शुक्रवार, 23 अगस्त 2024

साहित्य में नयी आमद


 

                 कॉलोनी में बीचों बीच एक ज्ञान दीप गार्डन है। पिछले कुछ दिनों से वरिष्ठ कवियों का एक समूह गार्डन में प्रतिदिन जमा होता है। सभी लोग रिटायर्ड हैं और अपने भरे पूरे घर में अकेले और उपेक्षित भी। यान देखा जाए तो यह एक ऊबा हुआ समूह है जिसके पास समय काटने की समस्या है । लिहाजा कुछ ने लिखना शुरू कर दिया है और कुछ अभी मन बना रहे हैं। जिनके पास टेबल कुर्सी थी वह बैठ गए। जिनके पास नहीं है अभी दिक्कत में है। घर में अपने लिए ही जगह नहीं है,  टेबल कुर्सी के लिए तो असंभव है । कोई कोना खाली नहीं है। कुछ लोग आंगन में बैठे, कुछ काफी हाउस निकले, किसी ने लाइब्रेरी पकड़ी। जैसा कि परंपरा है शुरुआत में कविताएँ ही उतरी। सुनाने-सुनने की दिक्कत पेश नहीं आई। इस मामले में वरिष्ठ कवि समूह आत्मनिर्भर है।

           

   इधर ऑल टाइम यंग महिलाओं का भी एक समूह है। किटी पार्टी में जा जा कर खुद तंबोला होने और तंबोला खेलने से जो ऊबी हुई हैं। ये सभी ‘वरिष्ठ-लेखिका’ कहलाने से बचते हुए लेखन के मैदान में हैं। इधर भी कविताएँ पकौड़ियों की तरह छन रही हैं। कथा कहानी की रेसिपी भी खोज निकाली गई है। लघु कथाओं पर भी लपक कर काम चल रहा है। ऐसे उपजाऊ माहौल में प्रकाशक भी शिकार पर निकले हैं और धड़ाधड़ किताबें छाप रहे हैं। कहने वाले कहते हैं कि किताबें नहीं नोट छाप रहे हैं। खैर, लिक्खू लोगों को इससे क्या, सबको अपना-अपना काम करना चाहिए। बाबाओं, साधु संतों, छू छा वालों का मार्केट हाई चल रहा है इनदिनों। माहौल में अलौकिक शक्तियों का हस्तक्षेप बढ़ गया है। इन्हीं के बीच लगता है दिवंगत लेखन के भूत भी सक्रिय हो गए हैं। इनकी पैठ भी बनती जा रही है। घोस्ट रायटिंग यानी भूत लेखन की विशेषता यह है कि भूत नहीं दिखता लेखन दिखता है। जो दिखता है वही छपता है। साहित्य में भूत सहायक होते हैं। जिनमें थोड़ी हिम्मत और कुव्वत होती है वे उन्हें कंधों पर लाद कर ले आते हैं।
                 

 पहले कभी लेखकों को पारिश्रमिक देने का चलन भी था। आय भले ही काम हो पर पत्र-पत्रिकाओं की सोच बड़ी थी। फिर नई तकनीक आई, विकास हुआ, आय बढ़ी और हाथ तंग हुए। मौका मिलते ही बाजार ने अपने हक में देवी देवताओं को खड़ा कर लिया। लेखक सरस्वती पुत्र होते हैं। जानते हैं सरस्वती और लक्ष्मी का बैर है। इसके अच्छे परिणाम सामने आए। पारिश्रमिक बंद हुआ तो लेखन की बाढ़ आ गई। लगता है पारिश्रमिक के कारण ही अभी तक लोग लिख नहीं पा रहे थे। साहित्य साधना है, निस्वार्थ सेवा और पवित्र कार्य है। श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है कि कर्म किए जाओ फल की इच्छा मत करो। फल की इच्छा से कर्म दूषित हो जाता है। रचना पत्र-पत्रिका को भेजो फल भगवान देगा। भगवान के घर देर है अंधेर नहीं। तो कुल मिलाकर बात यह है कि साहित्य के क्षेत्र में नई संस्कृति का तेजी से विकास हो रहा है। इसलिए सब मिलकर स्वागत करें इसका और लिखें दिन में दर्जन भर कविताएँ   जय हो।

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