शनिवार, 19 जुलाई 2025

बादल तुम बरसो, यही तुम्हारी आईडी है


 

 

                   बादलों, कई दिनों से तुम्हारे आने की खबर मिडिया में महक रही है। तुम्हें तो पता है पेड़ कम हो चले हैं, चौतरफा विकास है। मई जून में आदमी ऐसा तपता है मानो अंगार पर रखा भुट्टा हो। हर आत्मा पानी पानी पुकारती है, हर आँख बादल देखना चाहती है। तुम्हें देख कर मोर यूँ ही नहीं नाच उठते हैं । फूल अभी खिले नहीं हैं, झूले अभी पड़े नहीं हैं लेकिन तुम्हारे आने की खबर से मन मोर हुआ जाना चाहता है । लोग कहते हैं तुम पानी से भरे हो, नहीं जी ... तुम जिंदगी से भरे हो । बरसते हो इसलिए बाकायदा गरजने के हक़दार हो । अच्छा है कि तुम जुमलों की तरह दनादन नहीं बरस पाते हो, बरसते तो शायद बादल नहीं रहते। देखो तुम बादल ही रहना, बदलना मत। तुम्हें नहीं पता तुम्हारी पहली बूंदें प्रेम और उम्मीद से कितना भर देती हैं तपती धरती को। और हाँ, इस बार ठीक से बरसना, सभ्यता बारूद पर बैठी है। बारूद क्या है समझो आग ही है । जमाना तरक्की कर रहा है ना ! हम प्रेम के खिलाफ़ हुए, प्रकृति के खिलाफ़ हुए अब अपने ही खिलाफ़ होते जा रहे हैं। सभ्य हैं नाअब एक दूसरे के भरोसे लायक नहीं रहे। तुम्हारी भी सम्पूर्ण आईडी मांगी जा सकती है। युद्ध के बादल भी तो आकाश में घूम रहे हैं। इस फेक फेक जमाने में तुम पर चट से विश्वास कौन करेगा ! लेकिन तुम बादल हो, तुम बरसो, यही तुम्हारी आईडी है। 

                   चाँद छुप रहा है बार बार। लग रहा है तुम शहर की सीमा तक आ गए हो ! चले आओ कि झट से द्वारचार की रस्म भी कर लें। एक झड़ी से तोरण मार कर तुम भी अपनी आमद दर्ज करना। लाड़ली बहनों पासबुक रख दो तकिये के नीचे और निकलो घर से, गाओ मंगलगान, बादल सरकार आए हैं । जिम्मेदारियों से भरे हैं बादल, आज बरसेंगे सारी रात। ध्यान रहे, उनकी आगवानी में कोई कमी न रह जाए।

                  इधर स्वागत में बिजली विभाग मेंटेनन्स का नाम ले कर पेड़ काट रहा है। नगर निगम ने गड्ढे गिन लिए हैं। इस बार वर्ल्ड रेकार्ड बन जाने की उम्मीद है । जल भराव का तो तभी पता चलेगा जब तुम झूम के बरस लोगे। झुग्गी बस्तियां बहुत बन गई हैं । इन्हें भी उजाड़ना है ।  बादलों ऊपर से तुम आओ नीचे से बुलडोजर आएंगे । बहुत कट्ठी जान होते हैं गरीब । यही लोकतंत्र की ताकत भी हैं । इन्हें उखाड़ते बसाते रहना लोकतंत्र को मजबूती देता है । इसमें तुम्हारा योगदान कम नहीं है बादलों ।

                 बड़े लोग जागरूक है इनदिनों। कुछ ने इन्वर्टर खरीद लिए हैं बाकी ने मोमबत्तीयां। नदी नाले उफ़नेंगे, बस्तीयां भी डूबेंगी, लेकिन आपदा में अवसर की नाव हाकिमों को पार लगाएगी। बाकी के लिए भगवान हैं ही, प्रभु ने पर्वत उठा लिया था अपने भक्तों के लिए। जिम्मेदारी समझेंगे तो आएंगे, नहीं आए तो उनकी मर्जी । तुम तो बिंदास फट लो, सुना है बादल फटते भी हैं !! फट लेना, डरना मत। बहुत से लोग मेंढक मछली की तरह जी रहे हैं। आ जाओ स्वागत है तुम्हारा बादलों ।

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शुक्रवार, 18 जुलाई 2025

चेनू उर्फ भईया उर्फ भगवान


 

 

 

