मंगलवार, 5 अप्रैल 2022

रामाबाबू रेडियो सिंगर


 

                         घंटी बजी, देखा दरवाजे पर रामाबाबू रेडियो सिंगर खड़े हैं . कहनेभर के पडौसी नहीं हैं, रियल पडौसी हैं . जैसे कि पुराने ज़माने में हुआ करते थे . उनका मानना है कि वो पडौसी दरअसल पडौसी नहीं है जो दुःख तखलीफ में काम न आये . उनका यह भी सोचना है कि इस रंग बदलती दुनिया में पडौसी कब अ-पडौसी हो जाए कहा नहीं जा सकता है . इसलिए किसी भ्रम में पड़े रहने की अपेक्षा समय समय पर इसकी जाँच करते रहना चाहिए . वरना आप मुगालते में रहें कि अपना पडौसी है और पडौसी भोर में आपकी बगिया से फूल नोच ले जाए और आपकी तरफ देखे भी नहीं कि कौन खेत की मूली हो .

                      रामाबाबू रेडियो सिंगर के हाथ में एक कटोरी है और चेहरे पर मुस्कानों की प्रश्नावली . बता दें कि रामाबाबू बीस साल पहले एक बार रेडियो में भजन गा आये थे . उन दिनों भजन का कितना महत्त्व था ये तो पता नहीं, रेडियो का बहुत था . रेडियो पर अपना नाम सुनने के लिए जवान बूढ़े सब फ़िल्मी गीतों की फरमाइश किया करते थे . ऐसे में रामाबाबू का डायरेक्ट भजन गा आना किसी चमत्कार की तरह देखा जा रहा था . अपने यहाँ लोग भूलते बड़ी जल्दी हैं . नोटों पर गाँधीजी की तस्वीर न हो तो केवल प्रतिमाओं के बल पर उनकी याद बनाये रखना इतना आसान न होता . रामाबाबू को लगा कि तीन चार दिन में ही उनकी रेडियो सिंगरी का उठावना हो जायेगा . छोटे से मोहल्ले में नेमप्लेट का चलन नहीं था . एरिया की पहली नेमप्लेट रामाबाबू ने ही लगवाई वह भी नार्मल साइज से डबल . ‘रामाबाबू रेडियो सिंगर’, साथ में मरफी के रेडियो का चित्र भी ताकि अनपढ़ों को असुविधा न हो . अन्दर आगे के कमरे में लटक रहा फ्रेम में जड़ा रेडियो का कांट्रेक्ट-लेटर भी, जिसकी वजह से वे प्रायः आगंतुकों को अन्दर तक खेंच लेते रहे हैं . इस वक्त अपनी कीर्ति की कृपाण बगल में लटकाए वे साक्षात् खड़े मुस्का रहे थे. उन्हें देखते ही एक चहक सी निकली – “अरे ! रामाबाबू आप !!”

“जी , रामाबाबू रेडियो सिंगर.” उन्होंने सुधार किया .

“हाँ हाँ, रेडियो सिंगर , मैं कहने ही वाला था .... आइये ना, कैसे आना हुआ ?”

“एक कटोरी शकर चाहिए .” उन्होंने अपनी मुस्कान का खुलासा किया .

“शकर !! ... वो क्या है मिसेस घर पर नहीं है .”

“ये तो अच्छी बात है, आप दे दीजिये, उन्हें पता नहीं चलेगा .”

“बात ये है कि मुझे पता नहीं है कि शकर कहाँ रखी है .”

              “अरे विदेश मंत्री या रक्षा मंत्री हो क्या देश के जो कुछ पता नहीं है ! शकर किचन में ही होती है ! देखिये जा कर किसी डब्बे पर शकर की चिट लगी होगी .”

            “बात ये है रेडियो सिंगर जी कि हमारे यहाँ कोई चीज ‘लेबल’ पर नहीं होती है . मतलब जिसे कांग्रेसी समझते हैं वो बीजेपी के डब्बे में मिलता है, सपाई को खोजो तो बसपाई में दीखता है . और तो और जो आलू प्याज मैदानी रहे वो भी किसी कोने में बैठे अपनी प्रिय फिल्म कालीचरण देखते मिलते हैं . कुछ समझ में नहीं आता है . हमारा किचन पूरा लोकतंत्र हो गया है . “

              कटोरी वाले हाथ को अब उन्होंने नीचे गिरा लिया, बोले – “आपको ध्यान रखना चाहिए . आखिर मालिक हैं आप घर के .”

