मंगलवार, 19 जुलाई 2022

चल कामरेड ... भजन करेंगे


 


                  जिनके बिना कोई बयान पूरा नहीं होता था, जो हर फैसले का जरुरी हिस्सा रहे आज उनका पता नहीं, मिडिया तक नहीं पूछ रहा है कि मर गए या कि जिन्दा हैं . कभी जो जनता ‘लाल-लाल’ करते थकती नहीं थी वो जय गोविंदा जय गोपाल भज रही है !  लाल को कोई माई का लाल देखता तक नहीं, जिसे भी याद दिलाओ, आँखें लाल करता है ! ऐसे घूरता है जैसे औरंगजेब की याद दिला दी हो ! लाल से गोपाल होने का सफ़र किसी चूक का नतीजा है या फिर नतीजे की चूक है कहा नहीं जा सकता है .

                      रूस चीन जबसे व्यापारी हुए ‘लाल से लाला’ हो गए . देश दुनिया में उन्हें कोई पूछता नहीं, घर में लाल वाली इज्जत रही नहीं . सुबह होती है, शाम होती है ; जिंदगी दाढ़ी खुजाते तमाम हो जाती है . अब लाल को लोरी पसंद है, इधर दूध, दही, आटा, ब्रेड तक पर टेक्स लगा है,  लोग शुक्र मना रहे हैं कि सांसें फ्री हैं . खेंच लो जितनी खेंचते बने . खेंचो-फैंको खेंचो-फैंको, भर लो फेफड़े दबा दबा के, जी लो अपनी जिंदगी इससे पहले कि बोतल बंद हवा जरुरी हो जाये .  वजहें  खुल जाती हैं इसलिए हँसने की इजाजत नहीं है, रोने का मन बहुत करता है पर रुलाई फूटती है तो शरम आती है ! लोग ताना मारते हैं कि कामरेड तुम अगर भगवान की शरण में रहे होते तो ये दिन नहीं देखने पड़ते . दल बदल रहे हैं, दिल बदल रहे हैं, सुबह के भूले शाम तक घर लौट रहे हैं, झुण्ड के झुण्ड इधर से उधर हो रहे हैं लेकिन आपको कोई पूछ नहीं रहा है ! जैसे कि हैं ही नहीं ! जैसे कि कभी थे ही नहीं ! टीवी वाले टिड्डीदल बेआवाज लोगों के मुंह में माइक घुसेड घुसेड कर सरकार पर बुलवा लेते हैं लेकिन इनको जैसे राजनीति का रोहिंगिया मान लिया गया है . अव्वल तो कोई नजर नहीं डालता, कभी पड़ जाये तो मुंह फेर लेते हैं !  देश की राजनीति में जो कभी जवाईं साहब का रुतबा रखते थे अब रामू काका की हैसियत भी नहीं रही ! न देखा जा रहा है, न सहा जा रहा है, न कुछ सूझ रहा है और न ही कुछ करने की गुंजाईश दिख रही है . बच्चे हड़ताल शब्द का मतलब पूछ रहे हैं . इधर लगता है जैसे बेरोजगार अपनी बेरोजगारी को इंज्वाय कर रहा है और गरीब को गरीबी में मजा आ रहा है ! घर जल रहे हैं ! ... रौशनी हो रही है ! कभी डायन कही गयी महंगाई अब उद्योग घरानों की बिटिया और मालिकों की लाडली बहु है . वह घर आँगन में ठुमकती फिरेगी, कोई कुछ नहीं कहेगा .

                   कामरेड गुनगुना रहा है – “रहते थे कभी जिनके दिल में हम कभी जान से भी प्यारों की तरह ; बैठे हैं उन्हीं के कूचे में हम आज गुनाहगारों की तरह .”

                    दिशाएं बोल उठती हैं, दास केपिटल को भूल बन्दे, सुलगते बैनरों को भोंगली बना . भूख, गरीबी, शोषण को भ्रम बताने की कोशिश कर, जिन्दादिली ही जिंदगी है घोषित कर . आगे बढ़ना है तो ले यू टर्न, पीछे मुड़, गर्व कर . इतिहास नया लिख, नयी सड़क चल . जो बीत गया कल, वो गया . आने वाले कल में जगह बना . संविधान से दूरी रख, विधि के विधान पर विश्वास जमा . अब जो करेंगे हुजूर करेंगे, सजन करेंगे ; चल कामरेड, अपन भजन करेंगे .

2 टिप्‍पणियां:

  1. बढ़िया रचना। अंततः याद तो कॉमरेड की ही आ जाती है ऐसे विकट वक्त में।

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  2. जो तुमको हो पसंद वही बात कहेंगे
    तुम दिन को अगर रात कहो हम रात कहेंगे।

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