बुधवार, 25 जून 2025

दोस्ती में फट लिया डूडू

 


                     कहीं एक बड़ा देश है चिकामिका । उसके मुखिया का नाम डूडू है । लोग कहते हैं डूडू समझदार है और समझदार नहीं भी। वह आँखें बंद करके हँसता है और मुँह बंद करके आँखों से अंगार बरसाता है ।  वह वह सूट टाई पहनता है लेकिन दुनिया को नंगा दिखता है। वह ताल ठोक कर दावा करता है और बाद में मुकर जाता है । वो जो है वह नहीं है, और जो नहीं है वो है । लोगों का भी ऐसा ही है, वे उससे नफरत नहीं करते हैं और करते भी हैं । वह जिसका दोस्त होता है उसी का दुश्मन भी हो जाता है। वह डिनर पर अपने साथ पालतू कुत्तों को खिलाता है और साथ में किसी विदेशी मेहमान को भी बैठा लेता है। उसे हिंसा पसंद है और शांति का नोबेल भी। वह मानता है कि बातचीत से शांति स्थापित हो जाती है लेकिन जो लोग ऐसा करना चाहते हैं उन्हें वह मूर्ख मानता है। समय बदल गया है सोच बदल गई है इसलिए वह समय और सोच के साथ चलना चाहता है। वह मानता है कि एक बड़ा बम डाल दो तो चौतरफा शांति हो जाती है। उसके बम शांति का संदेश लेकर आते हैं। वह चाहता है कि दुनिया वाले उसके बम को देखते रहें, शांति अंदर से पैदा हो जाएगी ।

                 बम गोदाम में शांत पड़े हैं लेकिन डूडू दुनियाभर में धमाके करता रहता है । उसकी चाल बम चाल है । टीवी पर दुनिया वाले जब बड़े से जहाज से उसे उतरते देखते हैं तो लगता है एटम बम उतर रहा है । अगर नोबल वाले जाग नहीं रहे हों तो वह कहीं भी फट सकता है । बहुत समय से उसका मन फटूँ फटूँ कर रहा था । एक देश ने कहा कि दोस्ती की खातिर सामने वाले देश की जमीन पर जा कर फट लो । बिना देर किये वह फट लिया । खबर आ रही है कि रेडियशन के कारण फटा हुआ बम ज्यादा खतरनाक होता है । डूडू मानता है कि पहले शक्ति आती है उसके बाद शांति । अगर नोबल देने वालों ने देर की तो वह पूरी दुनिया मे शांति कायम करने से पीछे नहीं हटेगा । डूडू किसी बात को दिल पर ले लेता है तो ठान लेता है। संयोग देखिए, यह जो बड़े-बड़े बम बना कर रखे हुए हैं उनकी एक्सपायरी डेट भी करीब आ रही है। डूडू को इस बात का अफसोस है कि वह सब बदल सकता है लेकिन किसी चीज की एक्सपायरी डेट नहीं। एक्सपायरी डेट एक बार तय हो गई तो फिर तय हो गई। बड़े आदमी को अपने बड़प्पन की रक्षा हर कीमत पर करना होती है। नोबल वाले इतना तो समझते होंगे । और अगर वे नहीं समझते हैं तो उन्हे कोई हक नहीं बनता है नोबल से खिलवाड़ करने का । जरूरी हो गया है कि वहाँ कुछ समझदार और ‘शरीफ’ लोगों को बैठया जाए । डूडू मानता है कि ‘शरीफ’ समझदार होते हैं । उसकी ख्वाहिश है कि जितनी जल्दी हो सके दुनिया भर में उसकी पूजा शुरू हो जानी चाहिए। डूडू  के चर्च बनें, डूडू  की चर्चा होती रहे । लोग मानें कि डूडू  इंसान की पैदाइश नहीं है । वह अवतार है, जीवन मृत्यु से परे । डूडू को इंडिया बहुत पसंद है। यहां के लोग बहुत समझदार हैं, किसी भी ऐरे गैरे को पूजने लगते हैं। यहाँ लोग स्कूटर लाते हैं और सबसे पहले उसकी पूजा करते हैं, फिर वो तो डूडू है, फट सकता है । इधर वाले बड़े आराम से डूडूचालीसा का पाठ कर सकते हैं । डूडूकथा, डूडूभंडारा, डूडूभजन;  क्या नहीं हो सकता है । एक नजर इधर भी है डूडू की ।

 

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रविवार, 8 जून 2025

साधो ये मंडी शब्दों की


 


पता नहीं ये बाजार का डर है या बाजार का प्यार, कहते हैं कि बाजार घर में घुस आया है, कोई रोक सके तो रोक ले । पुराने जमाने में तो घर के मुख्य दरवाजे पर वेलकम लिखने का चलन था, अतिथि देवो भव । मतलब दिल दरिया है जी, कोई सामने हो ना हो, सबका वेलकम है जी ।  किसी शायर ने लिखा है “हँस के बोला करो, बुलाया करो; आपका घर है, आया जाया करो ।” अपने मतलब की बात बाजार बहुत जल्दी समझ लेता है चाहे उर्दू का शेर ही क्यों न हो । बस मुँह ऊंचा कीजिए बाजारजी और घुसे चले आइए, गली में चाँद निकला है । तरफदार कहते हैं कि पैसा पास हो तो बाजार से अच्छा नौकर कोई नहीं । नाच मेरी बुलबुल तुझे पैसा मिलेगा टाइप। अब अगर चिराग का जिन्न आ जाए तो लायसेंस परमिट का फंदा डाल कर उसका गला घोंट दिया जाएगा । मॉल छाप जिन्न अपने आगे दुकान छाप किफायती जिन्न को टिकने देगा भला । कहने को बाजार दोनों के लिए खुला है । गलाकाट प्रतिस्पर्धा है जी । बड़ा छोटा हर आदमी मुनाफे की टोह में है । चार पैसे के चक्कर में रोटी खाना भी भूल जाता है । सबर करो रे, सब बेच दोगे तो तुम्हारे पास बचेगा क्या !

