सुबह सुबह डीएसपी साहब गार्डन में
टहल रहे थे कि गिर गए । वैसे देखा जाये तो पहली बार नहीं गिरे थे, जब भी मौका मिला
वे गिर लेते थे । सरकारी नौकरी का ऐसा है कि यहाँ बाकायदा गिरने का रिवाज है । कोई
न भी गिरना चाहे तो गिराने वाले नहीं मानते हैं । जो जितना गिरता है उतना उठता है
। पहले छः महीने में आदमी गिरे नहीं तो महकमे में खुसुर पुसुर शुरू हो जाती है ।
लोग शक की निगाह से देखने लगते हैं । उन्हें लगता है हमारे बीच कोई हरिराम नाई तो
नहीं आ गया है ! वैसे महकमा बड़ा कोआपरेटिव है । डीएसपी साहब जब नए नए आये थे और गिरने के मामले में बड़े संकोची
थे तब उनकी नथ उतारने की रस्म की गयी थी । बाकायदा यानी पूरे विधिविधान, सफाई और
सावधानी के साथ उन्हें पहली बार गिराया गया । इसके बाद वो कहते हैं ना ‘उन्होंने
कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा’ । बाद में तो ‘प्रेक्टिस’ इतनी चली कि वे दफ्तर बाद
में पहुँचते, गिर पहले लेते । इतना सब आपको इसलिए बताना पड़ रहा है कि आप जान लें
कि गिरना कितना रेस्पेक्टफुल है महकमें में ।
अब वे सेवानिवृत्त हो चुके हैं ।
बिना गिरे एक एक दिन काटना उनके लिए बड़ा मुश्किल होता है । वो तो शुक्र है आज
टहलते हुए ठोकर खा गए और औंधे मुंह गिर लिए । पीछे मोहन पिपलपुरे चले आ रहे थे ।
उन्होंने दौड़ कर मदद के लिए हाथ बढ़ा दिया । गिरने के बाद पहली बार खाली हाथ देख कर
डीएसपी साहब को झटका लगा । जो आदमी गिरने के बाद हमेशा खुश होता था आज इतना दुखी
हुआ कि जमीन फट जाती तो उसमें समा जाना पसंद करता ।
खैर, गिरने पड़ने के बीच यह यह बताना
रह गया कि अपने डीएसपी साब वो डीएसपी नहीं हैं जो पुलिस में होते हैं । दरअसल ये
देवी सिंग पटोले हैं । लेकिन शुरू से ही देवी सिंग पोटले के नाम से फेमस हुए ।
धीरे धीरे लोग इस नाम को भी चुनावी जुमलों की तरह भूल गए और नया नाम आया डीएसपी जो
पोटले साब को भी पसंद था । अच्छी गुजरी, लेकिन जिंदगी में ऊंच नीच सब देखना पड़ती
है । कुछ समय से नयी नयी गिरावटें सामने आ रही हैं । कमबख्त बाल गिरना शुरू हुए तो
डॉलर के मुकाबले रुपये का साथ निभाते चले गए । रोज सुबह बाज़ार खुलते ही यानि पहली
कंघी में ही खासी गिरावट दर्ज हो जाती है । पिछले महीने दो दांत क्या गिरे बाकी ने
भी चलूँ चलूँ की जिद पकड़ ली । मन में घोर क्लासिक बंगाली उदासी छ गयी, जो मन कभी
ममता की तरह बमकता था अब छुइमुई हो गया । लोग झूठ कहते हैं कि बुढ़ापे में रूपया
काम आता है । क्या खाक काम आता है ! इधर चमड़ी कांग्रेस की तरह ढीली होती जा रही
है, आईने के सामने जाओ तो पंचर-टॉय दीखता है । जाने ‘चौकीदार’ लोग क्या खाते हैं,
कैसे खाते हैं, जब देखो तक हवा फुल-टाईट भरी दिखती है !
पिपलपुरे जी ने डीएसपी को पास लगी
बैंच पर बैठाया । पूछा ठीक लग रहा है आपको ? कोई दिक्कत तो नहीं है ? डीएसपी
रुआंसे हो कर बोले – “गिर गए !”
“शुक्र है हड्डी नहीं टूटी ।“
पिपलपुरे जी ने पीठ पर हाथ फेरते हुए तसल्ली दी ।
“दो दांत गिर गए ... वो पड़े हैं पत्थर
के पास ।“ डीएसपी बोले ।
पिपलपुरे ने देखा, लगा पत्थर मुस्करा
रहा है ।
----x----
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें