मंगलवार, 31 जनवरी 2023

करो प्रदर्शन म्यान का, पड़ी रहन दो तलवार






 

                तय था कि हाथी जिसके गले में माला डाल देगा वही रतनद्वीप का अगला शिक्षा मंत्री होगा । हाथी ने सड़क किनारे बैठी हुई कुतिया के गले में माला डाल दी । हाथी को पता था कि परसाई ने शिक्षा को सड़क किनारे पड़ी कुतिया बताया था जिसे हर कोई लतिया कर चला जाता है । कुतिया रतनद्वीप की शिक्षा मंत्री हो गयी । रतनद्वीप सरकार यों भी दुम पर ज्यादा गौर करती है योग्यता पर कम । लेकिन लात मारने वालों को कोई फर्क नहीं पड़ना था । उनकी टांगे फड़क रही हैं । जो शिक्षा के बारे में नहीं जानते हैं और नहीं जानते हैं कि वे नहीं जानते हैं, उन्होंने शिक्षा मंत्री के गले में सबसे पहले माला पहनाई और उसे अपने प्रभाव में लिया । दूसरे दिन अख़बार में खबर लगी कि ‘वे’ व्यवस्था का प्रतीक तो पहले से ही थीं अब जिम्मेदारी भी मिल गयी है ।

               विभाग में सबसे पहले भाषा को ले कर उठापटक शुरू हुई । मंत्रालयों में उठापटक को चिंतन कहने की आदर्श परंपरा है । रतनद्वीप में अफसरों की भाषा और आम नागरिक की भाषा अलग अलग है । लोग भाषा के बल पर कट मरते हुए आगे निकल जाते हैं । अंग्रेजी फर्राने वाला वकील देसी जज को हलुवा समझते हुए खा जाता है । बहस के दौरान जज मुद्दों से कम भाषा से अधिक जूझता है । शिक्षा व्यवस्था पर सबसे पहले यही सवाल आया कि भाषा का ये हथियार कैसे जब्त किया जाये । क्योंकि मंत्रालय में भी बड़ी दिक्कत होती है । अफसर भाषा के बल पर अपनी सरकार चलाते हैं । मंत्री बेचारा मात्र सरकारी लेटरपेड बन कर रह जाता है । तो सुझाव आया कि सरकार हिंदी में चले । हालाँकि सवाल ये उछले कि क्या नेताओं को सही हिंदी आती है । जवाब गया कि अफसरों को हिंदी में समझाने लायक तो आती है । सरकार के लिए इतना ही काफी था । अब सारे जरुरी काम हिंदी में होंगे । अंग्रेजी के अख़बार भी हिंदी में छपेंगे । शिक्षा मंत्री ने फरमान जारी किया कि स्कूल कालेजों में पढ़ाई हिंदी में होगी । जो ज्ञान-विज्ञान अंग्रेजी में है उसे फ़िलहाल देशभक्त दीमकों के लिए अलमारियों के हवाले करें ।

                   लोकतान्त्रिक व्यवस्था में युद्ध म्यान से लड़े जाते हैं तलवार से नहीं । कबीर होते तो उन्हें कहना पड़ता ‘प्रदर्शन करो म्यान का, पड़ी रहन दो तलवार’ । जनता शत्रु नहीं है, यहाँ तलवार का क्या काम । अशिक्षा और गरीबी दो अनमोल रतन हैं रतनद्वीप के । अशिक्षा से गरीबी लिंक है, गरीबी से वोट और वोट से सत्ता । जुमलों में बोल भले ही दें कि हटायेंगे लेकिन जिस डाली पर बैठते हैं उसे कौन हटाता है भला ! अशिक्षा तो डर का घर भी है । जो डर गया वो सरकार का हो गया । कुछ थे जो कभी गरीबों के हक़ की बात किया करते थे । पता नहीं किस नागाभूमि  में जा बसे हैं । वो भी थे जो बाबासाहब  की बातों पर गौर किया करते थे । उनके शिष्य अब बाबाजीओं को झूमते सुन रहे हैं । अन्धविश्वासी और भक्त यूँ ही नहीं हो जाते हैं लोग । चमत्कारों के बिना यह संभव नहीं है । और सत्ता के समर्थन से बड़ा कोई चमत्कार क्या हो सकता है ? ज्ञान-विज्ञान और बाबाओं के बीच सरकार म्यान ले कर खड़ी है । घोषणाओं-भाषणों की म्यान, उद्घाटनों-शिलान्यासों की म्यान, नारों-विज्ञापनों की म्यान । इन हवाओं में म्यानों से पूरा युद्ध लड़ा जाएगा । आप क्या कहेंगे ! क्या कह सकते हैं ! आपको कहना पड़ेगा – ‘विजयी भव’ ।            

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