गुरुवार, 7 जनवरी 2021

नफ़रत का प्रकाश

 



नफ़रत एक सरल आदमी को राजनीतिबाज बना देती है । मार्गदर्शन की जिम्मेदारी में लगे लोग इस प्रक्रिया को जागरूकता कहते हैं  । उनका मलाल यह की अभी लोगों में जैसी चाहिए वैसी जागरूकता नहीं आई है । देश जनसंख्या, महंगाई, बेकारी,  बेरोजगारी से नहीं जागरूकता की कमी से त्रस्त है। मजबूरन उन्हें शिविर वगैरह लगाकर जागरूकता बढ़ाना पड़ती है । एक बार कोई ठीक है जागरूक हो जाए तो उसे अपने घर घर-परिवार,  यहां तक कि जीवन की परवाह भी नहीं होती है । ऐसे सिद्ध जागरूकों को जल्द ही जातू बना लिया जाता है । मोटामोटी यूं समझिए कि जातूजन कौम के रक्षक होते हैं । रक्षक वही हो सकता है जो कौम को प्रेम करें। सिनेमा देख देख कर युवा वह प्रेम करने लगे हैं जो अश्लील है । कौम से प्रेम में यही सबसे बड़ी बाधा है । दूसरी कौम से नफरत करना अपनी कौम से प्रेम करने की पहली शर्त है । दुनिया की हर कौम, हर धर्म परोक्ष रूप से यही सिखाता है । अपना धर्म अपने विचार अपने लोग और अपनी नफरत यानी अपना प्रेम।

आजकल दैनिक जीवन में जागरूकता इतनी हावी है कि अक्सर बाप-बेटे पति- पत्नी के बीच भी 'कूटनीति युक्त' संबंध देखे जा सकते हैं । अगर आप व्यावहारिक जीवन में सक्रिय हैं तो आपको इतनी राजनीतिक समझ होना चाहिए कि दूसरों को मूर्ख बना सकें, झूठ बोल सकें और अपने हित को जनहित सिद्ध कर सकें ।  जैसे यह भाई साहब हैं, इनका नाम है मकरंद रोजधुले । पक्के जागरूक हैं और जातू भी । कहते हैं कि राजनीति में इनकी जड़ें इतनी गहरी हैं कि आदमी कम 'जड़' अधिक लगते हैं । रोजधुले साहब की फिलॉसफी है कि नफरत एक तरह का प्रकाश है जिसे फैलाया जाना चाहिए और प्रेम जो है अंधेरे में किया जाना चाहिए । अपने हिस्से का प्रकाश वे व्हाट्सएप के जरिए फैलाते रहते हैं । मैनेजमेंट गुरु कहते हैं कि काम कैसा भी हो अगर उसे बाँट दिया जाए तो अपेक्षित सफलता मिल जाती है । हफ्ते में दो-तीन प्रकाश युक्त मैसेज वे भेज देते हैं, जिसका सार होता है कि जागो-जागो यानी तुम जागो ।
आज उनका फोन आया, बोले - कैसा लगा ?
"अभी देखा नहीं ।" मैंने टालना चाहा । "परसों भेजा था वह देखा  ?"
" हां वह देख लिया था ।"
"कैसा था ?"
"आंख फाड़ जागरूकता वाला था ।" "कितने लोगों को फॉरवर्ड किया ?" "फारवर्ड तो नहीं किया ।"
"नहीं किया  !! लगता है आप जागरूकता के मामले में एनीमिक हो ! इससे शंका होती है कि आप अपनी कौम को प्रेम नहीं करते हैं । क्यों नहीं तुम्हें राजद्रोही समझा जाए !"
"ऐसी बात नहीं है, मैं करता हूं कौम को प्रेम ।"
" बिना जागरूकता के कौम से प्रेम करना कैसे संभव है !?"  इस बार आपत्ति लेते हुए और कुछ डपटते हुए वे बोले तो मुझे भी कहना पड़ा - "आपकी यह बात समझ में नहीं आई भाई साहब ! आप खुद जब दूसरी कौम वालों के सामने पड़ते हैं तो खुशी जाहिर करते हैं, हाथ मिलाते हैं, गले भी मिल लेते हैं !! इसका क्या मतलब है !?"
"इसका मतलब है मैं मनुष्य से प्रेम करता हूं , इंसान में मैं ईश्वर देखता हूं ।"
"और जागरूकता ? कौम से प्रेम !?"
"ठेके से ... ठेका समझते हो ना ? काम दूसरों से करवाओ तो बड़े पैमाने पर हो जाता है और अपना ही कहलाता है ।  काम मजदूर करते हैं लेकिन भवन तो बनवाने वाले का होता है । ये इनर व्हील की जागरूकता है ।

------

*जवाहर चौधरी
BH-26, सुखलिया,
(भारतमाता मन्दिर के पास)
इंदौर- 452 010

फोन- 9406701670

-------

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें