गन-पति लोकतंत्र के सर्वशक्तिमान देव हैं। किताबों में लिखा है कि कलयुग में गन-पति ही प्रत्यक्ष तत्व हैं, वे ही कर्ता हैं और वे ही धर्ता हैं, वे हर्ता भी हैं, वे नित्य हैं और वे ही परम सत्य हैं। चपेट में आ जाने वाले विनय भाव से इनकी पूजा करते हैं . नेतागिरी के बिजनेस में इन्हें वही महत्व मिलता है जो व्यापार में लक्ष्मीजी को मिलता है। बल्कि यह कहना ज्यादा ठीक होगा कि इनकी पूजा के बगैर कोई राजनीति का ‘रा’ भी नहीं बोल सकता है। गन-पति अनेक भावभंगिमा में दिखाई देते हैं, और भक्तों द्वारा हर रूप में विनय पूर्वक पूजे जाते हैं। इन्हें अनेक नामों से आदरपूर्वक स्मरण किया जाता है, जैसे भाई, भियाजी, दादाभाई, साहेब, कालिया, छेनू, दरबार, सरकार, सरकिट, हजूर, दबंग, टुन्डा, लंगड़ा वगैरह। उनका एक दांत किसी कारण से टूटा हुआ है जिसके बारे में ज्यादा पूछना मना है, वे अंदर तक गजमस्तक यानी ठोस हैं, उनका पेट बहुत बड़ा है जो भरते जाने के बावजूद खाली रहता है और सामान्यतः वे धूसर या श्याम वर्ण के होते हैं। उनके सिर पर चंद्रकला अर्थात चोट का निशान है, उनका वाहन मूषक यानी राजनीतिक बिलों में रहने वाले है। गन-पति नेतृत्व, शौर्य और साहस का प्रतीक हैं। अवसर आने पर वे युद्धप्रिय और विकराल रूप धारण करते हैं। पोस्टरों और होर्डिग्स में वे प्रायः लोकरंजक और परोपकारी स्वरूप में दर्शन देते हैं। इनकी उपासना में चरणस्पर्श का विशेष महत्व है। उनमें प्रकट होने और अंर्तध्यान हो जाने की अतुल्य शक्ति होती है, जिसके कारण वे कभी पुलिस के हाथ नहीं आते हैं। कई बार तो वे पुलिस के सामने होते हैं किन्तु उन्हें दिखाई नहीं देते हैं। इस कौशल के कारण जनता उन्हें नायकों का नायक मानती है। पुलिस पर अगर अनैतिक दबाव नहीं हो तो सार्वजनिक रूप वे भी अपनी निष्ठा व्यक्त करने में गर्व महसूस करते। उनके जन्म, बाल्यकाल एवं गन-पति बनने के संबंध में अनेक दंतकथाएं प्रचलित हैं, जो उनकी कीर्ति तीनों लोक में बढ़ाती है। उनके शौर्य, पराक्रम आदि को विषय बना कर अब तक कई फिल्में श्रद्धा पूर्वक बनाई गई हैं। कला, साहित्य आदि में भी गन-पति एक प्रिय विषय हैं जिसमें उनकी महिमा का सदा बखान होता है।
चुनाव पूर्व के काल में, इनदिनों उनका महत्व बहुत बढ़ गया है। लोकतंत्र समर्थक उन्हें मोदक यानी ‘मोदीचूर’ के लड्डू का भोग लगा कर आरती गा रहे हैं, ‘‘गाइए गन-पति जग बंदन’’। उनकी कृपा से अनेक चूहे कुर्सियों पर उछलकूद करेंगे। उनकी आंखों में निश्चयात्मकता, दृढ़ता और आक्रोष के लाल डोरे चमकते रहते हैं जिससे आमजन में भक्ति का भाव स्वतः स्फुरित हो उठा है। जो समर्पित है उसके मन में वे अभय जगाते हैं। कहते हैं कि लोकतंत्र में संविधान का राज है। किन्तु जानते हुए भी कोई नहीं जानता है कि संविधान उनकी जेब में पड़ा रहता है, जिसके पन्नों में रख कर अक्सर वे ‘मोदीचूर’ के लड्डू खाते रहते हैं। इस अवसर पर एक वैधानिक चेतावनी जान लीजिए। ये गन-पति सिर्फ दस दिन के मेहमान नहीं हैं और न ही इनका विसर्जन संभव है। आप संसार में आए हैं तो मान के चलिए कि इनकी गोद में आए हैं। और जब तक है जान यहीं रहेंगे। तो एक बार फिर -‘‘गाइये गन-पति जग बंदन’’।
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