बुधवार, 25 जून 2025

दोस्ती में फट लिया डूडू

 


                     कहीं एक बड़ा देश है चिकामिका । उसके मुखिया का नाम डूडू है । लोग कहते हैं डूडू समझदार है और समझदार नहीं भी। वह आँखें बंद करके हँसता है और मुँह बंद करके आँखों से अंगार बरसाता है ।  वह वह सूट टाई पहनता है लेकिन दुनिया को नंगा दिखता है। वह ताल ठोक कर दावा करता है और बाद में मुकर जाता है । वो जो है वह नहीं है, और जो नहीं है वो है । लोगों का भी ऐसा ही है, वे उससे नफरत नहीं करते हैं और करते भी हैं । वह जिसका दोस्त होता है उसी का दुश्मन भी हो जाता है। वह डिनर पर अपने साथ पालतू कुत्तों को खिलाता है और साथ में किसी विदेशी मेहमान को भी बैठा लेता है। उसे हिंसा पसंद है और शांति का नोबेल भी। वह मानता है कि बातचीत से शांति स्थापित हो जाती है लेकिन जो लोग ऐसा करना चाहते हैं उन्हें वह मूर्ख मानता है। समय बदल गया है सोच बदल गई है इसलिए वह समय और सोच के साथ चलना चाहता है। वह मानता है कि एक बड़ा बम डाल दो तो चौतरफा शांति हो जाती है। उसके बम शांति का संदेश लेकर आते हैं। वह चाहता है कि दुनिया वाले उसके बम को देखते रहें, शांति अंदर से पैदा हो जाएगी ।

                 बम गोदाम में शांत पड़े हैं लेकिन डूडू दुनियाभर में धमाके करता रहता है । उसकी चाल बम चाल है । टीवी पर दुनिया वाले जब बड़े से जहाज से उसे उतरते देखते हैं तो लगता है एटम बम उतर रहा है । अगर नोबल वाले जाग नहीं रहे हों तो वह कहीं भी फट सकता है । बहुत समय से उसका मन फटूँ फटूँ कर रहा था । एक देश ने कहा कि दोस्ती की खातिर सामने वाले देश की जमीन पर जा कर फट लो । बिना देर किये वह फट लिया । खबर आ रही है कि रेडियशन के कारण फटा हुआ बम ज्यादा खतरनाक होता है । डूडू मानता है कि पहले शक्ति आती है उसके बाद शांति । अगर नोबल देने वालों ने देर की तो वह पूरी दुनिया मे शांति कायम करने से पीछे नहीं हटेगा । डूडू किसी बात को दिल पर ले लेता है तो ठान लेता है। संयोग देखिए, यह जो बड़े-बड़े बम बना कर रखे हुए हैं उनकी एक्सपायरी डेट भी करीब आ रही है। डूडू को इस बात का अफसोस है कि वह सब बदल सकता है लेकिन किसी चीज की एक्सपायरी डेट नहीं। एक्सपायरी डेट एक बार तय हो गई तो फिर तय हो गई। बड़े आदमी को अपने बड़प्पन की रक्षा हर कीमत पर करना होती है। नोबल वाले इतना तो समझते होंगे । और अगर वे नहीं समझते हैं तो उन्हे कोई हक नहीं बनता है नोबल से खिलवाड़ करने का । जरूरी हो गया है कि वहाँ कुछ समझदार और ‘शरीफ’ लोगों को बैठया जाए । डूडू मानता है कि ‘शरीफ’ समझदार होते हैं । उसकी ख्वाहिश है कि जितनी जल्दी हो सके दुनिया भर में उसकी पूजा शुरू हो जानी चाहिए। डूडू  के चर्च बनें, डूडू  की चर्चा होती रहे । लोग मानें कि डूडू  इंसान की पैदाइश नहीं है । वह अवतार है, जीवन मृत्यु से परे । डूडू को इंडिया बहुत पसंद है। यहां के लोग बहुत समझदार हैं, किसी भी ऐरे गैरे को पूजने लगते हैं। यहाँ लोग स्कूटर लाते हैं और सबसे पहले उसकी पूजा करते हैं, फिर वो तो डूडू है, फट सकता है । इधर वाले बड़े आराम से डूडूचालीसा का पाठ कर सकते हैं । डूडूकथा, डूडूभंडारा, डूडूभजन;  क्या नहीं हो सकता है । एक नजर इधर भी है डूडू की ।

