‘क्या टाइम हुआ ?’ हृदय-सम्राट ने आधा घंटे में पांचवी बार पूछा तो साथ बैठे ‘जीभइयाजी’ ने कोई जवाब नहीं दिया । अंदर ही अंदर वो भुनभुनाया, ‘‘टिकिट नहीं मिला है तो घर पहुँचने तक अब ये टाइम ही पूछते रहेंगे हर पांच-दस मिनिट में ! .... और मैं भी पागल हूँ क्या पाँच पाँच मिनिट में बताता रहूँ !’’
हृदय-सम्राट
पिछले एक हप्ते से दिल थामे दिल्ली में डेरा जमाए बैठे थे कि हाईकमान से मुलाकात
हो जाएगी और टिकिट भी कबाड़ लेंगे। साथ में दस ‘जीभइयाजी’
भी थे जो हृदय-सम्राट के खर्चे पर ऐश करते हुए आए थे, लेकिन टिकिट नहीं मिला और एक एक कर सारे पंछी यहाँ वहाँ उड़ गए । ‘जीभइयाजी’ टाईप लोगों का सीजन चल रहा है, उजड़े चमन में ज्यादा देर रुकने की गलती कोई नहीं करता है ।
‘‘कौन सा स्टेशन है ?’’ इस बार हृदय-सम्राट ने खिड़की
से बाहर देखते हुए नया सवाल पूछा ।
‘‘अभी तो चले ही है दिल्ली से !! अभी कौन सा स्टेशन आएगा ! दिल्ली के बाहर मतलब
आउटर पर ही होंगे कहीं । ’’ ‘जीभइयाजी’ ने अपनी चिढ़ पर काबू रखते हुए जवाब दिया ।
‘‘
दिल्ली साली अपने को सूट नहीं करती है । पिछली बार भी टिकिट नहीं
मिला था । ’’
‘‘
जीभइयाजी, सही कह रहे हो आप । पर करो क्या, टिकिट तो यहीं मिलते हैं ।’’ सावधानी और समर्थन के
साथ उसने उत्तर दिया ।
‘‘
क्या टाइम हो रहा है ? ’’ उन्होंने फिर पूछा ।
‘‘
पौने नौ । ’’
‘‘
पौने नौ !! ... ट्रेन चले आधा घंटा ही हुआ है क्या !! ’’
‘‘
जीभइयाजी ।’’
‘‘
ट्रेन धीरे चल रही है या घड़ी ?’’
‘‘
दोनों ही धीरे चल रही है भइयाजी ।’’
‘‘
चलो निकालो यार, बनाओ एक एक ।’’ जीभइयाजी ने तुरंत आदेश का पालन किया और कोल्ड ड्रिंक की बाटल में तैयार
कर लाए गए केसरिया पदार्थ से जाम बनाए । लगातार दो जाम तो हृदय-सम्राट राजधानी एक्सप्रेस
की तरह बिना रुके खेंच गए। तीसरे से इएमआई-नुमा व्यवस्था में आए, बोले- ‘‘ अपने को नहीं दिया उसका गम नहीं है पर उस
चोर को दे दिया !! ’’
‘‘
जीभइयाजी, जब अपने को नहीं दिया तो उस चोर को
भी नहीं देना था । हाइकमान तो अंधे होते हैं । इनको क्या पता जमीनी हकीकत ! जमीन
के धंधे से तो आप जुड़े हो, लगता है किसी ने आपके खिलाफ कान
भरे हैं । ’’
‘‘
पार्टी वालों ने ही भरे होंगे और कौन भरेगा । .... साले सब तो चोर
हैं .... एक भी सही आदमी नहीं है । ’’
‘‘
सही कह रहे हो भइयाजी, सब चोर हैं ।’’ कहते हुए चमचे ने पांचवा जाम थमाया ।
‘‘
सोचता हूँ कि ऐसी चोट्टी पार्टी में रहने का क्या अर्थ है .....’’
‘‘
सही बात है, कोई अर्थ नहीं है भइयाजी । ’’
‘‘
सब अपने अपनो को टिकिट बाँट रहे हैं, वंशवाद
चला रखा है सालों ने ।’’
‘‘
और नहीं तो क्या ! बनिए की गादी हो गई राजनीति । ’’
‘‘
देख लेना ये पार्टी देश को बहुत जल्दी बरबाद कर देगी,
.....’’
‘‘
भइयाजी मेरे को तो लगता है इस चुनाव में ये सरकार गई समझो, अच्छा हुआ कि अपने को टिकिट नहीं मिला वरना हरल्लों में नाम लिखते मिडिया
वाले । ’’
‘‘
क्यों !! ऐसे कैसे लिख देते ! .... अपन तो जीत रहे थे, पर इन बेवकूफों ने टिकिट ही नहीं दिया ! .... अब देखते हैं वो चोर कैसे
जीतता है ।’’
‘‘
हाँ भइयाजी, अब कुछ भी हो जाए इस चोर को जीतने
नहीं देना है । पूरी ताकत लगा देंगे इस चुनाव में ।’’
ट्रेन
धीमी हुई और आहिस्ता से रुक गई । हृदय-सम्राट ने पूछा - कौन सा स्टेशन है ?
‘‘
पता नहीं भइयाजी, ...... लगता है रास्ते में
ही रुक गई है ...... शायद सिगनल नहीं मिला है । ’’
हृदय-सम्राट
ने बाहर झांक कर देखा ... दूर तक अंधेरा ही अंधेरा था।
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