चाय की दुकान पर हिंदी वाले सर डी.डी. अनोखे टकरा
गए . ज्यादा समय वे यहाँ मौजूद मिलते हैं, जिस किसी का मन होता है टकराने का तो आ
कर इनसे टकरा सकता है . उनसे टकराने का अपना मजा है . कुछ लोग हैं जिन्हें आदत पड़
गयी है टकराने की . बड़ा घंटा जैसे एक बार ठोक देने से बहुत देर तक गूंजता रहता है
वैसे ही सही टक्कर लग जाये तो ये भी देर तक गूंजते रहते हैं . अनोखे आज भी गूंज
रहे हैं – “देखिये भई हिंदी अपनी जगह है और बच्चों का भविष्य अपनी जगह . हिंदी की
व्यवस्था हमारे आपके लिए है . आम आदमी हमेशा आम आदमी होता है यानि पोल्ट्री
प्रोडक्ट, ब्रायलर पब्लिक . देश में हर
दिन पचास हजार से ज्यादा बच्चे पैदा हो रहे हैं . हिंदी के भविष्य से उनका भविष्य
जुड़ा हुआ है . लेकिन ऊँचे लोग, ऊँची पसंद,
ऊँचे सपने, ऊँचे काम, ऊँचे मुकाम . जो ऊपर से संस्कृत के हिमायती हैं वो भी अन्दर
से अंग्रेजी पर लट्टू हैं . देश में शायद ही कोई नेता मिले जिसके बच्चे हिंदी
मीडियम में पढ़ रहे हों . वो देश, वो दुनिया अलग है जहाँ बच्चे सिजेरियन से, अपनी
पसंद के मुहूर्त में पैदा होते हैं और माँ के पेट में पहला ‘कट’ अंग्रेजी का लगवा
कर बाहर आते हैं . और मजे की बात, इस तरह के बच्चे भी आजकल गोरे पैदा होते हैं. गोरे
बच्चे जब अंग्रेजी बोलते हैं तो लगता है दो सौ साल की हुकूमत आंगन में उछलकूद कर
रही है . बच्चे हों तो एक्सपोर्ट क्वालिटी के हों वरना क्या फायदा ! फर-फर झर-झर
अंग्रेजी उसके बाद सीधे अमेरिका.”
ये बात हिंदी के व्याख्याता अनोखे कर रहे हैं जो
हिंदी नहीं पढ़ने का छठा वेतनमान ले रहे हैं . उनका संकल्प है कि जिस दिन सातवाँ
उनके खाते में आएगा तब पढ़ा देंगे . नाम
उजागर नहीं करने की शर्त पर वे कह देते हैं कि – हिंदी भी कोई पढ़ने की चीज
है !! जो भाषा गरीब-गुरबों नंग-धडंग बच्चों तक को आती है उसे क्या पढ़ना और क्यों
पढ़ना . पढ़ने पढ़ाने की चीज तो अंग्रेजी है जो अंग्रेजी टीचर को भी ठीक से नहीं आती
है .” खुद अनोखे जी ने भी बरसों तक ट्राई किया पर नहीं आई . आखिर विश्वविद्यालय ने
हिंदी की डिग्री दे कर इनसे पिंड छुड़ाया . अनोखे भी भागती भाषा की लंगोटी भली यह
सोच कर हिंदी से लिपट गए लेकिन अंग्रेजी से प्रेम छुपाए नहीं छुपता है . जैसे गाँव
कस्बे वाला अपनी रामप्यारी से फेरे ले तो लेता है लेकिन शहर वाली एनी और लिली को नहीं
भूलता है .
“आप पढ़ाओगे ही नहीं तो फिर हिंदी
मजबूत कैसे होगी सर !” एक ने टोक दिया .
अनोखे बोले - “हमारे पढ़ाने से क्या
होगा यार ! देश दो भागों में बंटता जा रहा है, अमीर-गरीब, हिन्दू –मुसलमान, राष्ट्रवादी-प्रगतिशील,
हिंदी वाले -अंग्रेजी वाले ! जब तक ऊँचे तबके में हिंदी नहीं अपनाई जाएगी तब तक
मुश्किल बनी रहेगी . लेकिन हो ये रहा है कि जिन बापों ने अंग्रेजी बोलने पर बच्चों
की पीठ ठोकी थी वही बड़े हो कर बाप के हिंदी बोलने पर घूरते हैं ! बहू अपने बच्चों
को दादा-दादी के पास इसलिए नहीं छोड़ना चाहती है वे उनकी भाषा बिगाड़ देंगे ! तो
हिंदी बेल चलेगी कैसे !?”
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