 

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रविवार, 8 जून 2025

साधो ये मंडी शब्दों की


 


पता नहीं ये बाजार का डर है या बाजार का प्यार, कहते हैं कि बाजार घर में घुस आया है, कोई रोक सके तो रोक ले । पुराने जमाने में तो घर के मुख्य दरवाजे पर वेलकम लिखने का चलन था, अतिथि देवो भव । मतलब दिल दरिया है जी, कोई सामने हो ना हो, सबका वेलकम है जी ।  किसी शायर ने लिखा है “हँस के बोला करो, बुलाया करो; आपका घर है, आया जाया करो ।” अपने मतलब की बात बाजार बहुत जल्दी समझ लेता है चाहे उर्दू का शेर ही क्यों न हो । बस मुँह ऊंचा कीजिए बाजारजी और घुसे चले आइए, गली में चाँद निकला है । तरफदार कहते हैं कि पैसा पास हो तो बाजार से अच्छा नौकर कोई नहीं । नाच मेरी बुलबुल तुझे पैसा मिलेगा टाइप। अब अगर चिराग का जिन्न आ जाए तो लायसेंस परमिट का फंदा डाल कर उसका गला घोंट दिया जाएगा । मॉल छाप जिन्न अपने आगे दुकान छाप किफायती जिन्न को टिकने देगा भला । कहने को बाजार दोनों के लिए खुला है । गलाकाट प्रतिस्पर्धा है जी । बड़ा छोटा हर आदमी मुनाफे की टोह में है । चार पैसे के चक्कर में रोटी खाना भी भूल जाता है । सबर करो रे, सब बेच दोगे तो तुम्हारे पास बचेगा क्या !

दीनानाथ ढाइपोटे हमारे पुराने दुश्मननुमा मित्र हैं । आते ही खौलते प्रेम के साथ बोले – तुम भी क्या मनहूस आदमी हो ! कभी शापिंग करने निकलते नहीं हो लेकिन बाजार को लेकर आएं बाएं बकते रहते हो । पता है ! भारत दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है ! न्यूज चैनल देखना छोड़ने का यही परिणाम है, देश की तरक्की का कुछ भी ज्ञान नहीं है तुम्हें ! न्यूज देखा करो नहीं तो पिछड़ जाओगे और फिर गलत पार्टी को वोट दे मरोगे ।

“यार ढाइपोटे, तुम जिसे न्यूज चेनल कह रहे हो वो दरअसल शोरूम हैं किसी कंपनी के ।  खास किस्म का प्रोडक्ट बिकता रहता है वहाँ !  तुम्हें शायद पता नहीं शब्दों की बड़ी मंडी हो गई है आजकल । “

“क्या बात करते हो ! शब्द बिकते हैं क्या ! लेखकों को पारिश्रमिक तक तो मिलता नहीं है । कोई फोकटिया बाजार भी है ऐसा मैंने तो देखा नहीं ।“

“बाजार दिखता है क्या ? दुकानें दिखती हैं, बाजार को देखना समझना पड़ता हैं,  जैसे चरित्र को समझना होता है । बेचने वाला घर जैसा आदमी बन जाता है, मीठी बातें करता है लेकिन ध्यान उसका बेचने पर ही होता है ।“

“चलो माना । लेकिन शब्दों का बाजार !! “

“बाजार नहीं मंडी । शब्दों की मंडी में डालपक मीठे मीठे शब्द, मानो कोई पुरातन दुकान हो मिठाई की । शब्द चिकने हों, गोल गोल हों, रसीले हों, तो एक मौसम का पता देते हैं । मौसम सारे प्राकृतिक नहीं होते हैं, कुछ सरकारी भी होते हैं । अपने बीमा वाले गुप्ता जी हैं ना ! कितनी शुगर शुगर बात करते हैं अपने क्लाइंट से कि वो बेचारा पहले इंसुलिन लेता है और बाद में पालिसी भी । काम हो जाने के बाद गुप्ता जी गुप्त हो जाते हैं और कान मे रह जाते हैं उनके चीठे मीठे शब्द । हर चैनल में गुप्ता जी हैं और मीठा मीठा पेल रहे हैं । एक चेन है शोरूम्स की । इन्सेंटीव के मारे सेल्स मेन झूठ के फुग्गे फुगा फुगा कर दिए जा रहे हैं । लोग लिए जा रहे हैं ।“