दीनानाथ ढाइपोटे हमारे पुराने दुश्मननुमा मित्र हैं । आते ही खौलते प्रेम के साथ बोले – तुम भी क्या मनहूस आदमी हो ! कभी शापिंग करने निकलते नहीं हो लेकिन बाजार को लेकर आएं बाएं बकते रहते हो । पता है ! भारत दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है ! न्यूज चैनल देखना छोड़ने का यही परिणाम है, देश की तरक्की का कुछ भी ज्ञान नहीं है तुम्हें ! न्यूज देखा करो नहीं तो पिछड़ जाओगे और फिर गलत पार्टी को वोट दे मरोगे ।

“यार ढाइपोटे, तुम जिसे न्यूज चेनल कह रहे हो वो दरअसल शोरूम हैं किसी कंपनी के ।  खास किस्म का प्रोडक्ट बिकता रहता है वहाँ !  तुम्हें शायद पता नहीं शब्दों की बड़ी मंडी हो गई है आजकल । “

“क्या बात करते हो ! शब्द बिकते हैं क्या ! लेखकों को पारिश्रमिक तक तो मिलता नहीं है । कोई फोकटिया बाजार भी है ऐसा मैंने तो देखा नहीं ।“

“बाजार दिखता है क्या ? दुकानें दिखती हैं, बाजार को देखना समझना पड़ता हैं,  जैसे चरित्र को समझना होता है । बेचने वाला घर जैसा आदमी बन जाता है, मीठी बातें करता है लेकिन ध्यान उसका बेचने पर ही होता है ।“

“चलो माना । लेकिन शब्दों का बाजार !! “

“बाजार नहीं मंडी । शब्दों की मंडी में डालपक मीठे मीठे शब्द, मानो कोई पुरातन दुकान हो मिठाई की । शब्द चिकने हों, गोल गोल हों, रसीले हों, तो एक मौसम का पता देते हैं । मौसम सारे प्राकृतिक नहीं होते हैं, कुछ सरकारी भी होते हैं । अपने बीमा वाले गुप्ता जी हैं ना ! कितनी शुगर शुगर बात करते हैं अपने क्लाइंट से कि वो बेचारा पहले इंसुलिन लेता है और बाद में पालिसी भी । काम हो जाने के बाद गुप्ता जी गुप्त हो जाते हैं और कान मे रह जाते हैं उनके चीठे मीठे शब्द । हर चैनल में गुप्ता जी हैं और मीठा मीठा पेल रहे हैं । एक चेन है शोरूम्स की । इन्सेंटीव के मारे सेल्स मेन झूठ के फुग्गे फुगा फुगा कर दिए जा रहे हैं । लोग लिए जा रहे हैं ।“

“देखो जितनी जल्दी हो सके भ्रम से निकलो । देशभक्त बनों, वरना किसी काम के नहीं रहोगे । फिर मत कहना कि ढाइपोटे ने समय रहते उचित सलाह नहीं दी ।“

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गुरुवार, 5 जून 2025

दिमाग को छोड़ो मन को रगड़ो



“भाई साहब एक बात नोट की होगी आपने;  लगता है इनदिनों हमारे दिमाग ने सोचना बंद कर दिया है ! यूँ समझिए कि दिमाग चलता ही नहीं है । “

“टेंशन मत लो, दिमाग किसी का भी नहीं चलता है । पाँव चलते हैं। पाँव पर ध्यान दो, चप्पल पहना करो ।“

“आप समझे नहीं । मेरा कहने का मतलब था कि पिछले कुछ वर्षों से चिंता के ओवर लोड के चलते दिमाग के पुर्जे ढीले हो गए ।“

“पुर्जे दिमाग मे नहीं होते हैं, मशीन में होते हैं । ढीले हो गए हैं तो मेकेनिक से कसवा लो ।“

“आप बात को समझ नहीं रहे हैं !”

“ समय की माँग है कि लोग बात को नहीं समझने की आदत डाल लें । जो बात समझ जाते हैं वो कमबख्त सवाल पूछते हैं । गाँधी जी ने कहा है कि मन, वचन या कर्म से किसी को दुख पहुंचना हिंसा है । तो सवाल पूछना हिंसा है । धारा तीन सौ सात भी लग सकती है । सरकार देवता है, हमेशा पुष्प वर्षा करती है तो बटोरो, माला बनाओ पूजा पाठ में लगो मजे में । इसमे कुछ समझने या दिमाग चलाने की क्या जरूरत है ! ना समझे वो देशभक्त होता है । “

“आदरणीय आप क्या कह रहे हैं हमे कुछ समझ में नहीं आ रहा है । “

“यही रवैया होना चाहिए । कोई कुछ भी कहे मान लो कि हमें कुछ समझ में नहीं आ रहा है । समझ लेने के खतरे बहुत है । ज्ञानी हो तो घर में बैठो, लूडो खेलो । समझ से खुद भी दूर रहो और अपने बच्चों को भी दूर रखो ।“

“ ऐसे कैसे मान लूँ दीनानाथ जी ! मूर्ख बने रहना क्या आसान काम है ! कुछ तो जानना समझना पड़ता ही है । “

“पढ़े लिखों के लिए कोई काम कठिन नहीं है । जमाने के साथ चलो । मन चांगा तो कठौती में गंगा । दिमाग को छोड़ो मन को रगड़ो ।“

“मन की ही तो दिक्कत है । मानता ही नहीं कमबख्त ।“

“खैनी चबाने वाले कैसे रगड़ते हैं हथेली पर । जितना रगड़ते हैं उतना मजा देती है । कबीर ने कहा है –‘मन मस्त हुआ तो क्यों बोले ‘ । यह एक तरह का योग है । अभ्यास से आएगा । जो लोग पहले मेंढक को देख कर मेंढक-मेंढक चिल्लाते थे अब साँप को देख कर भी चुप लगाये रहते हैं । कला है बाबू कला । ऊंचे लोग ऊंची पसंद । अंदर से बाहर तक केसरी ।“

“साँप दिखाई देते हैं क्या आजकल ?!”

