“मेरे पास मुद्दे हैं, सवाल हैं, गवाह हैं, तुम्हारे झूठ हैं, तुम्हारे
फर्जी काम हैं । तुम्हारे पास क्या है ? क्या है तुम्हारे पास ?” विजय ने पूछा ।
“मेरे पास भावना माँ है ।“ रवि ने
कहा । “और भाई एक बार भावना माँ आहात हो गयी ना तो तुम अपने मुद्दों को भोंगली बना
के कहाँ रखोगे यह भी तुम्हें नहीं सूझेगा ।“
सीन कट हुआ । लोगों ने ताली बजा दी । तमाम रवि खुश हुए । पैसा वसूल ।
अगले सीन में भावना माँ इफ़्तेख़ार साहब के सामने है ।
“अच्छा, तो आप भावना हैं ! ... क्या करती हैं भावना जी ? मतलब कोई काम धंधा
?” साहब ने पूछा ।
“माँ हूँ, माँ के हजार काम होते हैं साहब ।“
“फिर भी, कुछ तो करती होंगी ?” साहब ने सिगार जलाते हुए पूछा ।
“पार्ट टाइम काम है साहब । बेटों से जब इशारा मिलता है आहत हो लेती हूँ ।
बस ।“ दुखी मन से वह बोली ।
“आहत होना कोई काम तो नहीं है । आप आहत क्यों होती हो !? ”
“माँ हूँ ना, माँ का काम ही आहत होना है । लोगों के चाल-चलन, बोल-बचन,
रंग-रूप वगैरह देख कर मुझे आहत होना होता है । यही मेरी ड्यूटी है । वरना तो आप
देखिये समाज भावनाहीन होता जा रहा है । प्रेम में भी तीस-पैंतीस टुकड़े कर देते हैं
लोग । कोई सड़क पर घायल पड़ा हो, नदी में डूब रहा हो, भावनाहीन लोग वडियो बनाने लगते
हैं । अपने बूढ़े माँ-बाप मेले में छोड़ जाते हैं और पलट कर भी नहीं देखते हैं ।“
कुछ पुराने अख़बार टटोलते हुए उसने कहा ।
“तुम क्या सोयी रहती हो ऐसे समय ? तुम्हें जागृत होना चाहिए । तुम अपना काम
ठीक से करो तो लोग जाहिलपन से बचे रह सकते हैं । समाज को भावनाप्रधान बनाना
तुम्हारी जिम्मेदारी है । लगता है गलती तुम्हारी है भावना माँ । लगता है तुम्हें
ही आहत होने में मजा आता है ।“
“बेटों की दया पर जी रही हूँ । भावना का मजे से क्या लेन-देना साहब ! लोगों
ने ही सोचना समझना बंद कर दिया है । पता नहीं किसके भक्त हैं ! रोबोट होते जा रहे
हैं लोग । उनकी प्रोग्रामिंग कहीं और से होती है । किसी अदृश्य रिमोट से संचालित
होते हैं । आप जानते होंगे कि रोबोट में सिर्फ हरकत होती है भावना नहीं ।“
“चलो माना रोबोटों का जीवन प्रोग्रामिंग से होता है भावना से नहीं । लेकिन
लोगों को रोबोट मानोगी तो तुम्हारा उनका सम्बन्ध बनेगा कैसे !” समझाइश देते हुए
साहब बोले ।
“यही तो दिक्कत है साहब । समाज का रोबोटीकरण होता जा रहा है तो ऐसे में
मेरे लिए जगह कहाँ बचती है । आम आदमी संज्ञा शून्य होता जा रहा है, उससे जब चाहो
थाली बजवा लो जब चाहो ताली बजवा लो । हर आदमी गुरु बना हुआ है और दूसरों को ज्ञान फॉरवर्ड
कर रहा है । किसी और को सुनने देखने की फुरसत किसी के पास नहीं है ! और मैं तो
समझो कुछ हूँ ही नहीं । जब चाहा मुझसे खेला, जब चाहा मेरे नाम से खेल किया । बेटों
के आगे माँ कितनी लाचार होती है साहब आप शायद नहीं जानते हैं ।“
“फिर भी तुम इंकार कर सकती हो आहत होने से । आखिर तुम भावना माँ हो, अभी भी
तुम्हारा सम्मान करने वाले हैं समाज में ।“ साहब ने सांत्वना दी ।
“भावना के लिए विवेक का साथ जरुरी है । रोबोट में विवेक कहाँ होता है साहब ।
टीवी और सोशल मिडिया ने विवेक को पता नहीं कहाँ फ्लश कर दिया है । घोर भक्ति का
दौर है, मुफ्त का राशन खाओ और भजन करो ।
ईश्वर ने हाथ दे कर भेजा था कि इज्जत से मेहनत की खायेंगे, लेकिन भीख से ही खुश है
जनता ।“ भावना ने शिकायती सुर में कहा ।
“ऐसे कैसे चलेगा भावना, कुछ करो, समझाओ लोगों को । आखिर तुम स्वाभिमान रखने
वाली भावना माँ भी तो हो । जनता के बारे में सोचो । कल अगर मुफ्त का राशन बंद हो
गया तो क्या एक भिखारी दूसरे भिखारी से भीख मांग सकेगा ! और क्या उसे मिलेगी !?”
“लोग कहते हैं जब सरकार ही उधार ले ले कर घी पी रही है तो हमें नसीहत देने
का अधिकार किसी को नहीं है ।“ भावना माँ चिंतित हो चली ।
“फिर भी तुम्हारा मजबूत होना जरुरी है भावना । बताओ मैं क्या मदद कर सकता
हूँ तुम्हारी ?” साहब ने सांत्वना देते हुए कहा ।
“रोक सको तो रोको साहब, भावना माँ को अंधभक्तों ने कब्जे में ले लिया है । जिधर
देखो भक्त ही भक्त हैं । मैं कमजोर हो गयी हूँ । किसी दिन जिन्दा नहीं रही तो डर
ये है कि ये भक्त आपस में लड़ मरेंगे ।“
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