              “मलिक नहीं ... चौकीदार भी नहीं ... कहना ही है तो राष्ट्रपति कह लीजिये घर का . वक्त जरुरत ही काम आता हूँ वह भी दस कायदों और निर्देशों के अनुसार . आप तो जानते ही हैं कि घर का भी डेकोरम और प्रोटोकोल होता है . ... आप बैठिये ... वो आती ही होंगी . पार्लर गयी हैं .”

“ब्यूटी पार्लर ...?”  उन्होंने पूछा.

“नहीं ... गॉसिप पार्लर . अपडेट होने गयी हैं .

“सुना है तीसरी गली वाले गोपाल जोगी की लड़की भाग गई है, उसी का बड़ा ‘वो’ चल रहा है इनदिनों . जानते सब हैं, पूछो तो कोई बताता नहीं हैं . लगों में सामाजिकता तो रह ही नहीं गयी है .आपको तो पता ही होगा क्या चल रहा है ?”

            “शकर का क्या करेंगे ?” उनके प्रश्न को किनारे करते हुए पूछा .

             “स्टाक तो करूँगा नहीं एक कटोरी शकर . चाय बनाना है खुद के लिए . शकर तो हमारे यहाँ भी थी लेकिन बिल्ली ने गन्दगी कर दी उसमें, आदत खराब है उसकी . सोचा आपके यहाँ से ले लूँ, ...लौटा दूंगा . ”

“कौन सी शकर लौटायेंगे ! वो बिल्ली वाली ?”

“वो तो मैंने शुक्ल जी को देदी . जो शुक्ल जी के यहाँ से लाया हूँ वो आपको लौटाऊँगा .”

“तो शुक्ल जी वाली शकर से ही चाय बना लेते ना !”

         “बना तो लेता लेकिन वही बिल्ली शुक्ल जी के यहाँ भी जाती है . आप तो जानते हैं मन में शंका हो तो कोई कैसे ... आपने कुत्ता पाल रखा है इसलिए बिल्ली इधर नहीं आती है ना. ”

“बेहतर होता कि आप दुकान से ही शकर ले आते .”

“ले तो आता, लेकिन इनदिनों दुकानों पर जो शकर मिल रही है वो पाकिस्तान से आई हुई है .”

“ये आपको कैसे पता !?”

“वाट्स एप पर तो कबसे आ रहा है ! और भी क्या क्या आ रहा है आप जरा देखिये तो !”

“अगर मेरे पास की शकर भी पाकिस्तान की हुई तो ?”

“हो सकता है नहीं भी ... कानून में शंका का लाभ मिलता है .... मेरे लिए तो आपकी शकर आपकी है . ... लीजिये भाभी जी आ गयीं .”

            उन्होंने हमारी तरफ प्रश्नवाचक देखा तो बताया कि रामाबाबू रेडियो सिंगर शकर लेने आये हैं एक कटोरी . उन्होंने तुरंत ला दी . लेकिन रामाबाबू रुके रहे . हमने मंतव्य समझ कर श्रीमती जी से पूछा – “और क्या अपडेट है ?”

“वही जो पिछले हप्ते था . रूस और यूक्रेन का झमेला . अमेरिका और चीन ताक में हैं, नाटो की ना ना है और भारत को कुछ समझ में नहीं आ रहा कि क्या करें .” वे बोलीं .

“भाभी जी वो तीसरी गली वाले गोपाल का क्या ?”

“हाँ ... वो तो गयी ... सुना है अब शादी करके ही लौटेगी . उनके तो मजे हो गए, खर्चा बच गया इस महंगाई में . लेकिन रामाजी भाई साब .... “

“रामाबाबू रेडियो सिंगर कहिये भाभी जी .”

“जी वही, ... आप भी अपने रेडियो का जरा ध्यान रखना ... सुना है आजकल कोई खास स्टेशन केच करने लगा है .”

             रामाबाबू रेडियो सिंगर की पहले आँखें फटीं, फिर लगा जैसे जमीन खिसकी . जमाना प्रेम में पागल है सबको पता है . उनका रेडियो दिनभर प्यार मोहब्बत के सुर में रहता है और उन्होंने ध्यान नहीं दिया ! वे तेजी से उठे .”

“अरे शकर तो ले जाइये .”

“रहने दीजिये ... अभी जल्दी में हूँ .”

“अच्छा अपनी कटोरी तो ले जाइये .”  लेकिन वे जा चुके थे . यानी रामाबाबू रेडियो सिंगर . आज घर में भजन होंगे ये पक्का है .

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