“हाँ, सब देख रहे हैं । भगवान के गले में, भुजाओं में लिपटे दिखाई देते हैं । महँगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, भूख, गरीबी, हत्या, बलात्कार वगैरह सब साँप ही तो हैं ।“

“साँप तो श्रंगार है भगवान का । अपन प्रभुजी की वंदना करते हैं तो इनकी भी हो जाती है । जानते हो ना, पृथ्वी जो है नाग के फन पर टिकी हुई है ।“

“ सही दिशा में बढ़ रहे हो । ऐसे ही सोचते रहोगे तो दिमागी समस्या खत्म हो जाएगी । वो भजन सुना होगा – ‘हवा के साथ साथ, घटा के संग संग ... ओ साथी चल ... यूँ ही दिन रात चल तू ।‘

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सफेद कबूतरों से खतरा


 

 

                  " हुजूर, सारी दिक्क़त सफ़ेद कबूतरों से है। इन्हें लत पड़ी हुई है प्रेम सन्देश इधर से उधर करने की। लोग भी नासमझ हैं, जब भी ये पंख खोलते हैं ऐसा माना जाता है कि शांति का पैगाम फैला रहे हैं ! हमारे खिलाफ़ माहौल भी बनाते हैं। इन पर लगाम नहीं कसी गई या इनके पर नहीं काटे गए तो देख लेना एक दिन धर्म खतरे में पड़ जाएगा। " कौवे ने बाज-महाराज से कहा। 

 

                   बाज को सुबह से कोई अच्छी खबर नहीं मिली थी, वह तैश में आ गया - " ऐसे कैसे धर्म खतरे में पड़ जाएगा! धर्म है तो जंगल है, जंगल है तो जंगली हैं और जंगली है तो हमारी सत्ता है। धर्म को बचाना ही सत्ता को बचाना है।... तुम कौवे होकर इतना नहीं समझते हो!  " 

 

                 " समझता हूँ हुजूर, इसीलिए तो सफेद कबूतरों की हिमाकत बता रहा हूँ  । कौवे आपके वफादार हैं । आप हैं तो हमारा अस्तित्व है। आप से बचा खाकर ही हमारी कौम जिंदा रहती है।" 

 

                 " काले कबूतर क्या करते हैं !! उनकी संख्या तो काफी ज्यादा है।  जंगल में बिखरा दाना ज्यादातर वही खा जाते हैं। उन्हें विकल्प देना चाहिए।" बाज ने कहा। 

 

                 " मुझे अफसोस से बाज महाराज। काले कबूतर तो जंगली ही कहलाते हैं। प्रेम और शांति के प्रति उनमें संवेदन नहीं होती है। वे कितना ही पर फैला लें लेकिन लोगों में उनके प्रति भरोसा पैदा नहीं होता है। " 

 

                " तुम भी तो कौवे हो, और किसी लायक नहीं हो। फिर भी जंगल में जमे हुए हो या नहीं? श्राद्ध पक्ष में बस्तियों में जाते हो और पूजे भी जाते हो या नहीं ? काले कबूतरों को अपने साथ रखा करो। कुछ संस्कार दो उन्हें, सत्ता-भक्ति सिखाओ । उन्हें समझाओ कि भक्ति में शक्ति होती है।" बाज ने आदेशनुमा सुझाव दिया। 

 

                   कौवे ने सिर झुकाते हुए कहा - " क्षमा करें महाराज, कौवा बिरादरी उच्च है। आप सरकार के साथ उठना बैठना और खाना पीना है हमारी बिरादरी का। हम उन कबूतरों के साथ बराबरी का व्यवहार नहीं कर सकते।"

 

                   " तो फिर सफेद कबूतरों की समस्या का क्या होगा ! कैसे रोकेंगे इन्हें?"

 

                  " इसके दो तरीके हैं महाराज। पहला इन्हें जंगल-द्रोही घोषित करके मार खाया जाए। दूसरा उन्हें पुरस्कार और सम्मान देकर महान बना दिया जाए। एक बार किसी को सत्ता से महानता का प्रमाण पत्र मिल जाए तो उसका रंग बदल जाता है। "

 

                  " क्या पुरस्कृत कबूतर सफेद से काले हो जाते हैं !!? "

 

                 " रहते तो सफेद ही हैं महाराज, लेकिन उन्हें काला दिखाना बंद हो जाता है ।" 

 

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सोमवार, 12 मई 2025

ताऊ उल्लू ना बना मेरे को


 


 

           " देखो भाई भूरा सिंह गाँव की इज्जत का सवाल है। पूरा गाँव तुम्हारी तरफ उम्मीद से देख रहा है। तुम्हें सूरा सिंह से कुश्ती तो लड़ना ही पड़ेगी। आखिर उसने तुम्हें सबके सामने, खुले आम ताल ठोक कर चुनौती दी है !" चौपाल पर ताऊ के सामने जुटे गाँव वालों ने भूरा सिंह को हौसला बढ़ने के अंदाज में कहा।

           " मैं जरुर लड़ूँगा ताऊ। सूरा सिंह को ऐसी पटकनी लगाऊँगा की उसकी सात पुश्तें याद रखेंगी। अभी बोलो तो अभी के अभी निकल जाऊँ लड़ने के वास्ते या फिर कल बोलो तो कल। .... सूरा सिंह को ऐसी धूल चटाऊँगा की दुनिया देखेगी दुनिया ।.... पर ताऊ कुछ मदद आप लोगों को भी करना पड़ेगी। " भूरा सिंह ने कहा।
           " तू बोल तो सही भूरे, तुझे कैसी मदद चाहिए। " पंच एक साथ बोले।
          " अपने गाँव के दूध वाले मंडी में दूध बेचते हैं और सुरा सिंह के आदमी खरीद ले जाते हैं। अपने गाँव के दूध से सूरा सिंह पहलवान बना फिरता है। ये गल्त है, दूध बंद कराओ जी उसका। कल से कोई दूध नहीं बेचे उसको। "
           " ठीक है भूरे तू चिंता मत कर। हम लोग दूध बंद कराने की कोशिश करते हैं। "
           " एक बात और है ताऊ। ये सुरा सिंह बादाम-पिश्ता खाता है। उधर के कुछ लोगों को फोड़ लो और उसको पिज़्ज़ा-बर्गर की लत लगवाओ। कुछ भी करो, कहीं से फ्री गिफ्ट-शिफ्ट में भेजो जी। "
           " ठीक है पुत्तर सूरा सिंह के आदमी हैं मेरे कहने में, ये कौन सी बड़ी बात है। चल ये भी हो जाएगा। "
           " एक बात और, ये सूरा जल्दी सोता है और जल्दी उठता है। उसे रात में रील देखने की आदत पड़वाओ जी किसी तरह से । ताकि सवेरे देर से उठे और आलसी हो जाए । "
          " यह तो मुश्किल है भूरे  । चल फिर भी देखते हैं।... कोशिश करेंगे। "
            " कुश्ती तो मैं ऐसी जीतूंगा ताऊ कि किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी। ऐसे दाँव लगाऊँगा कि जमाना याद करेगा । ... पंडित से शत्रु नाशक पूजा भी करवा देते तो ठीक रहता। "
            " इसमें क्या दिक्कत है। पंडित तो तेरा ही है। कर देगा पूजा भी।... बस तू जीत जाए किसी तरह से,  यही चाहते हैं लोग। "

