शनिवार, 2 जनवरी 2021

मीठा कितना रखोगे ?

 



मैनेजमेंट सही हो तो किसी को सम्मानित करना भी फायदे का काम है । करते-करते बैल भी सीख जाता है । साल भर होने को आया अब उनके कर कमलों में फड़कन शुरू हो गई है । सम्मान के लायक कोई ढंग का आदमी सपड़ नहीं रहा है । दिक्कत यह है कि किसी ऐरे गैरे को सम्मानित कर दो तो लोग लंबे समय तक लत्ते लेते रहते हैं । इधर बूढ़ों को जान की पड़ी है । जिस से बात करो वह हाथ जोड़कर कोविड-कोविड करने लगता है । एक जमाना था जब जान से ज्यादा सम्मान की कदर थी । जान छूट जाती है पर सम्मान दीवार पर फोटो के साथ टंगा  गरिमा बनाए रखता है । जीवन के रहस्य को समझते थे लोग । कुछ को याद दिलाया कि समाजसेवी हो आप , मौका दे रहे हैं, काम आ जाओ समाज के । लेकिन उनकी गूंगी हिम्मत जवाब नहीं देती है । वैसे जो मजा फेमस आदमी का सम्मान करने में है वैसा दूसरे में नहीं है। दो साल पहले एक फिल्मी एक्टरेस सपड़ गई थी । क्या शानदार फोटू आई !  ओ हो !! ... साहब मजा आ गया, क्या बताएं आपको । आज भी देखो तो लगता है वरमाला का सीन चल रहा है। फूल-फूल पंखुड़ी-पंखुड़ी तक वसूल हो गई। सम्मान के मार्केट में माइलस्टोन था वह कार्यक्रम । लोग टूटे पड़ रहे थे , हाल सेमी खचाखच भरा था । इधर हाथ में माला और सामने साक्षात स्वप्न-सुंदरी ! हर दिल में एक ही बात थी कि 'हाय हम ना हुए' ।  दूसरे दिन अखबारों में वो गजब चर्चा, वो सानदार फोटू कि पूछो मती । आज भी एलबम देख लो तो रात बिना ड्राइवर की ट्रेन सी निकल जाती है सट्ट से । 

अब कुछ बदल छंट रहे हैं । 2020 पर नजर डालो तो पता चलता है कि कवियों के अलावा साहित्य के मार्केट में कोई सक्रिय नहीं रहा है । लॉकडाउन से लोगों ने बहुत कुछ सीखा है । बंद घरों में लोग बीमार कम हुए कवि ज्यादा हो गए ।  घर-घर कवि, भर-भर कविता । जिन्होंने कभी नहीं लिखी वे भी तीन-तीन पांडुलिपियां थामें प्रकाशक पकड़ने के लिए दिल्ली-तालाब की ओर बंसी डाले बैठे हैं । बीवियां जमाने की भले ही सुन ले अपने मियां की कभी नहीं सुनती, खासकर तब तो कतई नहीं जब वह कविताओं से संक्रमित बैठा हो । खुद क़वारन्टीन होने के बजाए अगर सुन लेतीं और अपने कोप का रेमडेसीवीर ठोक देतीं तो फेसबुक आभारी हो जाता उनका । हम कोई अतिशयोक्ति में ये नहीं कह रहे हैं । यह ग्राउंड रिपोर्ट है । और फर्स्ट, सेकंड, थर्ड फ्लोर की भी यही रिपोर्ट है । अब सवाल यह कि सम्मान करने की हूक का क्या करें । सौ-पचास को इकट्ठा  सम्मानित कर दें ?  दर्जन से कोई चीज लो तो सस्ती पड़ती है, मतलब माला, शाल वगैरा । हो तो जाता है लेकिन मजा नहीं आता । यूनो सम्मान ऐसा होना चाहिए जिसमें मजा आ जाए वरना मतलब क्या है मगजमारी का । एक सम्मान को लोग आज भी याद करते हैं जिसमें मेनका बिहारी का डांस प्रोग्राम भी रखा था । लेकिन उसमें बजट गड़बड़ा गया था । जब से राजनीति वाले चंदा वसूलने लगे हैं लोग सम्मान सेवकों को दूर से ही टरका देते हैं । फिर इस बार तो कोविड ने किसी को चंदा देने लायक छोड़ा ही नहीं । वैसे तो फूल माला सम्मान का भी चलन खूब है । लेकिन फीका सम्मान डायबिटीज वालों को भी पसंद नहीं आता है, जिससे भी बात करो पहले पूछता है 'मीठा कितना रखोगे ?'
सुन रहे हैं कि जनजीवन सामान्य हो रहा है तो विभूतियां भी पटरी पर आ जाएंगी । आज नहीं तो कल कोई न कोई सपड़ जाएगा । आप आइयेगा जरूर ।

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*जवाहर चौधरी
BH 26 सुखलिया
(भारतमाता मन्दिर के पास)
इंदौर 452 010

फोन  9406701670

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