रविवार, 23 जनवरी 2022

वे जो मुस्करा रहे हैं


                           लोगों ने देखा कि आवारा कुत्ते की दुम कुछ दिनों से सीधी है ! पुराने लोग बताते हैं कि कुत्ते की दुम सीधी हो तो उसके पागल होने की आशंका प्रबल रहती है . पागल कुत्ता काटने लगता है . इरादतन काटे या गैरइरादतन, चौदह इंजेक्शन पूरे लगते हैं . इसलिए पागल कुत्ता जब भी बस्ती में आता था तो लोग बच्चों को लेकर घरों में घुस जाते थे . पागल कुत्ते के आने से लोगों को फ़ौरन घर में छुपाना एक रिहर्सल हो जाया करती थी जो डाकुओं के आने पर बड़े काम आती थी . मुसीबत आये तो मुकाबला करने के बजाए छुप जाना हमारी नीतिगत प्राथमिकता है . इस भागमभाग के दौरान कई बार बस्ती के वाशिन्दे-कुत्तों को पागल कुत्ते की गुस्ताखी का जवाब देने का विचार आता, सो वे अपनी पूरी ताकत से राजनैतिक धार्मिक नारों जैसा कुछ भौंकते हुए उसके पीछे दौड़ जाते थे और उसे सीमा पार खदेड़ कर ही दम लेते थे . कभी कभी ऐसा भी होता था कि हिम्मत करके बस्ती के लोग डंडे लाठी लेकर निकल पड़ते, कुछ लोग पत्थर ले कर पागल कुत्ते को घेर लेते और दिन दहाड़े उसका खत्मा कर डालते . कई दिनों तक इसकी चर्चा चलती, कोई इसे मॉबलीचिंग कहता तो कोई एनकाउंटर बताता . कुछ महीनों के बाद कुत्ता मारने की घटना बहादुरी की एक कहानी बन जाती, जिसे बच्चों को उस समय सुनाया जाता जब बस्ती में लाईट जाने के बाद अँधेरा छा जाता था और वे डरते थे .

                             लेकिन ये पुरानी बात है, बस्तिकाल की . अब कुत्ते इक्कीसवीं सदी में चले गए हैं . लोकतंत्र में उनको भी नागरिक अधिकार मिल जाते हैं जो वोटर नहीं होते हैं या जो वोट नहीं डालते हैं . फिर पार्टी हो या सरकार, दुमवानों ने जो मुकाम हासिल कर लिया है वो अभूतपूर्व है . सुना तो यह भी गया है कि कुत्ते इच्छाधारी होने लगे हैं ! मौके और जरुरत के हिसाब से वे कुछ भी बन जाते हैं . कभी भी गायब हो जाते हैं, कभी प्रकट हो जाते हैं . कुछ भाषण भी देने लगे हैं, छोटे बड़े वादे करते हैं और कभी कभी नोचने खाने के पक्ष में संविधान तक बदलने की कोशिश करते हैं ! देश में गरीबी, महंगाई, बेरोजगारी जैसी समस्याएं सर उठाये रहती हैं . लेकिन कुत्तों के लिए इन सब बातों का कोई मतलब नहीं होता है. वे अपने मालिक के प्रति वफादार रहते हैं, मालिक ही उनको पालता है, पोसता है और छू लगाता है . एक बार किसी चौकी पर बैठ गए तो आराम से चार पांच बरस मानव हड्डी चूसते चाटते गुजार देते हैं . ज्ञानी ध्यानी विद्वान् महात्मा लोग बताते हैं कि कुत्ता-मुक्त समाज की कल्पना करना बेकार है . वे युधिष्टिर के साथ स्वर्ग तक गए थे, इसी बात की रायल्टी वे आज तक वसूल रहे हैं . वे कहते हैं कि जिन्हें लगता है कि कुत्तों से खतरा है वे इस संवाद को याद रखें – ‘गब्बर से तुम्हें एकही आदमी बचा सकता है ... खुद गब्बर .’

                             तो बात ये थी कि लोगों ने देखा कि इन दिनों कुत्तों की दुम सीधी दिखायी दे रही है ! कुछ ने बताया कि उन्होंने कुत्तों को मुस्कराते हुए भी देखा है . लोग चौंक रहे हैं . डिस्कवरी या एनीमल प्लेनेट वालों ने ऐसा कभी दिखाया तो नहीं ! जल्द ही सीधी दुम वाले हंसते कुत्ते प्रदेश भर में लोगों को दिखने लगे !!

                             आखिर टीवी पर कुत्ता विशेषज्ञ के खुलासे से जनता को तसल्ली हुई . वे बोले लोग चिंता न करें, चुनाव का मौसम है, आचार संहिता लगी हुई है . काटने वालों को मुस्कराना पड़ रहा है . मतगणना के बाद सारी दुमें यथावत अपना काम करने लगेंगी .

 

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