           “अरे देखना तो सही ताऊ, ऐसा कूटूँगा ऐसा कूटूँगा कि सोचा भी नहीं होगा किसी ने ।“ 
           " पर भूरे ...  तेरी क्या तैयारी है ?  यह तो बता बेटा । "
           " मेरी फिकर मत कर ताऊ । जोर से बोलूँगा  दे दनादन दे दनादन .... सूरा सुनेगा तो उसकी हिम्मत टूट जाएगी। देख लेना वो काम करूंगा कि इतिहास याद रखेगा। "

          “ तू तो ऐसा कर भूरे कि बस ताल ठोकता रह दनादन दनादन । मैं बीच में पड़ कर दोनों को बराबर घोषित कर दूंगा । ना वो जीतेगा  ना तू हारेगा । बात खतम । बोल मंजूर है ।“ ताऊ ने बात को समझते हुए कहा ।

          “ताऊ उल्लू ना बना मेरे को । एक साथ दोनों को दोनों चित हो जाएंगे तो फिर विश्व पहलवान तू ही  कहलाएगा !”
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सोमवार, 14 अप्रैल 2025

कला से खौफ


 

               मंत्री ने कहा कि "अपने राज्य में यह एक बड़े कलाकार हैं चित्र बनाते हैं..... "

               राजा ने प्रश्न किया -"चित्र क्यों बनाते हैं!? क्या होता है चित्र बनाने से? अगर कल युद्ध हुआ तो हमारे सिपाही क्या चित्र लेकर मैदान में उतरेंगे!! तुम हथियार बनाओ। राज्य अंदरूनी और बाहरी खतरों से घिरा हुआ है, हमें हथियारों की जरूरत है। तुम जानते हो अच्छा हथियार बनाने और चलने वाला सबसे बड़ा कलाकार और देशभक्त होता है। "
              " महाराज की कीर्ति चांद सितारों तक पहुंचे मलिक। किंतु निवेदन करता हूं कि मुझे हथियार बनाना नहीं आता है। मैं  चित्रों की प्रदर्शनी लग रहा हूं । आप उद्घाटन कर देते और एक नजर डाल लेते तो कला का सम्मान बढ़ जाता। " चित्रकार ने विनम्रता से हाथ जोड़ दिए।
             " हथियार नहीं बना सकते तो गाना तो गा सकते हो। गाना तो कला है कोई भी कर सकता है। चलो गाओ जरा और दरबार का मनोरंजन करो।"
              " गाने वाले कलाकार दूसरे होते हैं महाराज। "
              " सच्चे कलाकार को सब आना चाहिए। इसमें पहला दूसरा तीसरा कलाकार क्या होता है! "
             मामला बिगड़ता देख मंत्री को हस्तक्षेप करना पड़ा। " महाराज यह राज्य का श्रेष्ठ चित्रकार है इसके प्रशंसक भी बहुत है यदि आप प्रदर्शनी का उद्घाटन और अवलोकन कर लेंगे तो कला के लिए यह अच्छी बात होगी। "
               " लेकिन इसके चित्रों से राज्य को क्या लाभ होगा। "
               " राजन इसके चित्र देखकर प्रजा के मन में प्रसन्नता होगी। "
               " ठीक है पर प्रजा की प्रसन्नता से राज्य को क्या लाभ होगा? "
               " महाराज अगले माह आपके लिए राज-कीर्ति पंचकोटि यज्ञ होना है। यदि प्रजा प्रसन्न हुई तो हम उससे यज्ञ कर वसूल सकेंगे। प्रसन्न प्रजा घी और हवन सामग्री का ढेर लगा देगी। इसलिए हे राजन, चित्रकार को सहयोग करने की कृपा करें।"
              " महामंत्री, यदि इसके चित्र देखकर लोग प्रसन्न नहीं हुए, कर और हवन सामग्री नहीं दी तो इससे भरपाई कैसे की जा सकेगी?” महाराज ने सोच कर प्रश्न रखा।
              " चित्रकार तुम्हारे पास कितनी संपत्ति है? "
            " संपत्ति नहीं है भगवान । किराए के घर में रहता हूं, रुखा सूखा खाता हूं। लेकिन मुझे विश्वास है कि  महाराज पधारेंगे तो प्रजा अवश्य प्रसन्न होगी। " चित्रकार ने निवेदन किया।
             " राज कीर्ति यज्ञ की सफलता के लिए आपको चलना चाहिए महाराज। करों के बोझ से दबी प्रजा से एक और कर लेने के लिए चित्रकला प्रदर्शनी दिखाने का प्रयोग बुरा नहीं है। " मंत्री ने समझाया।
              महाराज राजी हो गए और तय स्थान पर अपने मंत्रियों के साथ पहुंचे।
              " यह क्या! लाल रिबन!! ... लाल हटा दो हरी रिबन लओ और इसे हम कैंची से नहीं तलवार से काटेंगे। "
              तुरंत व्यवस्था की गई और उद्घाटन हो गया। अंदर बहुत सारी पेंटिंग्स लगी थी। महाराज एक पेंटिंग के सामने खड़े हो गए और चित्रकार से पूछा - यह क्या है?
               " यह सूर्योदय का दृश्य है महाराज फूल खिले हैं चिड़िया चहक रही है उमंग उत्साह का वातावरण दिखाया है। "
                " लेकिन सूर्य लाल है! उसके प्रकाश से आकाश लाल है! फूल भी लाल खिल रहे हैं! चिड़ियों की चोंच भी लाल है!! एक एक पेंटिंग में इतना इतना लाल!! ... कम्युनिस्ट हो क्या?!" महाराज नाराज लगे।
                " नहीं महाराज । " चित्रकार ने हाथ जोड़ दिए।
                " प्रजा को क्या संदेश जाएगा इससे!! महामंत्री, आप तो कह रहे थे कि लोग कर देंगे। मुझे तो लगता है इसे देखकर बगावत कर देंगे। "
                " महाराज, कम्युनिस्ट अब हैं कहां!! जो बचे हैं वे बीपी और कोलेस्ट्रॉल की गोलियां खाते पड़े हैं कहीं। उनके सारे लाल झंडों को प्रजा ने धर्मग्रंथो को बाँधने के काम में ले लिया है। आप चिंता ना करें राजन, अब लाल से कुछ फर्क नहीं पड़ने वाला है। "मंत्री ने समझाया।
               "अरे महामंत्री! चित्रकार की दाढ़ी देखो ! खद्दर के कपड़े देखो ! पांव में जूतियां भी नहीं है ! यह जरूर कामरेड है। हम कोई जोखिम नहीं उठा सकते हैं। सारे चित्र जप्त करें और चित्रकार को मरने के लिए जंगली जानवरों के सामने छोड़ दें। " कह कर वो चले गए।
                चित्रकार समझता रहा कि ऐसा नहीं है, लेकिन किसी ने उसकी नहीं सुनी। भाग्य से मंत्री को दया आ गई। जान बचाने के लिए उसने चित्रकार को राज्य से बाहर कहीं भगा दिया।

