रविवार, 28 सितंबर 2025

गधे का मांस


 






 पूजा कराने वाले आदमी ने विधि विधान से सारी क्रिया की।

 अंत में वह भोजन की थाली पर बैठे। भोजन परोसा गया।

 पूजा कराने वाले आदमी ने कहा -- अरे यह क्या है!?!

" गधे का मांस है महाराज, भोग लगाइए।" जजमान ने कहा। 

" गधे का मांस!! मैं गधे का मांस नहीं खाता।"

" हमारी परम्परा है। हमने तो यही पकाया है महाराज। " 

" आपको विकल्प भी रखना चाहिए था, विकल्प जरूरी है। "

" विकल्प तो नहीं है महाराज,  आप कृपा कर भोग लगाइए। "

" अबे विकल्प नहीं होगा तो क्या हम गधे का मांस खा लेंगे!!!" 

" विकल्प नहीं होने के नाम पर भी लोग जो सामने पड़ा है उसे ही खाते रहते हैं महाराज। आप  भी खाइए। "

" हम मूर्ख नहीं हैं जजमान।" 

" मजबूरी है महाराज । " जजमान ने हाथ जोड़े।

" बकरे का नहीं है क्या? " 

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