पहाड़ जैसे मंडी भवन में ठंडी ठंडी हवा चल रही है. कहीं कोई शोर, चिल्ला पुकार नहीं है. आम का मुंह नहीं होता है, जिनका होता है यहाँ बंद ही रहता है. किसी को किसी से कुछ भी पूछने की जरुरत नहीं पड़ती है. बड़ों की बात तो बड़े जाने यहाँ के चपरासी तक देख कर पहचान लेते हैं कि कौन आम अल्फ़ान्सो है और कौन दसहरी. यहाँ हर कोई आम का कीड़ा है. बड़े साहब का सख्त निर्देश है कि लंगड़ा -दसहरी इधर ना भेजें, समय खराब होता है. राजधानी में आम के आलावा सबका समय कीमती होता है. भीख मांगने वाले भी आदमी की सुस्ती बर्दाश्त नहीं करते हैं. बड़े साहबों का समय तो बहुत ही कीमती होता है, यों समझिये जीरो दिखाने के बाद पेट्रोल की तरह नपता है. बात दरअसल ये हैं कि चूसने का समय गु्लगुलाने में नष्ट करना कीमती सरकारी समय का अपमान कारना है. इसलिए सरकार ने मातहत दिए है. वे आम को पूरी तरह गुलगुला कर साहब के सामने पेश करते हैं. वैसे गुलगुलाने का काम ब्रोकर ही करता है, लेकिन मंडी भवन में कोई किसी पर भरोसा नहीं करता है. कहते हैं कि अफसर का बाप भी सामने आ कर खड़ा हो जाये तो उस वक्त आम से ज्यादा नहीं होता है. इसलिए ब्रोकर द्वारा गुलगुलाये आम को एक बार सरकारी हाथों से भी गुलगुला कर पक्के तौर पर चूसने लायक बना लिया जाता है.
सुना है मंत्रीनुमा लोग अल्फ़ान्सो, आम्रपाली, मलीहाबादी वगैरह ही पसंद करते हैं. हालाँकि वोट वे लंगड़े, बादामी, नीलम और देसी- फेसी सब से ले लेते है. अब देखिये साहब आप भी मानेंगे कि पसंद अपनी जगह है, वोट अपनी जगह. बड़ा आदमी पसंद करता है तो करता है इसमें क्यों -कायको करने की जरुरत नहीं है. वैसे देखा जाये तो जो गूदेदार- रसदार नहीं हो उसे भी ज्यादा बड़े सपने नहीं देखना चाहिए. अल्फ़ान्सो और आम्रपाली की जो इज्जत है वो ऐसे ही नहीं है. बावन पत्तों में इक्का बादशाह भी होता है या नहीं.
हर किसी के पास टारगेट है. अधिकारीयों की नियुक्ति होती इसलिये है कि वे आम से सेट हो जाएँ. सेट होने का कोई नियम या फार्मूला नहीं होता है. यह अधिकारी के विवेक पर निर्भर करता है कि वह कहाँ और कैसे सेट हो जाये. सिस्टम अधिकारी की कड़ी परीक्षा लेने के बाद उसके विवेक पर आश्वस्त होता है.
विकास का ग्राफ आम की टोकरियों से बनता है. राजधानी से लौटती बसों ट्रेनों को देखिये, उसमें चुसे हुए आम लदे दिखेंगे. लेकिन उनमें ज्यादातर खुश बतिया रहे होते हैं कि भले ही चूसे गए पर एक रिश्ता तो बन गया महकमें से. आगे कभी काम पड़ा तो सीधे जा कर मुंह से लग जायेंगे साहब के. सरकार ने भले ही कहा है कि वह भ्रष्टाचार समाप्त करेगी. लेकिन विकास की जरुरत और परंपरा अपनी जगह है. आम संसार में आते ही हैं चूसे- काटे जाने के लिए.
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