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सोमवार, 7 अप्रैल 2025

केटवाक और कदमश्री सम्मान

 




               “नहीं नहीं श्रीमान, कैटवॉक कीजिए। कैटवॉक समझते हैं ना? नहीं समझते हैं तो पहले सीख कर आइये, समझ कर आइये। योग्यता वोग्यता को भूल जाइए, इनके मुगलते में मत रहिये । कदमश्री सम्मान कोई मामूली चीज नहीं है। ड्राइविंग लाइसेंस लेने के लिए भी दस तरह के टेस्ट देना पड़ते हैं तो यहां क्या दिक्कत है! लेने वाले एक ढूंढो तो हजार मिल जाते हैं। यूं कहो कि गले पड़ जाते हैं। कवि प्रतिदिन-पचास का नाम सुना होगा। हिम्मत वाले हैं, जिद्दी हैं, पचासों टेस्ट दे चुके हैं लेकिन नहीं मिला। कैटवॉक करो और मिल ही जाए इसकी कोई गारंटी नहीं है। टेस्ट परफेक्ट होना चाहिए। बिल्ली चूहा दिखाए और मलाई के मामले में मुंह छुपा ले तो कैसे काम चलेगा। कंप्लीट केट-पन होगा तभी उम्मीद की जा सकती है। अगली बार आओ तो मलाई लेकर आना। मलाई खिलाना शुभ होता है। कदमश्री सम्मान जैसे मामले में शुभ अशुभ का ख्याल तो रखना जरूरी है। इस तरह के बड़े दरबारी सम्मान का मामला मात्र योग संयोग का नहीं होता है। नेपथ्य लीला हमेशा सम्मान से बड़ी होती है। अंतर केवल इतना है कि सम्मान दिखता है । कहने वाले का गए हैं फल की चिंता मत करो कैटवॉक किए जाओ। समझने वाले समझ गए ना समझे वह अनाड़ी है।“ वे एक साँस में बोल गए । उनके पास समय कहाँ, राजधानी देशभर की बिल्लियों से भरी पड़ी है  

                खुद केट भी माँ के पेट से कैटवॉक सीख कर नहीं आती है। कवि प्रतिदिन-पचास अपने मोटापे के बावजूद अभी भी लगे हुए हैं। उन्होंने देखा है कि कोशिश करता रहे तो हाथी भी कैटवॉक कर सकता है। पिछला रिकॉर्ड खंगालोगे तो पता चलेगा कि राजधानी में कई हाथी कैटवॉक कर गए हैं। उनसे ही सीखना चाहिए ।  चलिए कुछ पूछते हैं ।
" गजराज जी आपको पिछली बार कदमश्री सम्मान मिला है तो उसके बारे में कुछ बताइए। "

“कदमश्री मिलता नहीं है लेना पड़ता है। किसी शायर ने कहा है ना, बढ़ा कर हाथ जो उठा ले जाम उसका है।"
" लेकिन वो तो कैटवॉक करने के लिए कह रहे हैं!! हाथ कहां बढ़ाएं । क्या करना पड़ता है?"
" क्या नहीं, यह पूछिए कि क्या-क्या करना पड़ता है। समझिए तनी हुई रस्सी पर चलना होता है।"
" चल लूँगा, कितना दस बीस फुट रस्सी पर? "
" नहीं अपने शहर से राजधानी तक। खूब बैलेंस बनाकर रखना जरूरी है। हाथ में एक बड़ा डंडा हो चिकना, सिफारिश का। उसके दोनों छोरों पर ठीक-ठाक वजन हो, तकि जरूरत पड़ने पर संतुलन बना रहे। इस मामले में आदमी को सुस्ती नहीं रखना चाहिये। कदमश्री का सीजन होता है जैसे आम का होता है। उसके बाद चल जाता है । "
" ठीक है राजधानी पहुंचते ही काम तो हो जाएगा ना? "
" वहां पहुंचोगे तो तुम्हें असली कैट भी मिलेंगी। तुम देखोगे कि वहां मेंढक, खरगोश, कंगारू वगैरह सब कैटवाक कर रहे है !  कुछ डंकी मंकी भी कोशिश में लगे हैं । बहुत कठिन है ।“

“फिर आपने कैसे ले लिया गजराज !?”

