बुधवार, 9 सितंबर 2015

जिसने बांटी, उसने आंटी’

                         
‘‘ अरे पगलों, दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की बुनियाद में जब दारू-वितरण की अहम भूमिका है तो फिर दारूबंदी कौन नासमझ करेगा। कुछ बातें कहने में अच्छी लगती हैं लेकिन करने की नहीं होती हैं, कुछ करने की होती हैं लेकिन कहने में अच्छी नहीं लगतीं हैं। इसीको राजनीतिक शिष्टाचार कहते हैं। ’’ नेता जी ने समझाया।
‘‘ अब हम लोग ठहरे मूरख, शिष्टाचार के राज-रहस्य भला हमें क्या पता, वो तो क्या है नेताजी, आप वादा कर आाए हैं औरतन से कि अगर आपकी पार्टी को सत्ता मिली तो राज्य में शराबबंदी कर दी जाएगी। बात हो रई कि सरकार मर्दाना वोटरों की उपेच्छा कर रई है इसी से चिंता लग गई, और कछुु बात नहीं है। वैसे सब आपको ही वोट देंगे .... पर क्या भरोसा ना मिले तो ना भी दें। आप यहां गठबंधन में बैठे हो, .... वहां विधानसभा क्षेत्र के सारे आदमी गमजे में दुबलाए जा रहे हैं !! कोई संदेस हो तो आज नगद कल उधार कर लो। वरना एक बार गई भैंस पानी में तो फिर किनारे लगना नहीं है।’’ प्रतिनिधि मण्डल से एक बोला।
                     ‘‘ अरे पगलों, चुनावी वादे तो जुमले होते हैं जुमले। कैसे भारतीय नर हो इतना भी नहीं जानते कि औरतों से किए वादे क्या कभी पूरे करने के लिए होते हैं। शादी में सात वचन तुमही दिए हो, एक्कओं पूरा किए आज तलक ? जब तुम लोग ही वचन पूरा नहीं किए और ससुरे ‘परमेसुअर’ बने बैठे हो ठप्पे से, तो हमारे एक-ठो वचन देने से कौन सा खतरा होने वाला है ?! हम कोई परमेसुअराई तो मांग नहीं रहे तुमारी। भइया सरकार चलाना घर चलाने से जियादा मुसकिल काम है। जब घर की बुनियाद सात झूठ पर टिकी है तो सरकार की बुनियाद सम्हालते हम कितना हलकान हो जाते हैं जानता है कोई ? शास्त्रों में लिखा है कि औरतों से बोला गया झूठ झूठ नहीं होता है .... उसको समझदारी कहते हैं। ’’
                         दरअसल एक बिहारी नेता ने महिला वोटरों से यह वादा कर डाला कि उनकी पार्टी सत्ता में आई तो राज्य में शराब की बिक्री पर प्रतिबंध लगा देंगे। महिलाओं का कहना था कि आदमी लोग अपनी कमाई पीने में खत्म कर देते हैं। पीयें तो पीयें, लेकिन पी कर उनके साथ मारपीट करते हैं। इसलिए वे चाहती हैं कि राज्य में शराबबंदी हो। न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी। लेकिन सरकार को पता है कि जो सत्ता शराब बाँट  कर हाॅसिल की जाती है उसके लिए शराबबंदी एक तरह की आत्महत्या है। साठ साल से यही हो रहा है, जिसने बांटी, उसने आंटी। 
                             हर सरकार शराब का महत्व जानती है। जल्लाद हों या हत्यारे, या फिर वोटर ही क्यों न हों, काम अंजाम देने से पहले खूब पीते हैं। जनता होशहवास में रहे तो कई तरह के खतरे पैदा हो सकते हैं। समझदार हमेशा   इतिहास से सबक लेते हैं। एक बार नसबंदी करने के चक्कर में सरकार गिरी थी तो आज तक ठीक से उठ नहीं पाई है। निजी मामलों में गरीब आदमी भी हस्तक्षेप पसंद नहीं करता है। दारू पीना उसका निजी मामला है और इसे भी वह नसबंदी की तरह ले सकता है। इसलिए जरूरी है कि माता-बहनें देशहित में थोड़ा पिट-पिटा लें। सरकार इसके लिए दूध-हल्दी और बंडू बाम का इंतजाम कर देगी। चाहोगे तो एक रुपए में ‘पति पिटाई बीमा योजना’ भी शु रू की जा सकती है।  लेकिन ये बाद की बात है, औरतें अभी माने कि शराबबंदी हो रही है और आदमी मानें कि नहीं हो रही है।

’ आंटी - किसी चीज को अपनी अंटी/अपनी गांठ में कर लेना, बांध लेना, कब्जा लेना

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