि ज्यादा नहीं खाना. रोटी बनाते समय पलथन लगाते हैं ना, ताकि रोटी गोल गोल घूमती रहे. बस उतना ही खाते थे कि केस आसानी से घूमता
जाए. लेकिन सब ऐसा नहीं करते हैं. हमें तो सब पता है. " एक ही सांस में जीजी लोटा बसंती को बोल गए. सही बात है बाबूजी कहकर बसंती
झाड़ू में लग गई.
इसके बाद जीजी लोटा टहलते हुए योग सेंटर पहुंचे. योग गुरु हवा खींच
रहे थे. लोटा बोले - "हमें पता है अनुलोम विलोम किसे कहते हैं. प्रशासनिक
नौकरी में जीवन भर आदमी को अनुलोम विलोम ही करते रहना पड़ता है. आपको नहीं पता
हमें तो सब पता है. हम राजधानी में पोस्टेड रहे आठ साल तक. प्रशासनिक भवन में एक
भी काम बिना लिए दिए हो जाए तो हमारा नाम बदल देना. हम तो सब जानते हैं अपनी आंखों
से देखा है. अजी पूरे कुएं में भांग पड़ी है. सरकार बदल जाए पर प्रशासनिक भवन नहीं
बदलता है. अब क्या बताएं हमारे जैसे ईमानदार अफसर को भी लेना पड़ता था. नहीं लेते
तो क्या करते ! पानी में रहते हुए मगरमच्छों से बैर किया जा सकता है क्या ! हमें
तो सब पता है, कब अनुलोम कब विलोम कब सूर्यनमस्कार करना
फायदेमंद होता है."
संग साथ मिल गया तो जीजी लोटा मंदिर की ओर चल दिए. मंदिर में वे आते
रहते हैं, लेकिन प्रायः प्रार्थना नहीं करते हैं. बस भगवान
को याद दिलाते हैं कि प्रभु आप जानते हैं या फिर हम जानते हैं. जब आपको अफसोस नहीं
है तो हमको क्यों होगा. हमने तो सब आप पर ही छोड़ दिया था. जो मिला उसे आपका
प्रसाद समझ के ग्रहण कर लिया. अब रिटायर है. भेंट पूजा सब बंद है, लेकिन देखिए आपके सामने हाथ जोड़े खड़े हैं. हम आपको भूले नहीं हैं और
उम्मीद करते हैं आप भी हमें नहीं भूलोगे. व्यवहार बना रहना चाहिए चाहे कोई भी हो.
हम तो रिटायर हो गए आप तो कभी रिटायर होंगे नहीं. आपका चढ़ावा भी कभी बंद होगा
नहीं. हम आपको डरा नहीं रहे हैं. बस इतना बता रहे हैं कि हमें सब पता है. हमारा
ख्याल रखिए, आगे आपकी मर्जी.
लोटा साहब घर पहुंचते हैं तो पत्नी इंतजार में है. पूछती है इतना लेट कैसे हो गए. वह सफाई देते हैं कि "तुम तो
जानती हो कि हम सब जानते हैं. इसलिए कोई छोड़ता नहीं है हमें. हरिशरण मिल गया था.
उसका केस फंसा हुआ है प्रशासनिक भवन में. उसे किसी ने बताया कि लोटा साहब को सब
पता है, उनसे मार्गदर्शन ले लो. उसकी पूरी कथा सुनी.
हरिशरण को यह नहीं पता कि घंटा बजाते रहने से प्रसाद नहीं मिलता.
कुछ चढ़ावा चढ़ाना बहुत जरूरी है."
" हरिशरण तुम्हें बजाता रहा! तुम घंटा हो!? " पत्नी ने पूछा.
" अरे हम घंटा नहीं है, लेकिन हमें सब
पता है कि कौन घंटा किधर लटका हुआ है. उसका काम सर्किट
हाउस यार रेस्ट हाउस से होगा. हमें तो सरकारी महाकमों की नस-नस पता है.
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शनिवार, 1 जून 2024
लोटा साहब को सब पता है !
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