“गणेश जी ने दिलवाया ।“

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सोमवार, 31 मार्च 2025

आलसी आदमी महान होता है

 




 


                      आलसी आदमी भी दूसरे तमाम प्राणियों की तरह जिंदा होता है। फर्क केवल उसके जिंदा रहने के तरीके में देखा जा सकता है। वह जरूरी / गैरजरूरी किसी भी तरह की हलन चलन में विश्वास नहीं करता है। वह मानता है कि बैठे रहकर या पड़े रहकर भी मस्त जीवन जिया जा सकता है। आलस्य एक तरह का दिव्य गुण है । शेषनाग पर भगवान भी तो सदा लेटायमान रहते हैं । आलसी अपने को ईश्वर का सच्चा पुत्र मानता है। काम या परिश्रम करके वह पालनहार परमपिता की महिमा पर बट्टा नहीं लगाता है। वह आलस्य के आनंद रस में इतना पगा होता है कि उसे निष्क्रिय जीवन वरदान लगता है । वह अपने को सर्वज्ञानी मानता है । उसे नया पुराना कुछ भी करने या सीखने की जरूरत महसूस नहीं होती है। असल में वह बंद गोदाम के आखिरी कोने में पड़ा हुआ बुद्धिजीवी होता है। उसे अच्छी तरह से पता है कि जीवन ओन्ली चार दिनों का है। ना यहां कुछ लेकर आए थे ना यहां से कुछ लेकर जाएंगे। यह दुनिया फोकट की एक सराय है जिसमें चतुर लोग खाते, पीते, आराम करते हैं और चले जाते हैं। 50% दानों पर आलसियों का नाम भी लिखा होता है । वक्त से पहले और भाग्य से ज्यादा किसी न्यायाधीश को भी नहीं मिलता है। लीडर करे न चाकरी मंत्री करे ना काम; दास मलूका का कह गए सबके दाता राम। ऐसे में बिना बात हाड़ तोड़ने का कोई मतलब नहीं है। बैल दिन भर काम करते हैं और बैल ही बने रहते हैं, घोड़ा नहीं हो जाते हैं। आलसी मानता है कि हमसे पहले हजारों भोलारम आए और तमाम काम करके चले गए लेकिन कोई उन्हें नहीं जानता। इसीलिए भगवान कहते हैं कि तू मेरा हो जा और अपनी चिंताएं मुझ पर छोड़ कर सो जा । बताइए क्या आज के समय में भगवान पर विश्वास करना गलत है!? नहीं नहीं, बोलिए, गलत है तो कहिये, फिर पता चलेगा। एक बात और, जो लोग काम करते हैं उनसे जाने अनजाने में कानून टूटता ही है। आलसी कानून के सम्मान के लिए भी काम नहीं करता है। उसे किसी नेता या सरकार से कोई शिकायत नहीं है। इसलिए वोट देकर विरोध या समर्थन दर्ज कराने की उसे कभी जरूरत महसूस नहीं हुई। ऐसा नहीं है कि वह कुछ सोचता विचारता नहीं है। मतदान वाले दिन बस सुबह से सोचता है कि वोट दूं या नहीं दूँ। नहीं दूं या दे ही दूं। किसी निर्णय पर पहुंचने से पहले शाम हो जाती है और वह भगवान को धन्यवाद कहकर वापस पड़ जाता है।

                   जब आप रुचि से इतना पढ़ चुके हैं तो यह भी जान लीजिए कि आलसी होते कितने प्रकार के हैं। जन्मजात आलसी साउण्ड प्रूफ होते हैं। लोगों के कहने सुनने को, तानों को एक कान से सुनकर दूसरे कान से निकाल देते हैं। आप जानते हैं यह कठिन काम है, बड़े नेताओं से ही सधता है । ऐसा करते हुए वह बोलने वालों को अज्ञानी और मूर्ख समझ कर माफ भी करते रहते हैं, मतलब दिल बड़ा । कुछ आलसी संत टाइप होते हैं। वे मानते हैं कि न उधो से लेना न माधो को देना, न काहू से दोस्ती न काहू से बैर । कुछ मौका परस्त आलसी भी होते हैं जो वक्त जरूरत और अवसर देखकर अलसाते हैं। जैसे आज संडे है तो लस्त पड़े हैं, कुछ नहीं करेंगे। या फिर काम करने वाली (पत्नी)  है आसपास तो वह कुछ नहीं करेंगे। ससुराल में है तो प्रति घंटा चाय बिस्किट की दर से सोफ़ा तोड़ना उनका अधिकार है। आलसी प्रायः भाग्यवान होते हैं, कोई काम खुद ही उनके पास नहीं फटकता है । घर-परिवार और आसपास के लोग ही उन्हें घोर आलसी मानकर उनसे सारी उम्मीद छोड़ देते हैं।

 

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रविवार, 30 मार्च 2025

हास्य व्यंग्य मंत्रालय


 



                    आपात बैठक में तय हुआ कि एक हास्य व्यंग्य मंत्रालय बनाना बहुत आवश्यक हो गया है। देश महसूस कर रहा है की हास्य व्यंग्य की समस्या ने नक्सल समस्या की तरह जड़े जमा ली हैं । पानी दाढ़ीयों से ऊपर जा चुका है और नाक बंद हो जाने का खतरा पैदा हो गया है। खुफिया रिपोर्ट से पता चला है कि देशभर में उगे व्यंग्यकार हमारे देशप्रेमियों पर धड़धड व्यंग्य लिखने पर आमादा हैं । दिक्कत सिर्फ यह है कि ये लोग एकदम से पहचान में नहीं आते हैं। लेकिन सरकार को सब समझ में आता है और कार्रवाई करने से पीछे नहीं हटेगी।

