मंगलवार, 9 सितंबर 2025

बाजार के हाथ कानून से भी लंबे होते हैं


 


                 हमारा लोकतंत्र इतना परिपक्व हो गया है कि वोटर को मूर्ख बनाना मतलब छाछ को बिलोना है । कुछ नेता मुगालता पाले इस काम में अपनी ऊर्जा खपाते हैं वे अपना समय बर्बाद करते हैं । क्योंकि एक सीमा के बाद और अधिक की संभावना हर जगह खत्म हो जाती है । यह बात मूर्खता पर भी लागू होती है । सोच समझ कर वोट देने के दिन गए, अब वोट बाजार भाव से देना होते हैं । बाजार के हाथ कानून से भी लंबे होते हैं । यहाँ कूड़ कबाड़ से लगा कर गोबर तक बिकता है । कुत्ता, बिल्ली, भैंस, बकरी ही नहीं दूल्हों का भी बड़ा बाजार है । जहाँ भी माँग और पूर्ति का मसला हो बाजार खड़ा दिखाई देता है । चुनाव के समय वोटर कुत्ता, बिल्ली, भैंस, बकरी, दूल्हा होता है । जरूरत के अनुसार उनकी कीमत लगाई जाती है । कुछ वोटर ब्रांडेड होते उनकी कीमत ज्यादा होती है । कुछ के पास दिमाग भी होता है लेकिन टाइम नहीं होता है । ऐसे लोग वोट करने नहीं जाते हैं । पूछने पर वे नाराजी के साथ कहते है कि सारे उम्मीदवार चोर, उचक्के, गुंडे-बदमाश हैं तो किसी को भी चुनो कोई फर्क नहीं पड़ता है । ऐसे वोटर खुद कितने कमजोर होते हैं इसका पता उन्हें नहीं होता है ।

                 किसी के पास सक्रिय बाहुबल हो लेकिन मेधा निष्क्रिय हो तो उसे लाल मिट्टी का पहलवान कहते हैं । ये अच्छे वोटर ही नहीं अच्छे उम्मीदवार भी माने जाते हैं । जिस तरह जादूगर अंडे को मुर्गी या मुर्गी को अंडा बना देता है उसी तरह छड़ी, लाठी डंडों से आदमी को वोटर भी बनाया जा सकता है । राजनीतिक दलों को मालूम है कि यह भूखे प्यासे और गरीब मात्र एक दिन की दारू और दो दिन के खाने में सरकार बनवा सकते हैं। शोधकर्ता देख सकते हैं कि दुनिया भर में इसे सस्ता लोकतंत्र नहीं है। लोग महंगाई को लेकर हाय हाय करते हों तो करते रहें, लेकिन जिनका विश्वास हमारे लोकतंत्र में है वह पूरी तरह से आश्वास्त है कि उनके हाथों लगभग मूल्यहीन सरकार बन जाती है ।

               अंग्रेजी मीडियम में पढ़े हुए लोग यह जानकर प्रसन्न है कि उन्हें ऐसा समाज मिल रहा है जो बहुत सस्ते में हर तरह की सत्ता दे देता है। अच्छी परंपराओं को सहेजने में कोई कसर नहीं रखना चाहिए । देश में हजारों स्कूल इसी उद्देश्य से बंद हुए हैं कि देश को सस्ता लोकतंत्र मिले। कुछ वर्षों के बाद जब अपढ़ों की संख्या बढ़ेगी और वे वोटर भी बनेंगे तब लोकतंत्र का स्वर्णयुग आकार लेगा । राजनीति में दूरदृष्टि और पक्का इरादा हो तो देश को नई दिशा दी जा सकती है । अपढ़ गरीब आदमी को कुछ मिले ना मिले वह हमेशा देता रहता है। नदी दिखती है तो सिक्का फेंक देता है, मंदिर दिखता है तो हाथ जोड़कर रुपया चढ़ा देता है, पुलिस दिखता है तो उसकी जेब गर्म कर देता है, गुंडे दिखते हैं तो उन्हें हफ्ता दे देता है, व्यापारी दिखता है तो दलाली दे देता है, सरकार दिखती है तो सलामी दे देता है। वह जानता है की गरीब है तो उसे देना है, और जो अमीर हैं, समृद्ध हैं, सक्षम हैं, सशक्त हैं, उन्हें लेना है। 

 

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