कहते है कि
लोकतंत्र में बोलने की आजादी होती है । यों तो सब बोलते ही हैं लेकिन आजादी के साथ
बोलना आँख में किरकिरी की तरह चुभता है । जिसको बोलना है बोले, खूब बोले, कोई
दिक्कत नहीं है । लेकिन आजादी के साथ बोलने वाला कमबख्त सोचता भी है । सोचने से
विचार बनता है और विचार से असहमति पैदा होती है । असहमत आदमी खुद तो तनाव में रहता
ही है दूसरों को भी तनाव देता हैं । विचार एक संक्रामक रोग है यानी छूत की बीमारी
। कविता, कहानी और यहाँ तक कि कार्टून से भी विचार पैदा हो जाते और समाज में फैलते
भी हैं । लोगों को यह समझ लेना चाहिए कि कलम और किताबें उनके तनाव का मुख्य कारण
है । अगर हम एक मजबूत और स्वस्थ समाज चाहते हैं तो लोगों को किताब कलम से दूर रहने
और हर बात के लिए सहमत रहने के संस्कार देने होंगे । प्रश्न पूछने वालों को, शंका
रखने वालों को, सवाल करने वालों को इतना जलील किया जाना चाहिए कि वे दोबारा हिम्मत
नहीं करे कुछ भी पूछने की । नशे से घर परिवार बर्बाद होता है लेकिन विचार क्या
क्या बर्बाद कर सकता है इसकी कोई सीमा नहीं है
। समाज को नशामुक्ति केन्द्रों से ज्यादा विचारमुक्ति केन्द्रों की जरुरत
है । हमारे संत महात्मा और बाबा लोग बहुत अच्छा काम कर रहे हैं । उनके भजन,
प्रवचन, सीख-शिक्षा लोगों को विचार प्रवृत्ति से दूर रखने में सार्थक योगदान करते
हैं । सत्संग में व्यक्ति सहमत होना और सहमत बने रहना सीखता है । वह समझ लेता है
कि ‘जब आवै संतोष धन, सब धन धूर सामान’ । यहाँ संतोषी सदा सुखी का मतलब सहमत सदा
सुखी ही है । सहमति की आवाज बड़ी शीतल होती है । कबीर ने भी कहा है ‘ऐसी बानी
बोलिए, मन का आप खोए ; औरन को सीतल करे आपहु सीतल होए’ । यहाँ इन पंक्तियों का आशय
यह है कि आप मन की गहराइयों से सहमति के बोल बोलिए, उससे दूसरे सुखी होंगे और आप
भी सुखी रहेंगे ।
हम
विश्वगुरु ऐसे नहीं हैं । कहते हैं अमेरिका का आदमी पच्चीस वर्ष में जीतनी फिलासफी
सीखता है उतना फिलासफ़र तो हमारे देश का सात साल का बच्चा होता है । स्कूली
गुरुजनों को देखिये, वे बच्चों को सवाल पूछना नहीं सहमत होना सिखाते हैं । किसी
ज़माने में जो राजाराम हुआ करते थे बाद में राजीराम होकर मजे करते हैं । सरकार चाहे
घर की हो या बाहर की, सुखी वही है जो राजी रहता है । वक्त बदल रहा है, जो बात बात
पर असहमत हो जाया करते हैं उन्हें अब मार्गदर्शन के लिए भी कोई नहीं पूछ रहा है ।
जो अपनी तमाम असहमतियों को भोंगली बना कर टांड रखता है वह हर बात में आसानी से
राजी हो लेता है । दरअसल राजी रहना एक साधना का विषय है । योग है जो अभ्यास से सिखा
जा सकता है । डाक्टरों का कहना है कि आज के समय में तनाव सबसे बड़ी समस्या है ।
इससे दिक्कत यह है कि लोग अवसाद और हार्ट अटैक जैसी दूसरी बिमारियों की चपेट में आ
जाते हैं । तनाव दूसरी बिमारियों के लिए रेड कारपेट है । जो राजी होता है वो गाजी
(ताकतवर) होता है । उसे कोई दिक्कत नहीं होती है । तो सहमत बनें, कलम, किताब और
विचार से दूर रहें, समाज का विकास करें ।
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