अपने ‘भईया-लोग’ भगवान तो नहीं पर भगवान से कम भी नहीं हैं । लोग कहते हैं कि देश भगवान भरोसे चल रहा है तो अनुभवीजन बिना देर किये इसकी गहराई को समझ जाते हैं । मानो तो भगवान जी हैं, न मानों तो जोखिम आपका । सितारे बुलंद हों तो पुलिस जनसेवक है, न हों तो अंतिम सत्य राम है । समझदार को इशारा काफी होता है । तो बोलो ॐ शांति ॐ, शांति शांति ॐ ।

बराबरी, स्वतंत्रता और सहयोग के इरादे से शुरू हुए लोकतंत्र में भईया भगवान हो गए यह बिकास नहीं महाबिकास है । चैनसिंग उर्फ चेनू उर्फ भईया उर्फ भगवान आज टीवी मीडिया से मुखातिब हैं । कल विपक्ष के एक नेता मीडिया के सामने कह गए थे कि कानून और व्यवस्था की स्थिति खराब है और सरकार गुंडों को नियंत्रित नहीं कर पा रही है । जो जेल में सुरक्षित रहता है वो अस्पताल में मारा जाता है । असामाजिक तत्वों ने आमजन का भी जीना मुश्किल कर दिया है । इसी के जवाब में आज मंच पर फैले चेनू अपनी बात रख रहे हैं ।

“एक बात समझ लो आप लोग अच्छी तरह से कि जिसे ये लोग गुंडा-गुंडा कह रहे हैं उनकी सोच पुरानी है । अब गुंडा-कर्म एक कमाऊ इंडस्ट्री है देश की । गुंडे जी उच्चकोटी की समाज सेवा में लिप्त हैं । G-इंडस्ट्री जहाँ जहाँ काम कर रही है वहाँ हमारे खिलाफ कोई एफआईआर नहीं है । सरकार कोई भी हो G-इंडस्ट्री सेवा कर डालने से पीछे नहीं हटती है । काम जिम्मेदारी से करते हैं, इसलिए हमारा नाम है ।“

एंकर को अपनी जिम्मेदारी और खतरे पता है, बोली –“सर दरअसल G-इंडस्ट्री के बारे में जनता को पता नहीं है ! उनकी जानकारी में आप इजाफा कर सकते हैं । ”

G-इंडस्ट्री समाज में एक सक्रिय, आत्मनिर्भर और हाई टर्नओवर कंपनी है । विपक्ष ने इसे असामाजिक तत्व कह कर अपमानित किया है । सही समय आने पर G-इंडस्ट्री इसका हिन्दी में जवाब देगी । उन्हें यह देखना चाहिए कि देश बेरोजगारी के संकट से गुजर रहा है । एक हमारी इंडस्ट्री ही है जिसने युवा हाथों को काम दिया है । क्या ये देश सेवा नहीं है ! मैं दावे के साथ कह रहा हूँ कि है । यहाँ कोई असहमत हो तो सामने आ कर अपनी बात रखे ।“ चेनू ने हॉल में नजर दौड़ते हुए कहा ।

एंकर को कोई बात नहीं सूझती है । ऐसे मौकों पर मुस्कराहट काम में लेती हैं, -“दर्शकों को एक बार फिर बता दें कि आज हमारे स्टूडियो में खासतौर से G-इंडस्ट्री के सीईओ चेनू सर मेहमान हैं और मजबूती के साथ अपना पक्ष रख रहे हैं । ... तो सर आपने बताया कि आपकी इंडस्ट्री इसलिए फलफूल रही है क्योंकि देश में बेरोजगारी है ।“

“ गरीबी बेरोजगारी पॉलिटिकाल इंडस्ट्री का रॉ-मटेरियाल है । चुनाव में यूज करने के बाद बाकी टाइम में ये लोग हमारे काम आते हैं । मतलब गरीब सेकंड हेंड, बेरोजगार सेकंड हेंड हम वापर लेते हैं । हम चाहते हैं इनकी मदद हो, सबका कल्याण हो । नेता भी खुश रहें, धरम-धंधे वाले भी, साथ में गरीब और बेरोजगार भी । अपने अपने पेट के हिसाब से सबको भरावन मिले । इसमें कोई बुराई है क्या ?”

“बुराई तो नहीं है सर, लेकिन आप दूसरे अच्छे काम भी तो करवा सकते हैं इनसे ।“

“नजरिया बादलों आप लोग । अच्छे काम ही करते हैं । हमारी वजह से ही पुलिस को रोजगार मिला हुआ है, जेलों का कारोबार चलता है, अस्पतालों को हड्डियों के ज्यादातर केस कौन देता है, चाकू कट्टे की फेक्टरी में रोजगार किसकी वजह से है ... और बताओ जरा सरकारें कौन बनवाता है ? “

“सर ऐसी क्या बात है । अब तो सरकार हम भी बनवाते हैं ।“ एंकर ने मुस्कराते हुए कहा ।

“गलतफहमी कोई भी पाल सकता है ।“ ceo बोले ।

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गुरुवार, 10 जुलाई 2025

खाली डब्बे खाली बोतल


 


 

             बूढों के मामले में आजकल बड़ी गफ़लत चल रही है। हर बूढ़े को कहा जा रहा है कि तुम अपने आप को जवान समझो। दोस्त बनाओ, मॉर्निंग वाक पर जाओ, जो मन में आए देखो, हँसो-बोलो गुनगुनाओ। उम्र कुछ नहीं सिर्फ एक नंबर है। बाल झर रहे हैं ! कोई बात नहीं सबके झरते हैं। चश्मा सबको लगता है। दाँत तो होठों के परदे में हैं, किसको पता दत्तक हैं या सगे वाले। बाल रंग लो तो मन भी अंदर से रंगीन हो जाता है और किसीको पता भी नहीं चलता है। होना उतना जरूरी नहीं है जितना कि मान लिया जाना। कितने ही लोग हैं जिन्हें जमाना करोड़पति मानता है लेकिन गले तक कर्ज में डूबे हुए हैं बेचारे। ज्ञानी कहते हैं इस धरती पर हम एक किरदार हैं, जो रोल हमने चुना है वो निभा रहे हैं। तो अंदर से आप कुछ भी हो, किरदार में अपने को जवान समझो। सिर्फ समझना ही तो है, कुछ करना थोड़ी है। पार्क में देखो कितने पिचहत्तर-पारी हैं जो पचासा जी रहे हैं। स्त्रियों से सीखो। किसी को आंटी बोल दो फिर देखो कैसे तबियत से एक पत्थर उठाके आसमान में छेद कर देती हैं ! मानती है दुनिया, मनाने वाला चाहिए। 

                    लोग चमत्कार को नमस्कार करते हैं। और आज के समय में मेकअप से बड़ा चमत्कार दूसरा नहीं। मेकअप वाले धरती पर दूसरे भगवान हैं जो घर और संसार को रहने सहने लायक बनाते हैं। तो सारी महिमा मेकअप की है। मेकअप औरतों और बूढ़े आदमियों की जरुरी जरुरत है। मेकअप बढ़िया हो तो रावण भी साधु दिखने लग जाता है। मेकअप वाला आदमी बूढ़ा नहीं होता। लगता है कि लोग बाल ही देखते हैं। बाल काले भक्क होना चाहिए, चाहे चेहरा चपटा चूसा आम हो। बाल देखो या दिल देखो, जवानी की रीडिंग इधर ही मिलती है। करवाने वाले चेहरे पर भी काम करवा लेते हैं और 52 साल का फिल्मी आदमी भी 25 का दिख सकता है। जानकार बताते हैं कि देश भी मेकअप से चल रहा है। पुल अच्छे दिखाना चाहिए, सड़कें लम्बी दिखनी चाहिए, आंकड़े अच्छे होना चाहिए, भाषण बढ़िया देना चाहिए, वादे ऊंची आवाज में करना चाहिए वगैरह । मेकअप का तो सिद्धांत ही है कि अच्छा दिखे बसहो गया।  सूरत अच्छी दिखना चाहिए फिर चाहे चेहरा फुंसियों और पिंपल से भरा हो।  आजकल तो लोग तारीफ भी इतनी करते हैं कि अच्छे भले बेशर्म आदमी को भी बगलें झांकना पड़े। इसे शाब्दिक या जुबानी मेकअप कहते हैं। पैसा सरकारी हो तो आप उसे यहां वहां फेंक कर फोकट फंड में अपना मेकअप कर सकते हैं। मेकअप सिर्फ चढ़ाना या थोपना भर नहीं है, उतारना भी है ।  सब जानते हैं कि साहब बूढ़े हैं, साहब भी जानते हैं कि वे बूढ़े हैं। भगवान तो जानते ही है कि साहब बूढ़े हैं। साहब क़ी बेगम तो भरी बैठी हैं कि साहब ब्लेक डॉग कि खाली बोतल हैं। जींस और टी शर्ट भी अपना काम नहीं कर पा रही है। लेकिन दिल है कि मानता ही नहीं । किसी शायर ने लिखा है  - वक्त का काफिला आता है गुजर जाता है ; आदमी अपनी ही मंजिल पर ठहर जाता है ।

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अस्पताल चलें हम !


