“अपन तो
पॉलिटिक्स में सेवा के लिए आए थे । सेवा मतलब गरीब की सेवा । ये बोले गरीब की सेवा
छोड़ो, अपने को देस की सेवा करना है । मैं बोला ठीक है आज से देस की सेवा । देस में गरीब है , गरीब में देस है ।... इसमें
मैं गलत क्या बोला !? पहले प्यार किया अब धोखा देते हैं !! पॉलिटिक्स को एकता कपूर
का सीरियल बना दिया ! ऐसे में कैसा चलेगा बोलो । मेरे को बर्दस्त नहीं होता, कुछ
कुछ होने लग जाता है । “ अपने गुस्से को
दबाते हुए वो बोले ।
"पॉलिटिक्स सब दूर एक जैसी है । प्यार और धोखा सिक्के के दो बाजू होते
हैं । बाजू बोले तो ऊपर नीचे, हेड और टेल। यह सिक्के कुर्सी
बाजार में धड़ल्ले से चलते हैं। शुरू में लगता है कि प्यार के हैं तो लोग धड़ाधड़
लूटने लगते हैं। चुनाव खत्म होते ही सिक्के अपना बाजू बदल लेते हैं। इस मामले में
सिक्कों का कोई दोष नहीं। न ही लूटने वालों का और ना लूटाने वालों का दोष है। ये
कुर्सी- बाजार का रिवाज है भाऊ । रिवाज बोले तो हिंदी में परंपरा, निभाना पड़ती है सबको। तुम किस्सा सुनके गुस्सा मत हो । इस बेइज्जती को खालीपीली
दिल पे लेने का नहीं । दिल बड़ी नाजुक चीज होती है। दिल एक बार बैठ जाए तो उठने
में बहुत जोर लगाना पड़ता है। इसका इलाज शहरों में नहीं मिलता है गांव जाना पड़ता
है। गांव बोले तो अपना खालिस पैतृक गांव। उधर जाकर दो-तीन दिवस कोई ठहरे तो फिर
आराम पड़ता है। " खुलासराव वड़ापाव बोले जो अभी-अभी मुम्बई से नई खबरों के साथ
लौट कर आए हैं। बताते हैं कि उन्होंने वडापाव खाकर दिन गुजारे हैं। वडापाव नहीं
होते तो खुलासराव नहीं होते। उन्होंने जिंदगी के बहुत सारे उतार-चढ़ाव दूर से देखे
हैं। मशविरा देते हैं लेकिन जोखिम उतना ही उठते हैं जितने में जोखिम की लाज रह
जाए। प्रैक्टिकल आदमी हैं । “तुम्हारा कोई पैतृक गांव है? मतलब
वह गांव जहां तुम्हारे बाप दादा पैदा हुए।" खुलासराव ने फिर पूछा।
" हमारा तो कोई पैतृक गांव नहीं है। हमारे उधर तो सारे गांव जमीदार के होते
हैं। पैदा होने से हमारा गांव कैसे हो जाएगा!? देश पैतृक है
पर उसको मातृभूमि बोलते हैं सब लोग। "
" अरे फिर क्या समझोगे तुम कुर्सी बाजार के बारे में ! 'बाजार से गुजरा हूं पर खरीददार नहीं हूं', ऐसा बोल
कर निकल लो चुपचाप।.... कुर्सी बाजार में सब चलता है पर वफादारी नहीं चलती है। जो
उम्मीद रखता है वह बीमार पड़ जाता है। इधर सब लोगों को कुर्बानी पसंद है, उल्टी छुरी से हलाल करते सब। "
" अपन तो प्यार में पड़े थे भाऊ । जिधर बोला उधर बैठा मैं। जिधर बोला उधर साइन
मारा कागज पे। अब देख लो तुम ! बदले में मेरे को क्या मिलता है। पहले सब हव हव
बोले, अब अक्खा पार्टी नको नको बोलती!! पॉलिटिक्स गंदी चीज
है यह तो सब जानते हैं। पर इतनी गंदी चीज है यह नहीं मालूम था मेरे को। ऐसे कैसे
चलेगा ! "
“जितनी
जल्दी हो सके तुम भी गंदे हो जाओ ।“ खुलासराव बोले ।
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