शुक्रवार, 23 अगस्त 2013

फाइल गायब हुई है व्यवस्था नहीं


                     जिस आदमी को यह पता है कि देश में सरकार नाम की कोई चीज होती है उसको यह भी पता होता है कि सरकारी गलियों में फाइलें होती हैं जो कि बाकायदा चलती है, ......  ठुमक-ठुमक चलत रामचंद्र बाजै पैंजनिया ..... । सरकार मानती है कि फाइल है तो विभाग है, मंत्रालय है, काला-सफेद है, फाइल गायब तो सब गायब। प्रयोग के तौर पर सरकार ने एक ट्र्स्ट बना कर गांधी जी से संबंधित सारी फाइलें उसे पकड़ा दी, अब सरकारी दफ्तरों से ‘वो वाले’ गांधी पूरे के पूरे गायब हैं। उनकी टोपी तक नाक पोंछने का रुमाल बन गई है। ट्र्स्ट वालों पर ‘उन’ गांधी का ‘बोझ’ है तो उन्हें बाकायदा अनुदान दिया जा रहा है। जो फाइल के पक्ष में होते हैं वो सरकार के प्रिय होते हैं। उनकी आत्मा के लिए सरकार तुरंत मुआवजा देती है।
                       व्यवस्था के कारण कुछ लोग फाइलों के आसपास रहते हैं, उन्हें झाड़ते-पोंछते और दुलराते-पुचकारते हैं, आप उनको भले ही चपरासी कहें पर वे मानते हैं कि वे देश की आया या नर्स हैं और जरूरत पड़ने पर फाइलों के डायपर वही बदलते हैं। मीडिया वाले फुसला कर पूछते हैं तो वे बताते हैं कि फाइलें बहुत ज्यादा गंदा, यानी सुस्सु-पोटी भी करती हैं। फाइलों के पोतड़े बदलते बदलते कई बार वे थक जाते हैं। लेकिन फाइल की सच्ची सेवा उनका काम है, फाइल की सेवा देश की सेवा है। 
                       विचित्रताओं वाला देश है हमारा, यहां हाड़-मांस के आदमी को गलतफहमी हो सकती है कि वो भी चलता है। करोडों लोग इधर उधर टल्ले खाने को चलना समझते हैं। पांच साल में एक बार वोट बन कर चल जाएं तो चल जाएं, पर आदमी वही चलता है जो मुंह में चलने-वाला-चम्मच ले कर पैदा होता है। लेकिन सरकार का मामला अलग है, वहां फाइलें चलती हैं तो सरकार चलती है। बड़े आदमी हों यानी बहुत बड़े उद्योगपति, बिल्डर, माफिया, डॉन या दामाद जैसे रिश्तेदार तो फाइलें दौड़ने भी लगती हैं। और दौड़ती भी इतना तेज हैं कि अक्सर समय को पछाड़ देती हैं। फिल्मी इलाका अभी परंपरागत विषयों पर काम कर रहा है, किन्तु जल्द ही वे नए विषय लेकर सामने आएंगे, जैसे ‘भाग फाइल, भाग’, ‘फाइल-एक्सप्रेस’, ‘फाइल-पास’, या फिर ‘दम वाले फाइल गायब करेगें’ वगैरह। 
                        कोयले की खदानों में हीरे मिलते हैं और फाइलों में भी। ये खुदाई करने वालों की मेहनत और हिम्मत पर निर्भर करता है। आदमी मजबूत हो और मेहनत करने में शरम महसूस नहीं करता हो तो फाइल उसकी यानी देश उसका। रातदिन खोदेंगे, उठाएंगे, भरेंगे। इसमें गलत क्या है ? संसद में शोर होता है तो होने दो उससे क्या डरना, हाय हाय करना उनका काम है, या कहें कि उनकी किस्मत है। कल को फाइल उनके पास आ गई तो देश उनका हो जाएगा, वो खोदेंगे-खाएंगे और हम चिल्लाएंगे। इसीको लोकतंत्र कहते हैं मेरे भाई। जनता मांई-बाप है, सबको मौका देती है। आज फाइल गायब हुई है व्यवस्था नहीं। घर खाली करेंगे तो दीवार का रंग खुरच नहीं ले जाएंगे, लेकिन बांधने-समेटने लायक पर तो हमारा अधिकार बनता है। 
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