“देखो जितनी जल्दी हो सके भ्रम से निकलो । देशभक्त बनों, वरना किसी काम के नहीं रहोगे । फिर मत कहना कि ढाइपोटे ने समय रहते उचित सलाह नहीं दी ।“

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गुरुवार, 5 जून 2025

दिमाग को छोड़ो मन को रगड़ो



“भाई साहब एक बात नोट की होगी आपने;  लगता है इनदिनों हमारे दिमाग ने सोचना बंद कर दिया है ! यूँ समझिए कि दिमाग चलता ही नहीं है । “

“टेंशन मत लो, दिमाग किसी का भी नहीं चलता है । पाँव चलते हैं। पाँव पर ध्यान दो, चप्पल पहना करो ।“

“आप समझे नहीं । मेरा कहने का मतलब था कि पिछले कुछ वर्षों से चिंता के ओवर लोड के चलते दिमाग के पुर्जे ढीले हो गए ।“

“पुर्जे दिमाग मे नहीं होते हैं, मशीन में होते हैं । ढीले हो गए हैं तो मेकेनिक से कसवा लो ।“

“आप बात को समझ नहीं रहे हैं !”

“ समय की माँग है कि लोग बात को नहीं समझने की आदत डाल लें । जो बात समझ जाते हैं वो कमबख्त सवाल पूछते हैं । गाँधी जी ने कहा है कि मन, वचन या कर्म से किसी को दुख पहुंचना हिंसा है । तो सवाल पूछना हिंसा है । धारा तीन सौ सात भी लग सकती है । सरकार देवता है, हमेशा पुष्प वर्षा करती है तो बटोरो, माला बनाओ पूजा पाठ में लगो मजे में । इसमे कुछ समझने या दिमाग चलाने की क्या जरूरत है ! ना समझे वो देशभक्त होता है । “

“आदरणीय आप क्या कह रहे हैं हमे कुछ समझ में नहीं आ रहा है । “

“यही रवैया होना चाहिए । कोई कुछ भी कहे मान लो कि हमें कुछ समझ में नहीं आ रहा है । समझ लेने के खतरे बहुत है । ज्ञानी हो तो घर में बैठो, लूडो खेलो । समझ से खुद भी दूर रहो और अपने बच्चों को भी दूर रखो ।“

“ ऐसे कैसे मान लूँ दीनानाथ जी ! मूर्ख बने रहना क्या आसान काम है ! कुछ तो जानना समझना पड़ता ही है । “

“पढ़े लिखों के लिए कोई काम कठिन नहीं है । जमाने के साथ चलो । मन चांगा तो कठौती में गंगा । दिमाग को छोड़ो मन को रगड़ो ।“

“मन की ही तो दिक्कत है । मानता ही नहीं कमबख्त ।“

“खैनी चबाने वाले कैसे रगड़ते हैं हथेली पर । जितना रगड़ते हैं उतना मजा देती है । कबीर ने कहा है –‘मन मस्त हुआ तो क्यों बोले ‘ । यह एक तरह का योग है । अभ्यास से आएगा । जो लोग पहले मेंढक को देख कर मेंढक-मेंढक चिल्लाते थे अब साँप को देख कर भी चुप लगाये रहते हैं । कला है बाबू कला । ऊंचे लोग ऊंची पसंद । अंदर से बाहर तक केसरी ।“

“साँप दिखाई देते हैं क्या आजकल ?!”

