राजनीति
जिनकी बोटी-रोटी है उनके लिए एक एक पल काटना कितना मुश्किल होता है ये
चवन्नी
कार्यकर्ता भी अच्छी तरह जनता है। हमारा तो फिर भी ठीक है भिया, हाई कमान का सोचो, उनपे क्या बीतती रही होगी। अपनी बेरोजगारी छुपते हुए दूसरों की बेरोजगारी
का मुद्दा उठाना कितना मुश्किल काम है। कोई पलट के पूछ लेता कि भिया इधर से ये
डालो और उधर वो निकाल लो तो क्या जवाब देते ! कहते हैं बिन गृहणी घर भूत का डेरा।
जिसे रोज रात भूतों के बीच बिताना पड़े उस ऊँघते भले आदमी से दिन में कोई क्या
उम्मीद कर सकता है। बोलने जाते हैं कुछ और मुंह से निकलता है छुक !! घर में कोई
देसी बुजुर्ग होता तो चाल देख कर हाल समझ लेता। लेकिन बालहठ है - मैया
मेरी, चन्द्र खिलौना
लैहौं ! मईया ने
बहुत समझाया कि --चंदा ते अति सुंदर तोहि, नवल दुलहिया ब्यैहौं ॥ इधर कुर्सी कुर्सी ना हुई चन्द्र खिलौना हो गई।
यशोदा ने तो थाली में चाँद दिखा कर भोले लल्ला को समझा लिया था । अब टीवी पर
कुर्सी देख कर भूला लल्ला और मचलता है।
देखो
भिया ऐसा है कि लोग किसी को थाली में रखके सत्ता नहीं देते हैं। जनता की परख, जनता की समझ और जनता की राय लोकतंत्र में सबसे
ऊपर होती है। यही सबसे बड़ा फच्चर है सिस्टम में, वरना इतिहास
गवाह है बच्चों तक को तख्त नसीब होते रहे हैं । अपन ठहरे पीवर जनता, वोट डालने का 30 साल का तजुर्बा है अपने पास। नेता
की शक्ल देख के ताड़ लें कि लेने आया है या देने। चुनावों में हर पार्टी घूँघट हटा
के और घुंघरू बांध के मंच पर आती है। जनता ना कहे तो भी छम छम और दिल चीज क्या है
आप मेरी जान लीजिए। जिन्हें कभी फूटी आँख नहीं देखा वे तक नूर-ए-चश्म हो जाते हैं।
हाथ में वोट दबाए बैठे अद्दा भाई, पिद्दा भाई बिना राज और
राजवाड़े के महाराज हैं । एक फीलिंग होती है, ऐसी कि
मूंछमुंडे भी अंदर दबी मूछों पर ताव देने लगते हैं। लोकतंत्र में राजे महाराजे भी मात्र
एक फीलिंग ही हैं । लाल बत्ती हो जाए तो सिपाही के सामने कार उन्हें भी रोकना
पड़ती है । सिपाही नहीं हो तब तो सभी बाश्या हैं ।
खैर
छोड़ो उनको अपन बात दूसरी कर रहे थे सरकार की। तो समझ लीजिए कि सरकारें गन्ने की तरह पेलने
लायक होती हैं । इनको एक दो बार से ज्यादा पेल नहीं सकते । मतलब यह कि जितना निचोड़
सकते हैं उतना निचोड़ लिया । उसके बाद बचा क्या फोथरा फोथरा । इसलिए अपुन को नई
सरकार होना । नई सरकार हमेशा प्याज ज्यादा खाती है । देख लो आते ही किसानों का
लिया फट से दिया कर दिया । पैसा दे कर वोट लेने की होड़ मची है । वो दिन दूर नहीं
जब बोलियों से नीलम होंगे वोट । कानून इजाजत नहीं देगा तो कल्याण योजना बनायेंगे, पर बोली लगाएंगे । बस खरीदने वाले की छाती चौड़ी होना चाहिए । दुनिया में
हर चीज है बिकती है, सांसद, विधायक, मंत्री-संतरी सब । बोलो जी तुम क्या क्या खरीदोगे ?
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