 


 

             मरना तो सबको पड़ता है । आया है सो जाएगा, राजा रंक फकीर । तो अस्पताल चलें हम । अस्पताल में आदमी कायदे से मारता है। अस्पताल के पास सुपर स्पेशलिटी होती है। वे अपना काम जानते हैं और करने में दक्ष होते हैं। घरों में लोगों को नहीं मालूम होता हैं कि कब क्या करना चाहिए। मरीज की सांस उखड़ने लगती है तो दौड़कर बुआ जी को फोन करते हैं कि जल्दी आ जाओ बाबूजी की सांस उखड़ रही है। जो भी होना है बुआजी के सामने हो तो अच्छा होता है वरना बाद में केस बिगड़ सकता है। अस्पताल में ऐसा नहीं है। जब किसी की सांस उखड़ने लगती है तो वह डिपॉजिट की रकम बढ़ा कर जमा करवा लेते हैं। इससे जमा बॉडी के जिन्दा रहने की उम्मीद बढ़ जाती है। लोगों को लगता है कि इतना रुपया जमा करवा रहे हैं तो अच्छा इलाज करेंगे। मरीज यानी जमा बॉडी को इतना आराम हो जाता है कि उसकी तरफ से सांस भी मशीन लेती है। इधर आत्मा यमराज के दरबार में पेश हो चुकती है, उसके करम चेक हो चुकते हैं, स्वर्ग या नरक में उसको खोली मिल चुकती है और बंदा अस्पताल में बाकायदा सांसे ले रहा होता है। अब इसे भी आप चमत्कार नहीं कहोगे तो मरो घर पे।

 

          हम एक लोकतांत्रिक देश है ।  सिस्टम उसे जिंदा मानता है जो वोट दे देता है। मजबूरी है, क्या किया जा सकता है । अमीर आदमी का रुतबा अलग है वह वोट नहीं देता फिर भी बकायदा जिंदा रहता है। इसका रहस्य है कि वह चंदा देता है। राजनीतिक दल चंदे से जिंदा रहते हैं। अमीर लोग राजनीतिक दलों के ऑक्सीजन सिलेंडर होते हैं। सत्ता की सांसें अमीरों की तिजोरी में होती है। आमिर ना हों तो ऊपर बैठे मालिक का कारोबार भी ठीक से नहीं चले। आप समझ गए होंगे कि अमीर की इच्छा ही सिस्टम की जान होती है। इसलिए अमीरों को बचाना सिस्टम को बचाना है।  बड़े और समझदार आदमी हर काम कायदे से करते हैं। इसलिए अमीरों के अस्पताल अलग और गरीबों के अलग होते हैं । कायदे चाहे अस्पताल के हों, न्यायालय के हों या फिर धरम के हों, कोई भी कायदा गरीब अफोर्ड नहीं कर पाता है । वो अक्सर अच्छे अस्पताल और ईलाज की कामना करते हुए मर जाता है। वैसे कामना का क्या है, लोग हूरों की भी करते ही हैं । गालिब ने कहा है कि ‘दिल को बहलाने के लिए खयाल अच्छा है’ । बहुत से कार्ड वाले गरीब अस्पताल के दरवाजे तक पहुँच कर कैसे तो भी मर लेते हैं। दरअसल गरीब को भ्रम होता है कि वह जिंदा है। अस्सी करोड़ को मुफ़्त राशन और ऑक्सीजन मिल रही  है । सांस चल रही हो तो लोग भी मान लेते हैं कि आदमी जिंदा है। सरकारें अस्पताल बनवाती हैं ताकि आदमी जिंदा रहे और गरीब भी । गरीबों के अस्पताल भी खासे गरीब होते हैं । गरीब से गरीब की मेचिंग होती है और ये संबंध लंबा चलता है । यहाँ कोई ऑक्सीजन सिलेंडर के लिए नहीं दौड़ता, ताबीज और भभूत के लिए पेरेरल दौड़ता दिखता है । गरीब अस्पताल में जब तब रोने चीखने की आवाज गूँजती है तो जमीन पर पड़े मरीज के घर वाले खुश होते हैं कि शायद अब बेड मिल जाएगा । हूरों वाली कामना आखरी में आ कर एक बेड पर सिमट जाती है । बेड पर मरने को मिले तो गरीब की मुक्ति हो जाती है ।

 

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