बुधवार, 9 सितंबर 2015

सरकारी नौकरी और हरे हरे

लोग कहते हैं सावन के अंधे को हरा हरा दिखता है। इसमें कितनी सच्चाई है ये तो हमें पता नहीं लेकिन अच्छन बाबू का अनुभव ये है कि सरकारी अंधे को भी हरा हरा दिखता है। यों देखो तो अच्छन बाबू की दोनों आंखें वर्किंग हैं, लेकिन नहीं हैं। जब भी देखती हैं हरा ही देखती है। सरकारी कर्मचारी-यूनियन वाले लाल झंडा हिलाते हैं लेकिन इनका मानना है कि हम लोगों को वो भी हरा ही दिखाई देता है। सरकार ने कई बार नोटों के रंग बदल कर कुछ और कर दिये लेकिन सरकारी आदमी के लिए वो हर समय हरे हीे होते हैं। रोजाना वे हरे हरे कहते स्नान करते हैं और हरे हरे कहते पूजन। दफ्तर में कोई काम करना हो तो हरे हरे, न करने की वजह भी हरे हरे। हरा खुषी का प्रतीक है, देने वाले दे कर और लेने वाले ले कर मोक्ष का मार्ग तैयार कर लेते हैं। हरे हरे हों तो नीला आसमान भी हरा हरा। षिकायत करने वाले करते रहते हैं कि सरकार निकम्मी है, कोई काम ठीक से नहीं होता है। व्यवस्था की बातें षुरू होगी तो अंत का पता नहीं कब, कहां और कैसे होगा। लेकिन फिर भी सरकारी नौकरी जिसे मिल जाए तो समझो जन्नत मिल गई। ऐसा क्या है सरकारी नौकरी में ? अच्छन कहते हंै कि कुछ खास तो नहीं बस हरा हरा। सरकार कोई भी हो हमेषा बुरी लगती है और सरकारी नौकरी कैसी भी हो अच्छी लगती है।  अच्छन ने अपने बच्चे प्रायवेट स्कूल में इस लिए पढ़ाए क्योंकि सरकारी में मक्कारी होती है। और बच्चों को सरकारी स्कूल में टीचर लगवाया क्योंकि यहां मक्कारी होती है। करने को मिले तो मक्कारी जीवन का आनंद है। और यदि मक्कारी करने के लिए पांचवा, छःठा या सातवां वेतनमान भी मिले तो पक्का मान लो कि स्वर्ग से भी उपर आ गए। 
अच्छन का मानना हैं कि नौकरी सरकारी बेस्ट होती है उसके तीन कारण वे गिनाते हैं - पहला तो यही कि आप सरकारी हुए और जमाना आपको बाकायदा सरकारी दामाद मानने लगेगा। व्यवहारिक तौर पर देखें तो सरकार का दामाद सरकार से बड़ा होता है। वैसे तो इतना भी काफी है लेकिन मौका पड़ते ही ‘सरकार’ आप खुद भी बन सकते हैं। दूसरा जब आज के समय में आप सरकार हैं तो नामालूम राजे रजवाड़ों से बाकायदा उपर हैं जिनका कि प्रिवीपर्स भी बंद हो चुका है। आम आदमी तो आपके लिए चिकन-चूजों से ज्यादा नहीं। यह एक दैवीय अहसास है, इसी को सत्ता-सुख कहते हैं, नेताओं को पांच साल के लिए नसीब होता है लेकिन आपको जिन्दगी भर के लिए। तीसरा, पकड़े जाने पर सरकारी भृत्य के यहां भी करोड़ों की अघोषित संपत्ती मिलती है। इससे नहीं पकड़े गए क्लर्कों अफसरों के सम्मान मंे इतना इजाफा हो जाता है कि उनकी छाती में दस से पंद्रह इंच का की वृद्धि हो जाती है। 
कल ही अच्छन रिटायर हुए हैं, आज वे मित्रों के बीच बैठे नए नए किस्से सुना रहे हैं मानो जंगल से लौट कर षिकारी बता रहा है कि उसने कैसे कैसे षेर और हिरण मारे। साथ में ये भी बोले रहे हैं कि भइया काजल की कोठरी से बेदाग निकल आए हैं। उनका मतलब है कि पकड़े नहीं गए हैं।  भ्रष्ट वही है जो पकड़ा जाए। जो पकड़ा नहीं गया वो देषसेवक है। आइये हम सब देषसेवक अच्छन जी के लिए ताली बजाएं। 
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