शनिवार, 7 सितंबर 2013

खुशी का एक व्यंग्य रुदन


             जो खुश  रहते हैं वे ही देश के सच्चे नागरिक हैं। लोकतंत्र की आदर्श  व्यवस्था को बनाए रखने के लिए जरूरी है कि जनता ‘हर हाल’ में खुश रहे। जनता को दुःखी करना विपक्ष की गंदी राजनीति है। लेकिन सरकार ने जनता को खुश होने और रहने का संवैधानिक अधिकार दिया है। देश का कोई भी आदमी किसी भी हाल में खुश रहने के लिए स्वतंत्र है। जाति, धर्म या वर्ग जैसी कोई बाधा आती है तो कानून अपना काम करेगा, जैसा कि वो हमेशा  करता ही है। पुलिस जनता को खुश रहने में मदद करती है। दुःखी आदमी के सामने जैसे ही पुलिस आती है वो बिना समय गंवाए आनंद का अनुभव करता है और शीध्रता पूर्वक खुश हो जाता है। पुलिस के लौट जाने के बाद अक्सर वो खुशी  खुशी  ईश्वर  को जान बचने और लाखों पाने की भावना के साथ धन्यवाद ज्ञापित करता है। खुशी  एक कला है और हमारी संस्कृति भी। शपथ लेते ही सरकार कला और संस्कृति की रक्षा और विकास के लिए वचनबद्ध हो जाती है। सरकार ने शराब की दुकानें गांव-गांव गली-गली में खुलवा दी है। दिन भले ही संघर्ष में बीते पर रात खुशी  के साथ बीतना चाहिए। प्रयास करना सरकार का काम है और खुश रहना जिम्मेदार नागरिकों का फर्ज।
                       मैं बिना सरकारी सहयोग के खुश हो लेता हूं। आप देखें कि खुश होने के विरुद्ध अभी कोई कानून नहीं बना है, यहां तक कि इस पर कोई कर भी नहीं लगाया गया है। और यह कोई छोटी आजादी नहीं है कि जब आपका इरादा हुआ चट्ट-से खुश हो गए। किसी से पूछने की भी जरूरत नहीं है, वरना सरकार को कोई रोक सकता है क्या! कल को कानून बना दे कि सबसे पहले हाईकमान, उसके बाद प्रधानमंत्री खुश होंगे, फिर नीचे वालों का नंबर आएगा। योजनाओं का रुपया नीचे आते आते दो पैसा रह जाता है तो सोचिए खुशी  नीचे आते आते आधा सेंटीमीटर मुस्कान भी रह पाती या नहीं। लेकिन नहीं, सरकार की प्राथमिकता है कि जनता मुफ्त में खुश रहे, उसने हवा और धूप पर टेक्स नहीं लगाया है उसी तरह खुश रहने पर भी पूरी छूट है। मनहूस किस्म के लोग हर जगह होते हैं, वे धूप में जा कर विटामिन डी नहीं लेते, हवा में टहल कर आक्सीजन नहीं लेते और खुश भी नहीं होते। अब कोई मंत्री उनके पेट में अंगुली गुलगुला कर गुदगुदी करने से तो रहा। सारी छूटों और सुविधाओं के बाद भी खुशी  इच्छा का मामला है। गांधीजी ने स्वतंत्रता इसीलिए दिलवाई कि हम खुश रहें। नोटों पर गांधी जी का चित्र होता है इसलिए नोट देखते ही सबके मन में खुशी  का संचार हो जाता है। सच्चे गांधीवादी दुखती आत्मा के बावजूद हमेषा खुश रहते हैं। जो खुश नहीं रहते उन पर पार्टी अनुशासनहीनता की कार्रवाई कर सकती है। मैं अपनी बात कह रहा था, मैं हर हाल में खुश रहता हूं। दुखीराम कहते हैं कि सरकार निकम्मी है, उसने देश को बदहाली के कगार पर ला पटका है। लेकिन मैं खुश हूं कि ये सरकार जा रही है। दुखीराम बताते हैं कि वो जो आने वाले हैं, बड़े परंपरावादी हैं, देश को सदियों पीछे ले जाएंगे। लेकिन मैं खुष हूं कि अभी वे सत्ता में नहीं आए हैं। चीन ने जमीन दबाई, लेकिन खुशी  की बात है कि कोई भी काम जो ‘मेड इन चाइना’ है, टिकाउ या गैरंटी वाला नहीं होता। आतंकवाद बढ़ रहा है, खुशी  मनाओ कि अभी तक हम जिन्दा हैं। आज के कठिन और जटिल समय में खुशी  के अलावा हमारे पास विकल्प क्या है!
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