                हमने तय किया है कि मंत्रालय के प्रमुख को कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया जाएगा। ये युवा मंत्री ना खुद हँसेगा और ना किसी दूसरे को हँसने देगा। चेहरे पर हर समय छाई रहने वाली मनहूसियत उसकी पहचान होगी। वह पढ़ा लिखा नहीं होगा..... लेकिन उसके पास डिग्री बड़ी होगी। उसमें व्यंग को समझने की चाहे क्षमता ना हो लेकिन व्यंग्यकार को देख लेने का इरादा मजबूत होगा। इस काम के लिए स्थानीय पुलिस के अलावा उसके साथ पर्याप्त संख्या में कड़क कमांडो मौजूद रहेंगे। मंत्रालय को यह अधिकार होगा कि नगर कसबों से लगाकर ग्राम पंचायत स्तर तक युवाओं का व्यंग्य-भंजक दल गठित करें। पता चला है कि ओटलों, पाटियों, चौपालों, चाय के ठियों या काफी हाउस में मखौल मस्ती चला करती है। सूचना मिलते ही व्यंग्य-भंजक वहां सक्रिय हो जाएंगे। पहली बार व्यंग्य करते पकड़े जाने पर चेतावनी और अगली कार्रवाई का विस्तृत विवरण देकर छोड़ा जाएगा। लेकिन दूसरी बार कटाई छिलाई करके सारे कांटे निकाल दिए जाएंगे और आदमी से एलोवेरा बना दिया जाएगा। हमारी साहित्य समीक्षक संगठन ने बताया है कि व्यंग्यकार एबले किस्म के जीव होते हैं। उनको सोते शेर की नाक आदि में काड़ी करने की बुरी आदत होती है। और जब शेर जाग जाता है तो उछलकर झाड़ पर भी चढ़ जाते हैं। व्यंग्य के ये तरबूज ऊपर से हरे और अंदर से लाल होते हैं। पार्टी लाइन को ना हरा पसंद है ना लाल। सब जानते हैं।

                 सावधानी हटी और चट्ट से दुर्घटना घटी। इसलिए जनहित में बताया जा रहा है की हास्य और व्यंग्य में संक्रमण की भयंकर प्रवृत्ति होती है। यह फूस में आग की तरह फैलता है। इनका वायरस इतना खतरनाक है कि एक व्यंग्यकार को जेल में डाल दो तो तीन चार महीने में सारे कैदी व्यंग्यकार बन सकते हैं। नया मंत्रालय ऐसी जेलों का निर्माण करेगा जो निर्जन स्थान पर होंगी और जहां इन कमबख्तों को सिगरेट, शराब और दोस्त नहीं मिलेंगे। व्यंग्यकार को इसमें क्वॉरेंटाइन करके सड़ाया जाएगा। मंत्रालय जल्द ही एंटी व्यंग वैक्सीन बनवाने कि कोशिश भी करेगा।

                पता चला है की हास्य-व्यंग्य को साहित्य में भी जगह मिली हुई है। यह कार्य किसने किया इसकी जांच की जाएगी। दोषी पाए जाने वाले को कब्र से भी निकाल कर मुकदमा चलाया जाएगा। यदि वे कब्र में नहीं मिले तो श्राद्ध पक्ष में उनका सर्च वारंट जारी किया जाएगा। न्यायपालिका पर अब सरकार को पूरा भरोसा है। साहित्य में हास्य व्यंग्य का अतिक्रमण सिद्ध होते ही तत्काल उसकी बुलडोजर सेवा की जाएगी। बहुत से व्यंग्यकार अतीत में पुरस्कृत व सम्मानित हुए हैं। उन्हें प्राथमिकता से असम्मानित करते हुए हिसाब बराबर किया जाएगा। ऐसे व्यंग्यकार जिन्होंने राजनीतिक व्यवस्था पर कुदाली चलाई है और अब दिवंगत है उनके नाम शौचालय पर लिखे जाएंगे। इस मामले में मंत्रालय का निर्णय अंतिम व बंधनकारी होगा।

                    मंत्रालय एक हास्य व्यंग्य आचरण संहिता भी बनाएगा। जिसमें हंसने के नियम वह कायदों का विवरण होगा। मंत्रालय विवेक का इस्तेमाल करके बेजा हँसने पर दंड की व्यवस्था करेगा और अधिक हँसने टैक्स की लगा सकेगा । राष्ट्रीय चैनल पर हर सप्ताह 'हंसी की बात' कार्यक्रम शुरू किया जाएगा जिसमें जनता एक बार निशुल्क हँस सकेगी। छानबीन और छापे के दौरान जिनके घरों में हास्य-व्यंग्य की किताबें बरामद होगी वे देशद्रोही माने जाएंगे। जिन प्रदेशों में हास्य-व्यंग वाले अधिक पैदा होते हैं वहां व्यंग्य कीटनाशक तब तक छिड़काया जाएगा जब तक कि व्यंग्य-कृमि पूरी तरह नष्ट नहीं हो जाएं ।

                      मंत्रालय को पता है कि विरोधी दलों की मिट्टी पलीत करने के लिए कुछ अनुमोदन प्राप्त व्यंग्यकार लगेंगे। जरूरत पूरी करने के लिए ऐसे नए व्यंग्यकार प्रशिक्षित किए जाएंगे। मौजूदा निष्ठावान व्यंग्यकारों का भी रजिस्ट्रेशन किया जाएगा। आवेदन करने पर ऐसे व्यंग्यकारों को मंत्रालय का अनुमति पत्र मिलेगा और गाइडलाइन के अनुसार वे अपनी रचना लिख सकेंगे। आवेदन का प्रारूप ऑनलाइन उपलब्ध रहेगा। आगे और खबरों के लिए देखते रहिये खाज से खुजली तक।

