देखो भाई जमाने की चाल को समझो।
संसार का एक सूत्रीय फार्मूला यह है कि दिखाओ और दिखाते रहो। आगे बढ़ने के लिए
दिखना/दिखाना जरूरी है। ऊपर बेल बूटा हो, चाहे
नीचे पेंदा फूटा हो। भगवान ने भी आँखे सुंदरता देखने के लिए दी है। इसीलिए तो आदमी
का प्रयास होता है कि वह सुन्दर रचे,
सुन्दर बनाए, सुन्दर दिखाए। राजनीति में भी
जिम्मेदारों का प्रयास होता है कि अच्छा चाहे ना हो पर अच्छा दिखे जरूर । अच्छा
दिखाने के लिए किए गए बुरे काम को भी राजनीति कहते हैं। अच्छा दिखने से ही फीलिंग
अच्छी आती है। मन में आनंद की अनुभूति होती है। किसी ने कहा है कि पल भर के लिए
कोई हमें प्यार कर ले झूठा ही सही। सवाल सही-झूठ का या प्यार-व्यार का नहीं है।
सवाल अच्छी फीलिंग यानी अनुभूति का है। राजनीति गुड फिलिंग मांगती है । मेरे पैरों
में घुँघरू बंधा दे, फिर मेरी चल देख ले ।
ब्यूटी
पार्लर तो जानते हो ना। एक तरह का सर्विस स्टेशन होता है डेंटिंग-पेंटिंग वाला ।
जाना पहचाना दीवाना इंसान अंदर घुसता है और दो घंटे बाद अपनी पहचान खो कर भ्रमित बाहर
निकलता है। इस घटना को आधी दुनिया मेकअप के नाम से जानती है। इस प्रक्रिया को
बार-बार करते रहो तो कुछ समय में असली पहचान खो जाती है और मेकअप ही दिखता रहता
है। बाद में जो दिखता रहता है वही पहचान बन जाती है। मेकअप न हो तो एक वोट भी ना
मिले । किसी जमाने में लोग टीवी को चौथा खंबा मानते थे अब ब्यूटी-पार्लर कहने लगे
हैं। अंदर दौड़ते भागते ब्यूटीशियन के पास फेशियल का काम ओवरलोड चल रहा है। दागी
पीतल को इतना घिसा जाता है कि वह सोने का भ्रम देने लगे। रुपइए के लिए भागते दौड़ते लोग भी चमक ही देखते हैं, कसौटी पर परखने की फुरसत किसेके पास है। आमजन तो परिधान ही देख कर धारणा
बना लेता है। रेशमी वस्त्र, आभूषण, गदा-चक्र
आदि देखकर समझ लेता है कि यही देवता है। संस्कार ऐसे हैं कि जहाँ भी यह ‘चीज’ दिख
जाए हाथ अपने आप जुड़ जाते हैं और शीश झुक जाता है। फिर चाहे सड़क पर भीख माँगता
बहुरूपिया हो या मोहल्ले में वोट माँगता हृदय सम्राट ही क्यों न हो ।
आजकल हमारे
ज्यादातर सेवक दाढ़ी में दिखाई देते हैं। लोगों को लगता है कि मधुमक्खी का छत्ता
लगाए घूम रहे हैं जनता के वास्ते । लोग उम्मीद करते हैं कि एक न एक दिन इन छत्तों
में शहद भी इकठ्ठा होगा। सोचते हैं चलो अच्छा है कभी बीमार पड़े और वैद्यजी ने शहद
से दवा लेने को कहा तो इन्हीं से माँग लेंगे या बाजार में सस्ता मिल जाएगा। विकल्प
भी बहुत रहेंगे मार्केट में। सनातनी शहद ले लो या समाजवादी। मिलेगा तो भारत जोड़ने
वाला खानदानी शहद भी, लेकिन मार्केट में उसकी शर्ट सप्लाई हमेशा बनी रहती है। शहद
मिले या ना मिले, चारों तरफ छत्तों को देखते रहने से ही मन
मीठा हुआ रहता है। फिलिंग अच्छी आती है ।
हर
काम में थोड़ा रिस्क होता ही है। मेकअप का मामला भी इससे अलग नहीं है। मेकअप से
ज्यादा कठिन मेकअप को बनाए रखना है। बरसात में तो यूँ समझो की जरा चूके तो नीचे से
असली सूरत निकल आती है। जैसे सजी सँवरी बल खाती चिकनी सड़क खड्डों और मुँहासे के
साथ लजाऊ हो जाती है। पुल तो ऐसे ढ़हते हैं मानो किसी ने लिपस्टिक पर रगड़ कर पोंछा
फेर दिया हो। जरा आँधी चलती है तो ऋषि मुनि हों या महापुरुष इतिहास में नए पन्ने दर्ज करा जाते
हैं। राजनीति के कीड़े कहते हैं कि सरकार की टाँग खींचने वाले दो हैं, एक विपक्ष दूसरा बरसात। बरसात को तो टप्पू कह कर उसकी खिल्ली उड़ाई नहीं जा
सकती है और ना ही उसे दबाया जा सकता है। हाँ कभी संभव हुआ तो चार माह के लिए
ट्रैफिक के नियम बरसात पर भी लागू किए जाएंगे। बारिश अगर तेज गति में बरसती पाई गई
और सरकार का मेकअप बिगड़ा तो चालान भी बनेगा। एक बार मेकअप उतर गया तो फिर काहेका
लोकतंत्र बे !
-------
सोमवार, 16 सितंबर 2024
मेकअप उतर जाए तो फिर काहेका लोकतंत्र बे !
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें