दिवाली की सफाई में जूते निकल आए ।
जब पसंद किए थे तो देखा कंपनी अच्छी है,
डब्बे पर छ्पा घोषणा पत्र भी जोरदार था । लिखा था सोल मजबूत है । इतना कि सारे
अवांछितों को कुचल देगा जो आपके पैरों को कुचल देने का इरादा रखते हैं । मेरे जैसा
आम आदमी जूते में क्या देखता है ?
यही कि सोल बढ़िया होना चाहिए । सोल पर ही जूता टिका होता है और जूतों पर पैर । सोल जितना पहनने वाले
के लिए महत्व का है उतना ही जूते के लिए भी । सुरक्षा की दरकार न हो तो जूतों की
जरूरत क्या है ।
कालीन पर तो वैसे भी चरण कमल होते
हैं । तकनीकी रूप से देख जाए तो जूता हो या न भी हो तो कोई फर्क नहीं पड़ता । जूता
उनके लिए केवल शोभा की वस्तु है । सोल भले ही कमजोर हों पर मुलायम होना चाहिए ।
ताकि उसमें जब चरण डालें तो लगे कि जूते चरणों को चूम रहे हैं । चरणों और कालीन के
बीच जूतों की वही भूमिका होती है जो कमीज और कोट के बीच टाई की होती है । उपयोगी
नहीं है पर फिर भी जरूरी है । शोध करने वाले इस बात पर ध्यान दे सकते हैं कि जो
जूता आम आदमी को काटता है वो अमीरों के सामने चरणदास कैसे हो जाता है ! चरणों की
महिमा और जूतों की बेशरमी पर अब देश गौर करना चाहता है ।
खैर,
मुझे इससे क्या,
और सच पूछो तो आपको भी इससे क्या ?
आप हम ठहरे आमजन यानी लोकतंत्र की जान ।
ज्यादा सोचने की न हमारी आदत है और न हमें कोई जहमत उठाने देता है । बस हवा का एक झोंका आ जाए,
कोई लहर सी उठे या मतदान के पहले वाली रात जरा मुंह दिखाई हो जाए तो हम भी तेरे,
दिल भी तेरा । जूतों की तरफ देखने की न जरूरत है और न ही फुर्सत । दिल बड़ा हो तो
तंग जूतों में भी पाँव डालने में कोई गुरेज नहीं है । बाद में अगर जूतों ने दो चार
जगह काट भी लिया तो भी कोई उसे फैंकता थोड़ी है । फिर इस बात की क्या गैरंटी कि
दूसरा नया नवैला,
जो उपर से नरम नरम सा दिख रहा है चार दिन चल पाएगा । जिसके सोल ही मजबूत दिखाई
नहीं दे रहे हैं उसकी मुलायमियत और खूबसूरती किस काम की ! अगर जंगल में रह रहे हो,
रास्ते ऊबड़ खाबड़ हों तो सोल मजबूत होना जरूरी हैं ।
“दो साल से टांड़ पर पड़े हैं,
अब क्या करोगे इनका !?”
श्रीमती जी ने जूतों को फटकारते शब्दों के
साथ मेरे सामने पटका ।
“पहनना तो है नहीं ... तुम कहो तो अटाले
वाले को दे दूँ ?” दिवाली कुछ बेकार चीजों से मुक्ति का भी
त्योहार है । लेकिन जैसा कि आप जानते ही हैं कि डरा हुआ कर्मचारी अपने अधिकारी से
पूछ कर,
स्वीकृति मिलने के बाद ही किसी चीज को अटाले में दे पाता है । सो पूछ लिया ।
“क्यों !?,
मुफ्त में मिले थे क्या ?
... अपनी पसंद से देखभाल के लिया था ना ! ... यही पहनों ।“
“नए थे तब ठीक लग रहे थे,
अब ये जूते काटते हैं डीयर । तंग इतने हो गए हैं कि पाँव डालने की हिम्मत नहीं हो
रही है ।“
“जूता शुरू शुरू में तो काटता ही है
। लगातार पहनोगे तो जहां काट रहा है वहाँ की चमड़ी मोटी हो जाएगी ।
राष्ट्रवादी बनो,
ज्यादा ध्यान मत दो, एक
बार फंसा लो, पैर जल्दी सेट हो जाएंगे ।“
“समझो ना, हिम्मत नहीं हो रही और मन भी नहीं हो रहा है ।“
“हिम्मत करना पड़ती है,
मन को मारना पड़ता है । विश्वास और भरोसा बड़ी चीज है । हम औरतों से सीखो । जिस
सैंडल में पैर डाल दिया उसी की हो कर रह जाती हैं । काटती हों,
चुभती हों,
फिर भी फैंकती नहीं हैं । करवा चौथ ऊपर से ! “
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