पूजा कराने वाले आदमी ने विधि विधान से सारी क्रिया की।
अंत में वह भोजन की थाली पर बैठे। भोजन परोसा गया।
पूजा कराने वाले आदमी ने कहा -- अरे यह क्या है!?!
" गधे का मांस है महाराज, भोग लगाइए।" जजमान ने कहा।
" गधे का मांस!! मैं गधे का मांस नहीं खाता।"
" हमारी परम्परा है। हमने तो यही पकाया है महाराज। "
" आपको विकल्प भी रखना चाहिए था, विकल्प जरूरी है। "
" विकल्प तो नहीं है महाराज, आप कृपा कर भोग लगाइए। "
" अबे विकल्प नहीं होगा तो क्या हम गधे का मांस खा लेंगे!!!"
" विकल्प नहीं होने के नाम पर भी लोग जो सामने पड़ा है उसे ही खाते रहते हैं महाराज। आप भी खाइए। "
" हम मूर्ख नहीं हैं जजमान।"
" मजबूरी है महाराज । " जजमान ने हाथ जोड़े।
" बकरे का नहीं है क्या? "
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