“हाँ, सब देख रहे हैं । भगवान के गले में, भुजाओं में लिपटे दिखाई देते हैं । महँगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, भूख, गरीबी, हत्या, बलात्कार वगैरह सब साँप ही तो हैं ।“

“साँप तो श्रंगार है भगवान का । अपन प्रभुजी की वंदना करते हैं तो इनकी भी हो जाती है । जानते हो ना, पृथ्वी जो है नाग के फन पर टिकी हुई है ।“

“ सही दिशा में बढ़ रहे हो । ऐसे ही सोचते रहोगे तो दिमागी समस्या खत्म हो जाएगी । वो भजन सुना होगा – ‘हवा के साथ साथ, घटा के संग संग ... ओ साथी चल ... यूँ ही दिन रात चल तू ।‘

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सफेद कबूतरों से खतरा


 

 

                  " हुजूर, सारी दिक्क़त सफ़ेद कबूतरों से है। इन्हें लत पड़ी हुई है प्रेम सन्देश इधर से उधर करने की। लोग भी नासमझ हैं, जब भी ये पंख खोलते हैं ऐसा माना जाता है कि शांति का पैगाम फैला रहे हैं ! हमारे खिलाफ़ माहौल भी बनाते हैं। इन पर लगाम नहीं कसी गई या इनके पर नहीं काटे गए तो देख लेना एक दिन धर्म खतरे में पड़ जाएगा। " कौवे ने बाज-महाराज से कहा। 

 

                   बाज को सुबह से कोई अच्छी खबर नहीं मिली थी, वह तैश में आ गया - " ऐसे कैसे धर्म खतरे में पड़ जाएगा! धर्म है तो जंगल है, जंगल है तो जंगली हैं और जंगली है तो हमारी सत्ता है। धर्म को बचाना ही सत्ता को बचाना है।... तुम कौवे होकर इतना नहीं समझते हो!  " 

 

                 " समझता हूँ हुजूर, इसीलिए तो सफेद कबूतरों की हिमाकत बता रहा हूँ  । कौवे आपके वफादार हैं । आप हैं तो हमारा अस्तित्व है। आप से बचा खाकर ही हमारी कौम जिंदा रहती है।" 

 

                 " काले कबूतर क्या करते हैं !! उनकी संख्या तो काफी ज्यादा है।  जंगल में बिखरा दाना ज्यादातर वही खा जाते हैं। उन्हें विकल्प देना चाहिए।" बाज ने कहा। 

 

                 " मुझे अफसोस से बाज महाराज। काले कबूतर तो जंगली ही कहलाते हैं। प्रेम और शांति के प्रति उनमें संवेदन नहीं होती है। वे कितना ही पर फैला लें लेकिन लोगों में उनके प्रति भरोसा पैदा नहीं होता है। " 

 

                " तुम भी तो कौवे हो, और किसी लायक नहीं हो। फिर भी जंगल में जमे हुए हो या नहीं? श्राद्ध पक्ष में बस्तियों में जाते हो और पूजे भी जाते हो या नहीं ? काले कबूतरों को अपने साथ रखा करो। कुछ संस्कार दो उन्हें, सत्ता-भक्ति सिखाओ । उन्हें समझाओ कि भक्ति में शक्ति होती है।" बाज ने आदेशनुमा सुझाव दिया। 

 

                   कौवे ने सिर झुकाते हुए कहा - " क्षमा करें महाराज, कौवा बिरादरी उच्च है। आप सरकार के साथ उठना बैठना और खाना पीना है हमारी बिरादरी का। हम उन कबूतरों के साथ बराबरी का व्यवहार नहीं कर सकते।"

 

                   " तो फिर सफेद कबूतरों की समस्या का क्या होगा ! कैसे रोकेंगे इन्हें?"

 

                  " इसके दो तरीके हैं महाराज। पहला इन्हें जंगल-द्रोही घोषित करके मार खाया जाए। दूसरा उन्हें पुरस्कार और सम्मान देकर महान बना दिया जाए। एक बार किसी को सत्ता से महानता का प्रमाण पत्र मिल जाए तो उसका रंग बदल जाता है। "

 

                  " क्या पुरस्कृत कबूतर सफेद से काले हो जाते हैं !!? "

 

                 " रहते तो सफेद ही हैं महाराज, लेकिन उन्हें काला दिखाना बंद हो जाता है ।" 

 

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