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बुधवार, 19 मार्च 2025

सिस्टम बना रहना चाहिए







                    
सरकारों का क्या है! सरकारी आती हैं, सरकारी जाती हैं, पर यह सिस्टम बना रहना चाहिए । लोग देते रहें,  हम लेते रहें यही धरम हैं । इसी लेनदेन से समाज चलता है, सरकार चलती है, घर चलता है। कहने वाले इसे बुरा कहते हैं, लेकिन यह कोई नई बात नहीं है। जब ये सिस्टम नहीं था तब भी कुछ बातें थी जिन्हें लोग बुरा कहते थे। हम तो कहते हैं कि समाज में कुछ चीज बुरी अवश्य होनी चाहिए ताकि बुरा कहने वाले निराश ना हों और रोजगार में लग रहें । हालांकि सिस्टम बुरा नहीं है यदि आप सिस्टम के अंदर हों । सच बात तो यह है कि इसे बुरा कहने वाले पहले सिस्टम के अंदर आने की कोशिश करते हैं। बहुत से सफल नहीं हो पाते हैं तो मजबूरन उन्हें सिस्टम के खिलाफ ईमानदार होने का दावा करना पड़ता है। ईमानदारी उनकी प्रथिकता नहीं मजबूरी है ।
                 सिस्टम से बाहर पड़े रह गए कुछ बुद्धिजीवियों का मानना है कि सिस्टम से आदमी की बुरी सोच बनती है और वह बेईमानी की तरफ चला जाता है। जबकि ऐसा नहीं है, सबके कल्याण की सोच से सिस्टम बनता है । देश में कानून है, पुलिस है, जेलें हैं, वामपंथी हैं और नैतिकता वादी भी हैं । इन सबके रहते हुए सिस्टम को विकसित कर लेना बहुत कठिन है । लेकिन कुछ दृढ़ संकल्पित समाज-प्रेमी मिल बैठकर रास्ता निकाल लेते हैं। धीरे-धीरे एक समानांतर व्यवस्था यानी सिस्टम खड़ा हो जाता है । ‘सब का साथ सब का विकास’ की भावना से सिस्टम मजबूत बनता है । कानून अपनी जगह है सिस्टम अपनी जगह । वे कानून का कानून-विशेषज्ञों के निर्देश में आदर करते हैं और पूरी कोशिश करते हैं कि उसे धर्म-संकट में नहीं डालें । सहयोग की भावना से काम करो तो कानून भी सहयोग करने से पीछे नहीं हटता है। अच्छे नागरिकों को और क्या चाहिए । आदमी पैसा ले और काम कर दे आज यही सच्ची ईमानदारी है । हाँ, इस बात को नोट करें, सिस्टम लोकतंत्र को पसंद करता है । हर पाँच साल में पहले से बेहतर और सहयोग करने वाली सरकार चुनने का अवसर मिल जाता है जनता को । देखिए जूता काटता है तो कोई जूते को फेंक नहीं देता है । समझदार आदमी वह होता है जो धैर्य रखता है । कुछ दिनों में काटे जाने वाली जगह की चमड़ी धीरे-धीरे मोटी हो जाती है । कुछ ढीला जूता भी हो जाता है । इस सहयोगी पहल से पहनने वाले को जूता प्यारा लगने लगता है। ईमानदारी भी शुरू-शुरू में काटती है । बाद में परिस्थितियों के अनुसार स्वयं को ढालती जाती है । वही समाज और सभ्यताएं जिंदा रहती हैं जो समय के अनुसार अपने को बदलती रहती है। हमारे यहां ज्यादातर लोग धार्मिक हैं । पूजा स्थलों पर चढ़ाव  चढ़ना हमारी आदत में है । इससे सिस्टम को मजबूत आधार मिलता है । सरकारी महकमें भी एक तरह के देवस्थान होते हैं। चढ़ावा चढ़ाएंगे तभी देवता प्रसन्न होंगे और उनकी मनोकामना पूरी होगी । यह धारणा सिस्टम को मजबूत करती है।

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गुरुवार, 30 जनवरी 2025

नाच मेरी जान तुझे पैसा मिलेगा


 


हमारे यहां बहुत तरह के मौसम होते हैं। जैसे शादी का मौसम, चुनाव का मौसम, गबन घोटाले का मौसम, पीने खाने का मौसम। मौसम के हिसाब से बाजार अपनी कमर कसता और ढीली करता है। बाजार और मौसम में मौसेरा रिश्ता है। ऊपर से अलग-अलग है अंदर से एक हैं। मौसी माँ बराबर होती है चाहे किसी की भी हो।
इन दिनों बसंत है, फूल खिल रहे हैं। मीडिया बता रहा है सब ओर हरा हरा है। चरने वाले चर रहे हैं। जो ना चर पाए वही आदमी है। मौसम की कहें तो रेवड़ियों का है। जी हां वही जो गुड़ तिल से बनती है। छोटी-छोटी मीठी मीठी। जिसे अंधा बाँटता है और अपने अपनों को देता है। रेवड़ियां जितनी मीठी होती है उतनी ही बदनाम भी। जो विरोध करते हैं वह भी बांटने लगते हैं, अगर मौसम रेवड़ियों का हो। लोग मुंह खोलकर बाहर निकलते हैं, पता नहीं कौन मुट्ठी भर डाल दे। मौसम है इसलिए गैंग बंदूक लेकर नहीं रेवड़ियां लेकर निकलती हैं। आज एक के मुंह में डालेंगे कल दूसरे के हलक से निकाल लेंगे। जन सेवा का काला जादू है। कहते हैं रेवड़ियाँ बांटने से कोई कटता नहीं, जुड़ता है। महिलाएं समझदार और जिम्मेदार होती हैं। टीका लगाकर माइक्रो-पात्र में पांच रेवड़ियां रखकर एक दूसरे को देती है और जुड़ जाती हैं। पुरुष ऐसा नहीं करते हैं। जोड़ने तोड़ने के मामले में वे प्रायः नेताओं की सुनते हैं और साधु संतों का मुंह तकते हैं।
खैर, मनोहर सातपुते बहुत भरे हुए हैं। वे रेवड़ियों के बहुत विरोधी हैं। आते ही बोले - " तुम तो आजकल मुंह खोलते नहीं हो अपना! राजनीति में लोकतंत्र को रेवाड़ी-तंत्र बना दिया है! पुराने लोग जनता को जनार्दन मानते थे। यह लोग पतुरिया बनाने पर तुले हुए हैं। नाच मेरी जान तुझे पैसा मिलेगा! पवित्र लोकतंत्र का आक्शन हो रहा है क्या ! बोली लगाई जा रही है ! अच्छा भला सिस्टम बेगम का कोठा होता जा रहा है। तीन-चार जमीदार थैली दिखा दिखा कर घुंघरू गिन रहे हैं! तुम्हें क्या लगता है लोग समझेंगे नहीं!? "
मनोहर सातपुते का गुस्सा जायज है। दुनिया बाजार हो गई है। सब बिकता है। रिश्ते-नाते, जमीर, शरीर, क्या नहीं है बाजार में। एक जगह के बिके हुए लोग दूसरी जगह खरीददार हो जाते हैं। लोकतंत्र की भी बोली लग रही है तो बड़ी बात नहीं है। वह दिन दूर नहीं जब सातपुते का मुँह भी रेवड़ियों से भर के बंद कर दिया जाएगा।

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